हिंदू पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि का पावन पर्व 8 मार्च, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा का विधान है। भगवान शिव मात्र पौराणिक देवता ही नहीं, अपितु वे पंचदेवों में प्रधान, अनादि सिद्ध परमेश्वर हैं और निगमागम आदि सभी शास्त्रों में महिमामंडित महादेव हैं। वेदों ने इस परम तत्व को अव्यक्त, अजन्मा, सबका कारण, पालक और संहारक कहकर उनका गुणगान किया है। भगवान शिव के लिंग और मूर्ति, दोनों की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि शिव ब्रह्मरूप होने के कारण निराकार और रूपवान होने के कारण साकार कहे गए हैं। शिवरात्रि व्रत परम मंगलमय और दिव्यतापूर्ण है। यह व्रत चारों पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला माना गया है।
धनिष्ठा नक्षत्र का बन रहा योग
ज्योतिषाचार्य पंडित दिनकर झा ने बताया कि इस दिन धनिष्ठा नक्षत्र का भी योग बन रहा है। जो प्रातः 8:12 से दूसरे दिन शनिवार को प्रातः 6:42 बजे तक रहेगा।
यह तिथि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि रात्रि में 7:50 बजे व नौ मार्च शनिवार की शाम 5:09 बजे तक ही रहेगा। चंद्रमा कुंभ रात्रि 7:28 से विराजमान रहेगा। उन्होंने बताया कि चंद्रमास का 14वां दिन अथवा अमावस्या से पूर्व का दिन महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। महाशिवरात्रि पर मंदिरों में जलाभिषेक दिन भर व चार पहर में शिव की पूजा होती है। खासकर मान्यता है कि कुवांरी लड़की के व्रत करने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि का उत्सव पूरी रात मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि महाशिवरात्रि आध्यात्मिक राह पर चलने वाले साधकों के लिए काफी महत्व रखती है।
चार प्रहर में पूजन का विधान
महाशिवरात्रि पूजा मुहूर्त आठ मार्च शुक्रवार निशिता काल रात 12:02 से 12:55 बजे तक है। शिवरात्रि पर चार प्रहर में चार बार पूजन का विधान आता है। इसीलिए चार बार रुद्राभिषेक भी संपन्न करना चाहिए।पहले प्रहर में दूध से शिव के ईशान स्वरूप का, दूसरे प्रहर में दही से अघोर स्वरूप का,तीसरे प्रहर में घी से बामदेव रूप का और चौथे प्रहर में शहद से सदयोजात स्वरूप का अभिषेक कर पूजा करना चाहिए।
महाशिवरात्रि की पूजा विधि
भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए श्रद्धालु प्रातः स्नानादि करके शिवमंदिर जाएं। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें। पूजा में चन्दन ,मोली ,पान, सुपारी, अक्षत, पंचामृत, बिल्वपत्र, धतूरा, फल-फूल, नारियल, इत्यादि शिवजी को अर्पित करे। भगवान शिव को अत्यंत प्रिय बेल को धोकर चिकने भाग की ओर से चंदन लगाकर चढ़ाएं। हो सके तो रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा अर्चना करनी चाहिए। अभिषेक के जल में पहले प्रहर में दूध,दूसरे में दही ,तीसरे में घी, और चौथे में शहद को शामिल करना चाहिए।दिन में केवल फलाहार करें, रात्रि में उपवास करें । हांलाकि रोगी, अशक्त और वृद्धजन रात्रि में भी फलहार कर सकते है। इस दिन शिव की पूजा करने से जीव को अभीष्ट फल की प्राप्ति अवश्य होती है। पूजा में शिवपंचाक्षर मंत्र यानी ऊं नम: शिवाय का जाप करें।