
मुंबई। सत्र न्यायालय ने 122 करोड़ रुपये के न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक घोटाले में फंसे बैंक के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अभिमन्यु भोआन की ज़मानत याचिका को ठुकरा दिया है। अदालत ने टिप्पणी की कि यह मामला एक “सुनियोजित और व्यवस्थित आर्थिक अपराध” का है, जिसमें जनता के पैसों का दुरुपयोग किया गया और अब तक न तो कोई बड़ी जब्ती हुई है और न ही धन की कोई वसूली। अभिमन्यु भोआन को मुंबई पुलिस ने इस वर्ष फरवरी के अंतिम सप्ताह में गिरफ्तार किया था। उन पर बैंक के पतन और करोड़ों रुपये के गबन की साजिश रचने का आरोप है। भोआन की ओर से पेश ज़मानत याचिका में दावा किया गया कि उन्हें सह-आरोपी महाप्रबंधक हितेश मेहता के बयान के आधार पर झूठा फंसाया गया है। हालाँकि, सत्र न्यायाधीश आर.के. देशपांडे ने अभियोजन पक्ष के तर्कों को अधिक मजबूत पाया और कहा- नौ सह-आरोपियों में से दो अभी भी फरार हैं। यदि इस परिस्थिति में आवेदक को ज़मानत दी जाती है, तो यह जाँच प्रक्रिया में बाधा डाल सकता है और गवाहों को धमकाने या प्रभावित करने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने यह भी माना कि धोखाधड़ी सामने आने के समय भोआन बैंक की प्रभादेवी शाखा में सीईओ के पद पर कार्यरत थे और मुख्य आरोपी हितेश मेहता उनके अधीनस्थ के रूप में काम कर रहा था। न्यायाधीश ने कहा- “प्रथम दृष्टया, सीईओ के रूप में भोआन सभी नकद लेनदेन की जानकारी रखते थे और बैंक की नकदी व्यवस्था पर उनका सीधा नियंत्रण था। अदालत ने आगे ब्रेन मैपिंग रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि जांच के अनुसार भोआन को हितेश मेहता से 1 करोड़ रुपये की धनराशि प्राप्त हुई थी। अदालत ने टिप्पणी की,
“आरोपपत्र की सामग्री से यह स्पष्ट है कि यह घोटाला भोआन और अन्य सह-आरोपियों द्वारा मिलकर 122 करोड़ रुपये हड़पने के लिए रची गई एक सुनियोजित साजिश है, जो पूरी तरह जनता का पैसा था। न्यायाधीश ने कहा कि बैंक जैसे संस्थान में उच्च पद पर बैठे व्यक्ति से इस तरह के कृत्य की उम्मीद नहीं की जाती। उन्होंने कहा- यह आर्थिक अपराध एक सोची-समझी योजना का परिणाम है, जिसका उद्देश्य व्यक्तिगत लाभ था, चाहे समाज या समुदाय पर इसका कितना भी नकारात्मक प्रभाव क्यों न पड़े। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि ऐसे मामलों में न्यायालय को निष्पक्ष रहते हुए कठोर दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, ताकि जनता का भरोसा वित्तीय संस्थानों और न्याय व्यवस्था पर बना रहे।