Tuesday, July 1, 2025
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संजय राउत ने 5 जुलाई को “मराठी विजय दिवस” रैली की घोषणा की, ठाकरे बंधुओं की संयुक्त उपस्थिति का दावा

मुंबई। महाराष्ट्र सरकार द्वारा त्रिभाषा नीति से जुड़े आदेश को वापस लेने के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल तेज हो गई है। इस निर्णय को मराठी भाषा की जीत बताते हुए शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने घोषणा की कि 5 जुलाई को मुंबई में एक विशाल रैली “मराठी विजय दिवस” के रूप में आयोजित की जाएगी। इस रैली को मराठी अस्मिता के समर्थन में आयोजित किया जाएगा, जिसमें हिंदी थोपे जाने के खिलाफ जनाक्रोश व्यक्त किया जाएगा।
राउत का भाजपा पर पलटवार
राउत ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के उस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी जिसमें उन्होंने दावा किया था कि पूर्ववर्ती महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार ने डॉ. रघुनाथ माशेलकर समिति की सिफारिशों के आधार पर त्रिभाषा नीति को मंजूरी दी थी। राउत ने कहा अगर ऐसी कोई सरकारी अधिसूचना (जीआर) है, तो उसे सदन में या सार्वजनिक रूप से पेश किया जाए और हम उसे सामूहिक रूप से जला देंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भाजपा सरकार द्वारा हिंदी को अप्रत्यक्ष रूप से तीसरी भाषा के रूप में थोपने की कोशिश को जनता ने नकार दिया है। राउत ने रैली को “मराठी जनशक्ति और गौरव” का प्रतीक बताते हुए यह दावा भी किया कि इस रैली में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे, दोनों नेता एक साथ मंच साझा करेंगे। उन्होंने कहा-टाइगर अभी ज़िंदा है। दिल्ली को हम दिखा चुके हैं कि महाराष्ट्र चुप नहीं बैठेगा। ठाकरे भाइयों की एकजुटता पर कोई संदेह नहीं रहना चाहिए। उन्होंने इस रैली को केवल एक राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन नहीं, बल्कि “महाराष्ट्र विरोधी नीतियों” के खिलाफ एक सांस्कृतिक और भाषाई आंदोलन बताया।
बाल ठाकरे की विचारधारा का हवाला
राउत ने बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा को उद्धृत करते हुए कहा कि यह लड़ाई किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि उन नीतियों के विरुद्ध है जो मराठी भाषा, संस्कृति और पहचान को हानि पहुंचाती हैं। उन्होंने बीजेपी पर हमला करते हुए कहा-जब भी कोई मराठी को दबाने की कोशिश करता है, महाराष्ट्र और भी ताकत से खड़ा होता है। राउत ने कांग्रेस के संभावित रूप से नगर निगम चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़ने के सवाल पर कहा कि कांग्रेस एक राष्ट्रीय दल है और उसे यह अधिकार है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि महा विकास आघाड़ी (एमवीए) गठबंधन का उद्देश्य मुख्य रूप से लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए है, न कि स्थानीय निकाय चुनावों के लिए बाध्यकारी।

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