
महाराष्ट्र में ‘दिशा अभियान’ ने बौद्धिक दिव्यांग छात्रों की शिक्षा में रचा इतिहास
मुंबई। महाराष्ट्र में बौद्धिक दिव्यांग छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण और समान शिक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लागू किए गए ‘दिशा अभियान’ ने राज्यभर में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की दूरदर्शी पहल और नीति-निर्माण से आकार लेने वाले इस अभियान ने विशेष विद्यार्थियों की शिक्षा व्यवस्था में अभूतपूर्व बदलाव लाया है, जिससे महाराष्ट्र पूरे देश के लिए एक मिसाल बन गया है। जय वकील फाउंडेशन द्वारा विकसित और राष्ट्रीय बौद्धिक दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान (NIEPID) द्वारा अनुमोदित इस अभिनव पाठ्यक्रम को वर्तमान में राज्य के 453 विशेष विद्यालयों में लागू किया गया है। मुख्यमंत्री फडणवीस ने बताया कि महाराष्ट्र देश का पहला राज्य है जिसने न केवल दिव्यांगजनों के लिए अलग विभाग स्थापित किया, बल्कि उनकी आवश्यकताओं को प्राथमिकता देते हुए एक राज्यव्यापी मानकीकृत पाठ्यक्रम लागू किया। यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘विकसित भारत 2047’ के समावेशी और आत्मनिर्भर समाज के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
अभियान का दायरा और उपलब्धियां
1944 में स्थापित जय वकील फाउंडेशन के 80 वर्षों के अनुभव और शोध-आधारित पद्धतियों से तैयार यह पाठ्यक्रम 2019 में सामाजिक न्याय एवं विशेष सहायता विभाग और फाउंडेशन के बीच हुए समझौते के बाद लागू होना शुरू हुआ। छह वर्षों में, यह पहल महाराष्ट्र के 36 जिलों तक पहुँची, जिसमें 2,673 विशेष शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया और 18,431 छात्रों को सीधा लाभ मिला। इस समझौते को 2025–2028 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।
कोविड काल से नवाचार तक
मुख्यमंत्री ने बताया कि दिशा अभियान ने कोविड काल के दौरान भी अपनी निरंतरता बनाए रखी—ऑनलाइन माध्यम से लेकर पुनः स्कूलों में प्रत्यक्ष कार्यान्वयन तक। 2023-24 में मुंबई महानगरपालिका के स्कूल भी इसमें शामिल हुए और 2024 में ‘पार्टनर स्कूल’ की अवधारणा शुरू की गई। वर्तमान में एनआईईपीआईडी, एसएनडीटी, बीएमसी और कई गैर-सरकारी संगठन इसके साझेदार हैं, जबकि एच.टी. पारेख फाउंडेशन और बजाज फिनसर्व सीएसआर के सहयोग से इसका प्रभाव और बढ़ा है। इस पहल को राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है और महाराष्ट्र का यह मॉडल अन्य राज्यों के लिए प्रेरणास्रोत बनता जा रहा है। मुख्यमंत्री फडणवीस ने इसे “दिव्यांग छात्रों के लिए समान अवसर और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक निर्णायक कदम” बताया।