
मुंबई। मुंबई साइबर पुलिस ने एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए एक ऐसे जटिल धोखाधड़ी नेटवर्क का पर्दाफाश किया है जो निवेशकों को ठगने के लिए प्रमुख भारतीय शेयर बाजार विशेषज्ञों के डीपफेक वीडियो का इस्तेमाल करता था। पुलिस ने इस घोटाले में कथित संलिप्तता के आरोप में बेंगलुरु से चार लोगों को गिरफ्तार किया है। जांच में खुलासा हुआ है कि चीनी कंपनियों ने इन भ्रामक निवेश विज्ञापनों को ऑनलाइन प्रसारित करने के लिए करोड़ों रुपये के ठेके पर भारतीय मार्केटिंग फर्मों को नियुक्त किया था। गिरफ्तार लोगों में दो इंजीनियर और एक एमबीए स्नातक शामिल हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह रैकेट सुनियोजित और तकनीकी रूप से उन्नत था। पुलिस का मानना है कि यह भारत में निवेश धोखाधड़ी के लिए डीपफेक तकनीक के इस्तेमाल का पहला मामला हो सकता है। यह मामला तब सामने आया जब एक प्रतिष्ठित शेयर बाजार विशेषज्ञ ने सोशल मीडिया पर अपना फर्जी वीडियो देखकर मुंबई साइबर पुलिस से संपर्क किया। इन छेड़छाड़ किए गए वीडियो में शेयर ट्रेडिंग से जुड़ी झूठी और भ्रामक जानकारी फैलाई जा रही थी। शिकायत पर संज्ञान लेते हुए डीसीपी (साइबर अपराध) पुरुषोत्तम कराड ने तत्काल जांच के आदेश दिए। साइबर पुलिस (पश्चिम क्षेत्र) की वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक सुवर्णा शिंदे के नेतृत्व में एक विशेष टीम ने फर्जी वीडियो के स्रोत का पता लगाया। जांच में पता चला कि वीडियो सबसे पहले असम की एक महिला के अकाउंट से अपलोड किए गए थे। पूछताछ में उसने बताया कि वह बेंगलुरु स्थित “वैल्यूलीफ” नामक विज्ञापन एजेंसी के लिए काम करती थी, जो यह अभियान चला रही थी। इस आधार पर पुलिस ने कंपनी के बेंगलुरु कार्यालय पर छापा मारा और पुष्टि की कि वही एजेंसी डीपफेक प्रचार वीडियो बनाने और प्रसारित करने के लिए जिम्मेदार थी। पुलिस ने जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया है उनकी पहचान जिजिल सेबेस्टियन (44), दीपायन तपन बनर्जी (30), डैनियल अरुमुघम (25) तीनों बेंगलुरु निवासी और चंद्रशेखर भीमसेन नाइक (42), कोपरी, ठाणे (पूर्व) निवासी के रूप में हुई है। पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि ये वीडियो हांगकांग स्थित “फर्स्ट ब्रिज” नामक कंपनी के निर्देश पर बनाए गए थे, जिसने इस अभियान के लिए भारतीय फर्म को लगभग ₹3 करोड़ का भुगतान किया था। पुलिस के अनुसार आरोपियों को पता था कि वीडियो फर्जी हैं और लोगों को आर्थिक नुकसान पहुंचा सकते हैं, लेकिन उन्होंने इन्हें प्रसारित करना जारी रखा। जब मेटा (फेसबुक) ने इन्हें गलत सूचना के रूप में चिह्नित किया, तो आरोपियों ने पकड़ से बचने के लिए विज्ञापन खातों की संख्या 18 से बढ़ाकर 38 कर दी और अपना डोमेन दुबई में स्थानांतरित कर लिया। ये धोखाधड़ी वाले वीडियो 1 जुलाई से 18 जुलाई के बीच प्रसारित किए गए थे, जिसके बाद मेटा ने इन्हें हटा दिया। मुंबई पश्चिम क्षेत्र साइबर पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धाराएँ 418(4), 419(2), 420(2) और 465(2) के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराएँ 66(ए) और 66(डी) के तहत मामला दर्ज किया है। अदालत ने सभी चार आरोपियों को 20 अक्टूबर तक पुलिस हिरासत में भेज दिया है। पुलिस अब यह पता लगाने में जुटी है कि इन फर्जी विज्ञापनों के माध्यम से कितने निवेशकों को ठगा गया और क्या इसी तरह के अभियान अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी चलाए जा रहे हैं।