
35 वर्षीय ‘समीर अंसारी’ पिछले एक साल से लापता था। गुप्त सूचना के आधार पर अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने छापेमारी की और रसोई के फर्श को खोदकर ‘शव’ के अवशेष निकाले!
अहमदाबाद, गुजरात। बॉलीवुड की सुपरहिट थ्रिलर ‘दृश्यम’ देखकर इंस्पायर होना तो ठीक है, लेकिन उसकी नकल करना और वो भी इतनी घटिया कि पुलिस एक साल बाद ही पकड़ लेन ये तो दुख की इंतेन्सिटी का नया लेवल है! गरीब समीर अंसारी, 35 साल के एक शख्स की जिंदगी खत्म हो गई क्योंकि उनकी पत्नी रूबी को लगा कि ‘दृश्यम’ का प्लॉट रियल लाइफ में चलेगा। प्रेमी इमरान वाघेला और उसके रिश्तेदार रहीम-मोहसिन के साथ मिलकर हत्या की, शव के टुकड़े किए, और रसोई के फर्श में दफन कर दिया। अरे वाह, क्या क्रिएटिविटी! लेकिन अफसोस, फिल्म में अजय देवगन बच निकलते हैं, यहां तो इमरान पकड़ा गया और बाकी तीन फरार होकर शायद अगली ‘दृश्यम’ सीक्वल की स्क्रिप्ट लिख रहे होंगे।नपुलिस को गुप्त सूचना मिली (शायद किसी पड़ोसी ने रसोई से आती बदबू पर शक किया, क्योंकि ‘दृश्यम’ में तो परफेक्ट प्लान था ना ), और मंगलवार रात सरखेज के बंद घर में छापा मारा। फर्श खोदा तो हड्डियां निकलीं, मानो कोई पुरानी रेसिपी की तलाश में हों। डीसीपी अजीत राजियन साहब ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया, “ये ‘दृश्यम’ की कॉपी है, लेकिन ओरिजिनल में कम से कम सस्पेंस तो था!” अवशेष फोरेंसिक और डीएनए टेस्ट के लिए भेजे गए – उम्मीद है, समीर की आत्मा को अब सुकून मिले, हालांकि रूबी और उसके गैंग को तो जेल की रोटी खानी पड़ेगी, वो भी बिना मसाले की।नकितना दुखद है ना। समीर पिछले एक साल से ‘लापता’ थे, घरवाले शायद सोच रहे होंगे कि कहीं घूमने गया होगा, और असल में वो रसोई के नीचे ‘परमानेंट रेस्ट’ ले रहा था। इमरान तो गिरफ्तार हो गया, अब वो पुलिस को बता रहा होगा, “सर, फिल्म में तो कामयाब हो जाते हैं!” फरार रूबी, रहीम और मोहसिन की तलाश जारी है। पुलिस छापेमारी कर रही है, शायद वो लोग किसी दूसरी फिल्म की तलाश में हों, जैसे ‘जेल ब्रेक’ या ‘फरार’। आखिर में, दुख की बात ये कि ‘दृश्यम’ जैसी फिल्में एंटरटेनमेंट के लिए हैं, रियल लाइफ में ऐसी साजिशें सिर्फ आंसू और जेल की सलाखें लाती हैं। समीर की आत्मा शांति से सोए, और आरोपी जल्द पकड़े जाएं। ताकि बॉलीवुड वाले कम से कम क्रेडिट तो दें “इंस्पायर्ड बाय ट्रू इवेंट्स… लेकिन फेल!” पुलिस अब फरारों की तलाश में है, और हम दुआ करते हैं कि अगली बार कोई ‘दृश्यम’ न देखे, बल्कि ‘गांधी’ देखे – कम से कम अहिंसा तो सीखें। RIP समीर, और अलविदा घटिया प्लॉट्स




