
मुंबई। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) और उसके प्रमुख राज ठाकरे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक गंभीर याचिका दायर की गई है, जिसमें उन पर उत्तर भारतीयों के खिलाफ कथित घृणास्पद भाषण, धमकियों और हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है। यह याचिका मुंबई निवासी एवं उत्तर भारतीय विकास सेना के अध्यक्ष सुनील शुक्ला द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट श्रीराम पराक्कट के माध्यम से दाखिल की गई है। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि राज ठाकरे के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए और चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वह एमएनएस की मान्यता रद्द करे।
याचिका में कहा गया है कि पिछले कुछ महीनों में सुनील शुक्ला को उनकी उत्तर भारतीय पहचान और इस समुदाय के अधिकारों की वकालत करने के कारण गंभीर धमकियां और उत्पीड़न झेलना पड़ा है। शारीरिक हमलों तक की धमकियां दी गई हैं। खासकर 30 मार्च को गुढ़ी पड़वा रैली में राज ठाकरे द्वारा दिया गया भाषण, जिसमें उन्होंने मराठी भाषा को न बोलने वालों को “थप्पड़ मारने” की चेतावनी दी थी, को हिंसा भड़काने वाला बताया गया है। याचिका में दावा किया गया है कि यह भाषण टीवी पर प्रसारित हुआ और इसके तुरंत बाद मुंबई के पवई, डी-मार्ट और वर्सोवा क्षेत्रों में हिंदी भाषी कर्मचारियों पर हमले हुए। याचिकाकर्ता ने इन घटनाओं को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153A, 295A, 504, 506, 120B और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 का उल्लंघन बताया है, जो धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर घृणा फैलाने और सामाजिक वैमनस्य को बढ़ावा देने से संबंधित हैं। इस पूरे विवाद पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के नेता संजय राउत ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने राज ठाकरे के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि मराठी भाषा के मुद्दे पर निचले स्तर के कर्मचारियों को निशाना बनाना अनुचित है। हालांकि, एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने अपनी रैली में स्पष्ट रूप से कहा था कि महाराष्ट्र में सभी आधिकारिक काम मराठी में होने चाहिए और जो जानबूझकर मराठी नहीं बोलते, उन्हें सिखाना पड़ेगा। इस याचिका ने राज्य में भाषाई अस्मिता और क्षेत्रीय राजनीति को लेकर चल रही बहस को और तेज कर दिया है। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर क्या रुख अपनाता है और चुनाव आयोग एमएनएस की मान्यता पर क्या फैसला करता है।