Sunday, September 8, 2024
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सत्ता से आरएसएस की नाराजगी!

दरअसल मोदी और उनके अपने खासमखास अमित शाह आरएसएस को नजरंदाज कर रहे। केंद्रीय मंत्रियों को पूछा तक नहीं जा रहा। सारे काम, निर्णय पीएमओ ही बना रहा। स्पष्ट संदेश आरएसएस के लिए है कि राजनीतिक सत्ता को अब आरएसएस की परवाह ही नहीं है। निरंकुश राज सत्ता का अनुकरण अब प्रदेशों में हो रहा है। वहां सीएमओ ही केंद्र की तरह सत्ता चला रहे हैं। केंद्र में जिस तरह मंत्रियों का महत्त्व खत्म किया गया है वैसे ही राज्यों में हो रहा है। कोई मंत्रियों को जानता नहीं क्योंकि सारी बैठकें पीएम और सीएम कर रहे। सारे निर्णय पीएमओ और सीएमओ लेने लगे हैं। पीएम राजनीतिक सत्ता और शक्ति के रूप में इतना अधिक आगे निकल गए हैं कि आर एस एस की अवहेलना हो रही है। आरएसएस भीतर ही भीतर मोदी के एकतरफा निर्णय से खुद को गौंड समझने लगा है। मोदी ने जिस तरह संसदीय कमेटी से नितिन गडकरी को निकाल बाहर फेंका। उनसे दो विभाग छीन लिए। जिस तरह यूपी के योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के समय और बाद में सुनील बंसल राज्य प्रभारी के रूप में योगी से कहीं अधिक ताकत वर हो चुके थे। उन्हें तीन तीन राज्यों का प्रभार दे दिया जाना उनकी ताकत का प्रमाण था। सुनील बंसल को यूपी प्रभार से हटाना और नितिन गडकरी को संसदीय दल से निकाल फेकने का मामला हो या कर्नाटक में गैर आरएसएस को मुख्यमंत्री बनाने का मामला हो या गुजरात में मुख्यमंत्री बदलने और सरकार बनाने का मामला हो या फिर असम में कांग्रेसी मुख्यमंत्री सहित समूची सरकार को बीजेपी सरकार में बदलने का मामला हो या फिर महाराष्ट्र में शिवसेना तोड़कर गैर आरएसएस शिंदे को मुख्यमंत्री बनाए जाने और फिर राकांपा तोड़कर भ्रष्ट गैर आरएसएस अजीत पवार और उनके साथियों को उप मुख्यमंत्री और मंत्री बनाने का मामला हो, मोदी और शाह ने आरएसएस को सूचित नहीं कर खुद के राजनीतिक सत्ता में अत्यंत शक्तिशाली हो जाने से आरएसएस के अस्तित्व का संकट उठ खड़ा हो गया है।
अपनी आरएसएस की उपेक्षा से आरएसएस सुप्रीमों मोहन भागवत को रायपुर में अपने सभी 35 अनूसंगी संगठनों की बैठक बुलाने को बाध्य किया क्योंकि मोदी जो पहले आरएसएस के प्रचारक रहे को आर एस एस ने संगठन में महामंत्री फिर गुजरात का सीएम बनाया जिसके बाद देश के पीएम बनाकर आरएसएस ने अपना दखल बना लिया लेकिन एक तरफ जहां आरएसएस ने रायपुर में सभी तेरह राज्यों के प्रभारियों, अन्य संगठनों की समन्वय बैठक बुलाई ताकि आरएसएस की विचार धारा को स्थापित करने पर चर्चा के लिए बुलाई गई लेकिन ऐन बैठक के समय ही मोदी ने 15 राज्यों के प्रभारी बदल दिए आरएसएस की चिंता सहज ही समझ में आ सकती है। रायपुर में आर एसएस और उसके अनुसांगिक संगठनों के बीच जिसमें नड्डा भी शामिल हुए हैं मोदी और शाह ने मिलकर 15 राज्यों के प्रभारियों की छुट्टी कर दी और सभी जगह ब्राह्मणों को प्रभारी बनाया जो मोदी के इशारे पर काम करने वाले हैं।आरएसएस ने देश सोशल इंजीनियरिंग का ध्यान रखकर ही संगठन बनाया था लेकिन मोदी ने आरएसएस की नीति को तिलांजलि दे दिया।आरएसएस ने गुजरात और कर्नाटक में प्रयोग किया। अटल बिहारी और लालकृष्ण आडवाणी के समय भी प्रयोग किया था। आज आरएसएस को अपने विस्तार की भी चिंता है लेकिन बीजेपी के रहते विस्तार नहीं हो पाना चिंताजनक है। आरएसएस के एक करोड़ स्वयंसेवक हैं तो मोदी शाह ने मोबाइल के द्वारा 12 करोड़ मेंबर बनाकर आरएसएस को पछाड़ दिया। यह भूल गए कि आज मोदी जो सत्ता शीर्ष पर हैं वह आरएसएस की ही बदौलत पहुंचे हैं। आरएसएस को चिंता है अपनी विचारधारा के विस्तार की जिसमें संगठन में ब्लॉक स्तर से लेकर प्रांत और राष्ट्रीय स्तर तक मोदी शाह ने मनमाने ढंग से संगठन गैर आरएसएस के लोगों को लेकर कर लिया यानी आरएसएस चिंतित है सत्ता की पहचान बन जाने से आरएसएस के राज्य, जिला, तहसील और ब्लॉक स्तर के स्वयंसेवकों की पहचान ही खत्म हो गई है। यद्यपि मोदी की तरह आरएसएस प्रमुख आश्वस्त हैं कि 2024 का लोकसभा चुनाव बीजेपी ही जीतेगी भले ही नीतीश कुमार ने सभी विपक्षी दलों को एक करने की कोशिश की हो और कांग्रेस पद यात्रा के द्वारा लोगों को जोड़ने की कोशिश की हो।एक बार महत्त्वपूर्ण है कि यदि आरएसएस ने बीजेपी के प्रचार नहीं किए तो मोदी की सरकार नहीं बन सकती है क्योंकि चुनाव प्रचार में आरएसएस के ही लोग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है आरएसएस की समस्या है मोदी का विकल्प बीजेपी में ही ढूंढने और मोदी को पद से हटाने की जिस पर आरएसएस काम भी कर रहा। विकल्प तलाश रहा या चुका है।संभव है दूसरे विकल्प की घोषणा लोकसभा चुनाव पूर्व ही हो जाए।मोदी का अड़ियल और तानाशाही प्रवृत्ति भी आरएसएस को मोदी का विकल्प ढूंढने का मूल कारण है। अब देखना है कि मोदी का राजनीतिक कद जो दिन दिन छोटा होता जा रहा। पपुलरिति खत्म होती जा रही है जिसका फायदा आरएसएस उठा पता है या नहीं। मोदी का संगठन में दखल आरएसएस को विकल्प ढूंढने के लिए बेचैन कर रहा है। संभव है मोदी और अमित शाह दोनो को ही आरएसएस हटा दे।

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