
आरबीआई ने अपने अध्ययन में निष्कर्ष निकाला है कि पुरानी पेंशन बहाल करने पर राज्यों पर साढ़े चार गुना बोझ बढ़ेगा। एक तरफ केंद्र सरकार जीएसटी और जीडीपी में वृद्धि का दावा करती है। जिसमें राज्यों का भी हिस्सा है तो दूसरी तरफ आरबीआई कहती है कि एनपीएस लागू करने पर कम हुआ बोझ ओपीएस लागू होते ही बढ़ जाएगा। आरबीआई यह क्यों नहीं बताता कि विधायकों, सांसदों को कई कई पेंशन क्यों दी जाए? देश में वीआईपी लगभग साढ़े छः लाख हैं। उनके आवास, बिजली, पानी, सुरक्षा और सुविधाओं के साथ विधायक सांसद को पेंशन क्यों दी जाए? सरकारी कर्मियों को पुरानी पेंशन नहीं देने का सुझाव न्याय के सिद्धांत के विपरित क्यों नहीं है? केंद्र सरकार और आरबीआई पांच ट्रिलियन डॉलर्स भारत की जीडीपी होने के दावे कर रही है फिर पुरानी पेंशन बहाली पर बोझ बढ़ने का खतरा बताना कहां तक जायज है? विधायकों सांसदों और छः लाख वीआईपी पर व्यय का क्या औचित्य है? सरकारी व्यय जीडीपी का 70 प्रतिशत क्यों हो। विधायकों सांसदों वीआईपी और पीएम की शानदार जिंदगी बिताने,जनता के धन का अपव्यय करने पर आरबीआई मौन क्यों है? अकेले प्रधानमंत्री की सात लेबल सुरक्षा में दो करोड़ प्रतिदिन अपव्यय और विज्ञापनों पर प्रतिदिन 43 लाख रूपये जनता के धन का क्या न्यायपूर्ण उपयोग है? नौ सौ करोड़ जी 20 के लिए व्यय निर्धारित था लेकिन 5300 करोड़ का अपव्यय क्यों किया गया वह भी पीएम का चेहरा चमकाने और बीजेपी का प्रचार करने में क्या जनता के धन का दुरुपयोग नहीं किया गया? उसकी। अनदेखी आरबीआई कैसे कर सकती है? आरबीआई खुद कहती है कि राज्यों के चुनाव में पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा उठेगा,इसमें आपत्ति क्यों है आरबीआई को? क्या आरबीआई बताएगी कि जब देश की जी डी पी कम थी तब सरकारें कैसे अपने कर्मचारियों को पेंशन देती रहती थी? अगर ईमानदारी से आरबीआई अध्ययन करती तो यह भी बताती कि राज्यसरकारों को उनका न्यायपूर्ण हिस्सा क्यों नहीं दे रही केंद्र सरकार? एक दिन भी मस्टर रोल पर हस्ताक्षर कर कोई विधायक और सांसद पेंशन पाने का अधिकारी हो जाता है तो तीस पैंतीस साल अपने जीवन का बहुमूल्य समय राष्ट्र की सेवा में होम करने वाले सरकारी कर्मियों को पुरानी पेंशन बंद क्यों की गई? आरबीआई का यह निष्कर्ष पक्षपात पूर्ण और अन्याई होने के साथ राजनीति से प्रेरित दिखाती है। उसे सरकारी कर्मियों के प्रति न्याय की भावना कदापि नहीं है। बंद करना था तो सबसे पहले छः लाख वी आईपी और सांसदों पर अरबों रुपए के अपव्यय पर उंगली उठानी थी न कि सरकारी कर्मियों का हक मारने की। आरबीआई कहती है या चेतावनी देती है कि 2060 तक जी डी पी का 0.9 प्रतिशत पेंशन व्यय हो जाएगा तो यह क्यों नहीं बताती कि वी आईपी पर 2060 में जी डी पी का कितना प्रतिशत अपव्यय होगा? ब्यूरोक्रेट केवल सरकारी कर्मियों के जीवन यापन का ख्याल नहीं रखते बल्कि वे अपने आकाओं को राजसी जीवन बिताने के लिए प्रयास शील जरूर दिखते हैं। समझ में नहीं आता कि करोड़ों सरकारी कर्मी को जीवन के अंतिम समय में जीवन यापन की समस्याओं की अनदेखी क्यों करती है? यदि पेंशन देनी है तो एक समान राशि सबको देनी ही न्याय है क्योंकि सभी मनुष्य हैं। एक समान हैं फिर उनमें भेदभाव क्यों हो। को सुविधाएं जनप्रतिनिधियों और बीआईपी को जनता के धन से दी जाती हैं वही सुविधाएं जनता को क्यों नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि हर नागरिक अपने अपने हिस्से का योगदान राष्ट्र के निर्माण में करता है चाहे मजदूर किसान हो या प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति हों। सबको जीवन जीने का अधिकार है और राज्य राष्ट्र का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह अपने निवासियों की जीवन रक्षा करे।