
मुंबई। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने हाल ही में अपने गुड़ी पड़वा भाषण और सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से केंद्र सरकार और राज्य में लागू की जा रही राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाए जाने के प्रस्ताव का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह महाराष्ट्र पर “हिंदीकरण” थोपने की कोशिश है, जिसे किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
एनईपी के तहत हिंदी अब तीसरी अनिवार्य भाषा
महाराष्ट्र सरकार ने 2025-26 शैक्षणिक वर्ष से नई शिक्षा नीति के तहत मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने की योजना बनाई है। सरकार का कहना है कि यह त्रिभाषा सूत्र राष्ट्रीय एकता और संचार की सुविधा के लिए आवश्यक है।
राज ठाकरे का तीखा विरोध
इस निर्णय के बाद राज ठाकरे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा: “हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदी नहीं हैं! अगर आप महाराष्ट्र को हिंदी के रूप में चित्रित करने की कोशिश करेंगे, तो महाराष्ट्र में संघर्ष होना तय है। सरकार जानबूझकर यह टकराव पैदा कर रही है – क्या यह आगामी चुनावों में मराठी और गैर-मराठी लोगों के बीच विभाजन पैदा करने की योजना है? उन्होंने आगे कहा कि भाषाई क्षेत्रीयकरण इस देश की बुनियाद का हिस्सा है, और किसी भी क्षेत्र की पहचान उस क्षेत्र की भाषा से जुड़ी होती है। “आपका त्रिभाषी फॉर्मूला जो भी हो, उसे सरकारी प्रशासन तक सीमित रखें, शिक्षा में न लाएँ। महाराष्ट्र पर दूसरी भाषा थोपना, राज्य की आत्मा को चोट पहुँचाने जैसा है।
राजनीतिक माहौल गरमाया
राज ठाकरे के इस बयान के बाद महाराष्ट्र में भाषा को लेकर राजनीतिक बहस तेज हो गई है। जहाँ राज्य सरकार इस निर्णय को NEP 2020 के राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों के तहत आवश्यक बता रही है, वहीं मराठी अस्मिता को लेकर कई क्षेत्रीय दलों और संगठनों ने विरोध तेज कर दिया है।
भाषा पर टकराव या चुनावी रणनीति?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुद्दा सिर्फ शैक्षणिक नीति का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान से भी जुड़ा है। 2024 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र, भाषा के मुद्दे को लेकर मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिशें साफ दिखाई दे रही हैं।