
अंजनी सक्सेना
आपने भगवान विष्णु को सर्प शैया पर विराजमान तो अनेक जगह देखा होगा लेकिन एक ऐसा भी मंदिर है जहाँ भगवान भगवान शंकर सर्प शैय्या पर विराजमान हैं। इस मंदिर को नागचंद्रेश्वर के नाम से जाना जाता है और यह मंदिर वर्ष में केवल एक बार नागपंचमी के दिन ही खोला जाता है। यह मंदिर मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में है। महाकाल मंदिर के शिखर तल पर स्थापित इस नागचंद्रेश्वर प्रतिमा के दर्शन करने के लिए उज्जैन में प्रतिवर्ष इस दिन लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन अद्भुत, अनुपम और विलक्षण हैं। यहां भगवान महाकाल विविध स्वरुपों में विराजमान हैं। वे कहीं स्वप्नेश्वर महादेव के रुप में दर्शन देते हैं तो कहीं बृहस्पतेश्वर महादेव के रुप में। अकेले महाकाल परिसर में ही नवग्रहों से लेकर अन्य अनेक अनगिनत रुपों में भगवान महाकाल विराजमान हैं। इसी मंदिर में वे भगवान नागचंद्रेश्वर भी विराजमान हैं जो सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही अपने भक्तों को दर्शन देते हैं।
लाखों करोड़ों शिवभक्तों की आस्था का केंद्र नागचन्द्रेश्वर मंदिर एक अद्वितीय मंदिर है जो भगवान शिव और नाग देवता को समर्पित है। महाकाल परिसर के गर्भग्रह में देवाधिदेव महाकाल अपने विशाल स्वरुप में स्थापित हैं। इसी मंदिर के ठीक ऊपर भगवान सदाशिव ओंकारेश्वर स्वरुप में विराजित हैं और इनके ठीक ऊपर भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर हैं। नागचन्द्रेश्वर मंदिर वर्ष में केवल एक दिन, नाग पंचमी के अवसर पर खुलता है। स्कंद पुराण के अवंत्यखंड में नागचन्द्रेश्वर का उल्लेख है। पुराणों में वर्णित कथाओं और विवरणों के अनुसार, नागचन्द्रेश्वर मंदिर भगवान शिव और नागराज तक्षक से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि सर्पों के राजा तक्षक ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घनघोर तपस्या की। नागराज की कठोर तपस्या से भगवान शंकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें अमरता का वरदान प्रदान किया। महादेव की कृपा पाकर नागराज तक्षक महाकाल वन में ही वास करना चाहते थे लेकिन वे यह भी चाहते थे कि इससे उनकी शिवाराधना में कोई विघ्न न आए। उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए इस मंदिर के द्वार वर्ष में केवल एक दिन नागपंचमी पर ही खोले जाते हैं। परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के करीब इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया परिवार के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। श्री नागचंद्रेश्वर भगवान की यह मनमोहक प्रतिमा ग्यारहवीं सदी में नेपाल से लाकर स्थापित की गयी है। इस मूर्ति में भगवान शिव, माता पार्वती, दोनों पुत्रों गणेशजी और स्वामी कार्तिकेय सहित विराजमान हैं। मूर्ति में ऊपर की ओर सूर्य और चन्द्रमा भी है। माना जाता है कि संपूर्ण विश्व में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव पूरे परिवार के साथ नाग की शैय्या पर विराजमान हैं। इसमें नागचंद्रेश्वर सात फनों से सुशोभित हैं। मान्यता है कि उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। नागपंचमी के अवसर पर नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा की जाती है। यहां भगवान नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा की परंपरा है। त्रिकाल पूजा का मतलब होता है, तीन अलग-अलग समय पर अलग अलग पूजा। जिसमें सबसे पहली पूजा मध्यरात्रि में महानिर्वाणी होती है, दूसरी पूजा नागपंचमी के दिन दोपहर में शासन द्वारा की जाती है और तीसरी पूजा नागपंचमी की शाम को भगवान महाकाल की पूजा के बाद मंदिर समिति करती है। इसके बाद रात बारह बजे फिर से एक वर्ष के लिए कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
