Sunday, October 19, 2025
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व्यंग्य: त्यौहारी सीजन का मारा….एक बेचारा

सुधाकर आशावादी
कहने को समाज आजकल नारी पुरुष एक समान की नीति पर चल रहा है। अधिकारों के नाम पर श्रीमतियों की डिमांड अपने अपने श्रीमान जी से बढ़ती जा रही है। करवा चौथ पर्व पर जब श्रीमती जी ने श्रीमान जी के दीर्घायु होने की कामना में व्रत रखा, तो अपनी डिमांड की लम्बी फ़ेहरिस्त श्रीमान जी के हाथ में थमा दी। महंगी साड़ी के साथ महंगाई की ऊँची कूद लगाते स्वर्ण आभूषणों की डिमांड कर डाली। साथ ही धमकी भी दीं, कि चाहे जो मजबूरी हो, डिमांड श्रीमती जी की पूरी हो। श्रीमान जी मरते क्या न करते, श्रीमती जी की डिमांड पूरी करने के लिए बैंक के कर्जे की किश्त बढ़ाने के लिए विवश हो गए। गृहस्थ जीवन में शांति पाठ का महत्व केवल श्रीमान जी ही जानते हैं, श्रीमती जी तो आपदा में अवसर ढूँढने की फिराक में ही रहती हैं, कि जैसे भी हो, त्यौहार के नाम पर कैकेयी बनकर कोप भवन में अनशन की धमकी देती रहे और श्रीमान जी को समझौता वार्ता के लिए विवश करती रहे। बहरहाल करवा चौथ के समापन के उपरांत श्रीमती जी यदि श्रीमान जी से प्राप्त उपहारों से संतुष्ट हों, तो बड़ी बात है, अन्यथा श्रीमान जी भले ही अपनी जेब का अतिक्रमण करके कितना ही महँगा उपहार श्रीमती जी की सेवा में प्रस्तुत कर दें। श्रीमती जी को प्रसन्न करना आसान काम नही होता। त्यौहारी सीजन आता तो है, मगर सामान्य श्रीमान जी के सम्मुख मुसीबतों का पहाड़ खड़ा करने में पीछे नहीं रहता। करवा चौथ के उपरांत धन तेरस भी श्रीमान जी की जेब पर क्रूर प्रहार करने से नहीं चूकता। श्रीमती जी की सुविधा प्राप्त करने वाली फ़ेहरिस्त का आकार प्रतिवर्ष बढ़ता ही जाता है। अब पीतल के बर्तनों की डिमांड नही होती। डायमंड के गहनों की डिमांड अधिक होती है। साइकिल आज भी कुछ श्रीमानों के लिए सपना होगी, किंतु सुविधा भोगी श्रीमतियों की नजर किसी दोपहिया पर नहीं पड़ती। सामान्य चौपहिया भी उन्हें आराम दायक नहीं लगते। चौपहिया में भी उन्हें ऊँचे कद और तेज गति से दौडऩे वाली गाडिय़ां ही पसंद आती हैं। ऐसा नहीं है कि श्रीमती जी श्रीमान जी की जेब की सीमाएँ न जानती हो, किंतु श्रीमती जी अपने अड़ोस पड़ोस, अपनी सहेलियों और रिश्तेदारों की समृद्धि को कैसे पचाएँ जो भौतिक संसाधनों से घर के ड्रॉइंग रूम में महँगे झूमर की रोशनी से नहा रहे हों तथा श्रीमती जी की महत्वकांक्षा के परों को उड़ान भरने के लिए उकसा रहे हों। ख़ैर जो भी हो, भले ही व्यापार घाटे में जाए या श्रीमान जी की नौकरी छूट जाए? त्योहारी सीजन श्रीमतियों के लिए ख्वाहिश बुनने और उन्हें पूरा कराने के लिए एक अदद श्रीमान जी पर दवाब बनाने का सीजन ज़रूर बन जाता है।

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