
मुकेश “कबीर”
आखिर कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट की नज़र पड़ ही गई इसलिए कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लेकर आदेश दे दिए कि सारे आवारा कुत्तों को सड़क से उठाकर शेल्टर होम में शिफ्ट किया जाए और जो विरोध करे उसके खिलाफ भी सख्त कार्यवाही की जाए। अब आगे क्या होता है यह देखना भी दिलचस्प होगा क्योंकि देश में कुत्तों की ज्यादा चलती है। उन्हें हटाने के कई प्रयास हुए लेकिन वो फिर आ जाते हैं,इधर से नहीं तो उधर से,और न जाने किधर किधर से आ ही जाते हैं और फिर पहले से ज्यादा हरकतें करने लगते हैं। कुत्ते एक बार अंदर जाकर सिस्टम की सारी कमजोरियों को समझ लेते हैं,तब यह भी समझ जाते हैं कि खाना तो अंदर भी मिल ही जायेगा,फिर किस बात का डर ? बाहर सड़क पर दूर दूर तक दौड़ धूप करने के बाद कोई एकाध टुकड़ा मिलता है लेकिन अंदर तो बिना कुछ किए ही रोटी और बिस्किट्स मिल जाते हैं इसलिए सड़क पर वापस आकर डबल कॉन्फिडेंस से उत्पात मचाने लगते हैं। यह भी एक संयोग है कि आजादी के बाद देश में कुत्तों का महत्व ज्यादा बढ़ा है, इसलिए सड़क के अलावा घरों में भी उनका रुतबा देखा जा सकता है, अच्छी अच्छी मैम उनको खाना खिलाती हैं,अपने बिस्तर पर सुलाती हैं और सुबह नित्यक्रिया के लिए उनको फॉलो करते हुए पीछे पीछे फटाफट खिंचती हुई जाती हैं। जैसे ट्रैक्टर के पीछे ट्राली जाती है या जैसे लहरों के साथ नैया चलती है उसी तरह कुत्ते के साथ उसकी मैया चलती है। आजकल कुत्ते और फैमिली मेंबर में कोई फर्क नहीं होता, बेडरूम, डाइनिंग टेबल, बाथरूम, टैरेस, लॉन ऐसी कोई जगह नहीं जहां कुत्तों की पहुंच न हो, और तो और ट्रेन और प्लेन में भी उनका रिजर्वेशन फैमिली मेंबर की तरह कराया जाता है। कभी कभी कुत्तों को किस भी किया जाता है,जिसे आप बोनस मान सकते हैं। लेकिन किसके लिए? यह समझना पड़ेगा। कुत्तों के ठाठ देखकर जितना इंसानों को अपना जीवन निरर्थक लगता है,उससे ज्यादा सड़क के कुत्तों को दर्द होता है। उन्हें यह देखकर बुरा लगता है कि घर वाले कुत्तों में ज़रा सी भी कुत्तागिरी नहीं होती। और तो और कुत्तों की राष्ट्रीय पहचान आबादी बढ़ाने में भी घर वाले कुत्ते सहयोगी नहीं होते हैं इसीलिए सड़क के कुत्ते आंदोलन पर उतारू हो जाते हैं। फिर हर इंसान उन्हें अपना दुश्मन लगता है,इसलिए इंसानों को घेरकर मारने लगते हैं कुत्ते। कुत्ते झुंड में घूमना ही पसंद करते हैं, उनकी पॉलिसी एकदम क्लियर है अकेले रहो तो तलवे चाटो और झुंड में हों तो जमकर काटो। वो जानते हैं कि झुंड में किसी एक पर इल्ज़ाम नहीं आता और सबको पकड़ा नहीं जाता इसलिए हर चौराहे पर झुंड बनाकर खड़े रहते हैं। कुत्ते, भूखे प्यासे तपस्वी की भांति साधना में लीन सरीखे पड़े रहते हैं,लेकिन जैसे ही कोई पास से निकलता है तो उनका कुत्तापन तुरंत जाग जाता है और झपट्टा मार देता है। जो बच गया तो उसकी किस्मत वरना इनके प्रयास में तो कमी होती नहीं। ये कुत्ते बहुत मेहनत करते हैं। बाइक वाले को देखकर तो ऐसे बेसुध होकर भागते हैं जैसे मंगलसूत्र चुराने वाले के पीछे इंसान भागते हैं और कई बार तो बाइक को गिरा भी देते हैं। इसलिए आजकल बाइक वाले भी कुत्तों को देखकर उसी तरह छुपकर निकलने की कोशिश करते हैं जैसे बिना हेलमेट वाले पुलिस को देखकर निकलते हैं, लेकिन आम आदमी न इनसे बच पाता न उनसे। आम आदमी की किस्मत में ही शिकार बनना लिखा है,यह बात कुत्ते भी समझने लगे हैं इसलिए जहां आम आदमी दिखा टूट पड़े उस पर। कुत्ते कार पर हमला नहीं करते शायद उन्हें आम और खास का फर्क समझ आता है। फिर भी उन्हें अभी इतनी समझ नहीं कि पैदल चलने वालों में से आम और खास की पहचान कर सकें क्योंकि उनकी नज़र में पैदल मतलब आमतम आदमी मतलब आम से भी आम बस यही गलती कुत्तों की दुश्मन बन जाती है और आम समझकर वो किसी खास को पकड़ लेते हैं। फिर खास उन्हें बताता है कि हम तुम्हारे बाप हैं,हमसे न टकराना। अब कोर्ट खुद संज्ञान ले रहा है, इसका मतलब कुत्ते क्या जानें वो तो डेली रूटीन में सबको काट रहे थे और अभी तक किसी को ज्ञान ही नहीं हुआ तो फिर संज्ञान कैसे होता? लेकिन अब कुत्तों की कुत्तागिरी निकाली जायेगी,उन्हें शेल्टर होम में छोड़ा जायेगा,फिर कुछ दिन बाद बाहर छोड़ा जायेगा,तब तक उन्हें मुफ्त की रोटी,बिस्किट और कुत्ताक्रिया की अन्य सुविधाएं भी मिलेगी वो समझ नहीं पायेंगे कि उन्होंने कौन सा पुण्य किया है जो सब कुछ बिना मेहनत के मिल रहा है,समझेंगे कैसे जब कोई समझाएगा ही नहीं और समझाने वाला डरता भी है कि कहीं कुत्ता अधिकार आयोग का गठन हो गया तो उनको समझाना मुश्किल पड़ेगा कि हम बेकसूर हैं,हम तो सिर्फ ड्यूटी कर रहे थे। आखिर कुत्ते बाइज्जत ही बरी होंगे क्योंकि सिस्टम उनके आगे मजबूर है। सिस्टम आदमी के लिए है,आदमी में भी आम आदमी पर सिस्टम लागू होता है,कुत्तों पर कोई सिस्टम नहीं चलता,कुत्ता अपने आप में एक सिस्टम निर्माता है तभी तो घर में भी कुत्तों की ही चलती है और बाहर तो वो चला ही लेते हैं। कुल मिलाकर कुत्तों की बढ़ती हुई ताकत को देखकर हमें तो यही लगता है कि डॉग को पकड़ना और पकड़कर रखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है,इसलिए टुकड़े डालना सीखिए,फिलहाल तो यही एकमात्र रास्ता है कुत्तों से बचने का…(लेखक व्यंग्यकार एवं कवि हैं)