
मुंबई। महाराष्ट्र में हिंदी और मराठी भाषा को लेकर जारी बहस अब राजनीतिक और सांप्रदायिक टकराव में बदलती जा रही है। मीरा-भायंदर में मराठी नहीं बोलने पर एक दुकानदार के साथ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के कार्यकर्ताओं द्वारा की गई मारपीट की घटना के बाद इस विवाद ने गंभीर रूप ले लिया है। इस घटना के विरोध में व्यापारियों ने अपनी दुकानें बंद रखीं और सोशल मीडिया पर घटनास्थल की तस्वीरें वायरल हुईं। इसी बीच महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नितेश राणे का एक विवादित बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने सीधे तौर पर मुस्लिम समुदाय पर निशाना साधते हुए कहा कि “ये गोल टोपी-दाढ़ी वाले मराठी बोलते हैं क्या? ये जावेद अख्तर, आमिर खान मराठी बोलते हैं क्या? ये सब क्या सिर्फ गरीब हिंदुओं के लिए है?” राणे ने मीरा रोड की घटना का हवाला देते हुए कहा कि यदि हिम्मत है तो मोहम्मद अली रोड और नल बाजार जाकर दिखाएं, लेकिन वहां कोई जाने की हिम्मत नहीं करता। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि देश को मुस्लिम राष्ट्र बनाने की साजिश हो रही है और सरकार अब ‘तीसरी आंख’ खोलकर कार्रवाई करेगी। इस पूरे विवाद की पृष्ठभूमि में राज्य सरकार का वह आदेश था जिसमें पहली से पांचवीं कक्षा तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने की बात कही गई थी। इस फैसले का विरोध करते हुए उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने 5 जुलाई को विरोध मार्च का ऐलान किया था। बढ़ते दबाव के बीच सरकार को 29 जून को यह फैसला वापस लेना पड़ा। एमएनएस द्वारा की गई मारपीट और उसके बाद नितेश राणे के बयान ने इस मुद्दे को भाषा से आगे ले जाकर सांप्रदायिक रंग दे दिया है। जहां एक ओर मराठी अस्मिता की बात हो रही है, वहीं दूसरी ओर अल्पसंख्यकों के खिलाफ बयानबाजी से माहौल बिगड़ता दिख रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के बयान सामाजिक सौहार्द के लिए खतरनाक हैं और भाषा के बहाने अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना संविधान की भावना के खिलाफ है। सरकार जहां खुद को हिंदुत्व विचार की समर्थक बताती है, वहीं मंत्रियों के ऐसे बयान राज्य को धार्मिक ध्रुवीकरण की ओर ले जा सकते हैं। जरूरत है कि सरकार ऐसे बयान देने वालों के खिलाफ कार्रवाई करे और भाषा व धर्म के आधार पर समाज को बांटने से रोके।