नई दिल्ली। शिवसेना पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह को लेकर मंगलवार को केंद्रीय चुनाव आयोग के सामने सुनवाई हुई। साथ ही शिवसेना पार्टी प्रमुख के तौर पर उद्धव ठाकरे का कार्यकाल २३ जनवरी को खत्म हो रहा है। उससे पहले ठाकरे गुट ने संगठनात्मक चुनाव करवाने की इजाजत मांगी है। इस मुद्दे पर भी सुनवाई हुई। चुनाव आयोग अब इस मामले पर २० जनवरी (शुक्रवार) को सुनवाई करेगा। यानी शिवसेना के नाम और धनुषबाण के निशान को लेकर आज फैसला नहीं हुआ। उद्धव ठाकरे के कार्यकाल के खत्म होने के बाद संगठनात्मक चुनाव को लेकर भी कोई बात नहीं हुई। आज ठाकरे गुट की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश कीं। पिछली सुनवाई में केंद्रीय चुनाव आयोग ने शिंदे गुट की ओर से वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी की दलीलें सुनी थीं। आज की सुनवाई में ठाकरे गुट की ओर से कपिल सिब्बल ने सबसे पहले चुनाव आयोग से अपील की कि वह सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले अपना फैसला ना दे। कपिल सिब्बल ने कहा कि शिवसेना में दो गुट होने की बात काल्पनिक है। कुछ लोगों का अलग हो जाने से पार्टी पर दावा नहीं बनता। यह गैरकानूनी है। सिब्बल ने कहा कि शिव सेना पार्टी में रहते हुए उसका फायदा उठाने वाले, पार्टी से जुड़े मामलों में अपना मत देने वाले यह कैसे कह सकते हैं कि पार्टी में लोकतंत्र नहीं था।
सुप्रीमकोर्ट के फैसले से पहले चुनाव आयोग अपना फैसला ना सुनाए- ठाकरे गुट
कपिल सिब्बल ने कहा कि विधायकों और सांसदों के बहुमत के आधार पर पार्टी पर दावा नहीं किया जा सकता. जो लोकप्रतिनिधि होते हैं वे पार्टी के चुनाव चिन्ह और नाम क बेस पर ही चुनाव जीत कर आते हैं, वे यह नहीं कह सकते कि उनके पास बहुमत है, इसलिए मूल पार्टी पर उनका दावा बनता है। विधायकों और सांसदों से ही पार्टी का गठन नहीं होता है। कई कार्यकर्ता, पदाधिकारी इसे बनाते हैं। इस लिए मेजोरिटी होने की दलील सही नहीं है। कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें पेश करने के लिए और दो-ढाई घंटे का समय मांगा। केंद्रीय चुनाव आयोग ने उनकी बात मानते हुए अगली तारीख २० जनवरी की दे दी।