
मुंबई। महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में माओवादी विचारधारा और तथाकथित शहरी नक्सल गतिविधियों पर कठोर कार्रवाई करने के लिए बहुप्रतीक्षित ‘महाराष्ट्र विशेष जन सुरक्षा विधेयक 2024’ को गुरुवार को विधानसभा में पारित कर दिया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसे राज्य की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताया। सीएम ने बताया कि विधेयक पर 12,500 से अधिक आपत्तियाँ और सुझाव प्राप्त हुए थे, जिनके अध्ययन के बाद इसमें तीन महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। उन्होंने कहा, हम भारतीय संविधान में विश्वास रखते हैं, लेकिन ऐसे लोग जो सशस्त्र विद्रोह और हिंसा के माध्यम से साम्यवादी शासन स्थापित करना चाहते हैं, उनके लिए अब जगह नहीं है। मुख्यमंत्री ने कहा कि एक समय महाराष्ट्र के चार जिलों में माओवादी प्रभावी थे, लेकिन सरकार के सख्त रुख और केंद्र के साथ मिलकर चलाए गए संगठित अभियानों के बाद अब सिर्फ दो तालुके ही बचे हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि अगले एक साल में महाराष्ट्र माओवाद मुक्त हो जाएगा। जन सुरक्षा अधिनियम को गैर-जमानती और प्रतिबंधात्मक कानून के रूप में परिभाषित करते हुए सीएम ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना जाता है, तो सरकार बिना किसी आरोप के उसे हिरासत में ले सकती है। मामलों की जांच पुलिस अधीक्षक रैंक के अधिकारियों से करवाई जाएगी, न कि किसी पुलिस उप निरीक्षक से, जैसा कि अब तक होता रहा है।
विपक्ष के सहयोग से विधेयक पारित होने का भरोसा
सरकार को विश्वास है कि यह विधेयक दोनों सदनों में पारित हो जाएगा क्योंकि इसे तैयार करने वाली समिति में विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेता भी शामिल थे। इस संयुक्त समिति में शरद पवार गुट के जयंत पाटिल, कांग्रेस के नाना पटोले और विजय वडेट्टीवार, उद्धव ठाकरे गुट के भास्कर जाधव, एनसीपी के जितेंद्र आव्हाड जैसे नेता सम्मिलित थे।
इसके अलावा विधायक दीपक केसरकर, अनिल पाटिल, मनीषा चौधरी, अजय चौधरी, रणधीर सावरकर और विधान परिषद सदस्य सतेज पाटिल, विक्रम काले, अंबादास दानवे सहित कई नेता भी इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल रहे।सीएम का समिति और विधायकों को धन्यवाद
मुख्यमंत्री फडणवीस ने विधेयक की समीक्षा और सुधार में योगदान देने वाली संयुक्त समिति और राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले की भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा, “मैं सभी पक्षों के विधायकों का आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर राज्य की सुरक्षा के लिए इस विधेयक को समर्थन दिया। इस कानून को माओवाद, शहरी नक्सलवाद और आंतरिक सुरक्षा को लेकर एक नीति निर्धारक मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह कानून अपने क्रियान्वयन में कितना प्रभावशाली सिद्ध होता है और संविधान व मानवाधिकारों के संतुलन को किस प्रकार साधता है।