बैठे-बैठे क्या करें, करना है कुछ काम, हम सबके बस का कुछ नहीं, चलो बदलें शहरों के नाम. महाराष्ट्र की राजनीति में हर पार्टी का यही हाल है. कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर का नाम बदल कर छत्रपति संभाजीनगर कर दिया गया है. इसका क्रेडिट लेने की लड़ाई अभी पूर्व की ठाकरे सरकार और अब की शिंदे-फडणवीस सरकार में खत्म नहीं हुई है. इस बीच राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस ने भी नाम बदलने की पॉलिटिक्स में अपनी नाक घुसा दी है. विधायक राजू पाटील ने अब अहमदाबाद का नाम बदलने की मांग उठा दी है.
एमएनएस की यह मांग जैसे ही आई, कि उद्धव गुट ने सोचा हम क्यों पीछे रहें भाई! सो, सुषमा ताई अंधारे के दिमाग के बल्ब ने किए उजाले और दिया बीजेपी को घेरने का धांसू आइडिया. सुषमा ताई बोली एक काम करो, बीजेपी इस वक्त अपने आप को वीर सावरकर का बड़ा भक्त बता रही है. तो फडणवीस जी से कहो, केंद्र में भी उन्हीं की सरकार है, बात करें और अहमदाबाद का नाम ‘सावरकर नगर’ रखवा दें.
हम ही हर बार उठाएं धनुष? आप सब क्या सिर्फ बाण चलाएंगे- BJP
जवाब में बीजेपी के सीनियर लीडर और कैबिनेट मिनिस्टर सुधीर मुनगंटीवार ने कहा कि नाम रखने की एक प्रक्रिया होती है. बाकी कामों के लिए तो शरद पवार दस बार उनसे (बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व) मुलाकात करते रहते हैं ना. अजित पवार भी 12 विधायकों की नियुक्त का मुद्दा बार-बार राज्यपाल से उठाते थे. तो जाएं वे अहमदाबाद के नामांतरण की मांग भी उठाएं. गुजरात में भी कांग्रेस है ना, हम यहां विपक्ष में थे तो लगातार औरंगाबाद के नामांतरण के लिए मांग कर रहे थे. अब गुजरात में यह मांग कांग्रेस भी कर सकती है. सिर्फ बीजेपी से ही क्यों कर रहे हैं डिमांड? चलिए सर्वदलीय बैठक कीजिए. मांग उठाने के लिए आगे बढ़िए. मिल कर चलते हैं.
जैसे बाजार और बाजारवाद में है फर्क, वैसे ही मुद्दा और मुद्दा’वाद’ भी है अलग
तो, दोस्तों! ये नेता लोग तो इसी तरह कहीं भी, कभी चल पड़ते हैं. उसका नतीजा निकले, इसकी चिंता में नहीं पड़ते हैं. एक होता है बाजार और दूसरा होता है बाजारवाद. कुछ चीजों (जैसे- आटा, चावल, शक्कर) के लिए बाजार की जरुरत होती है. कुछ चीजों के लिए बाजार में जरूरत पैदा (जैसे- ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स, नेटफ्लिक्स, कोल्ड ड्रिंक्स) करनी होती है. इसी तरह कुछ तो जनता के अपने मुद्दे (महंगाई, बेरोजगारी) होते हैं. कुछ मुद्दे जनता के बीच पैदा (नामांतरण, धर्मांतरण, ‘विषयांतरण’) किए जाते हैं. जब सरकार के पास रियल इशूज को हल करने का कोई रास्ता नजर नहीं आता है और विपक्ष भी जड़ से कटा होने की वजह से इन रियल इशूज से कोई वास्ता नहीं रख पाता है, तब फिजूल का मुद्दा गरमाता है. किसी भी शहर का नाम बदलने से आम आदमी के जीवन में क्या फर्क पड़ जाएगा? लेकिन देखिएगा, यह मुद्दा गरमाएगा.
ईर कहें चलो गुलेल बनाई…हमउ कहा चलो हमउ गुलेल बनाई
हरिवंश राय बच्चन का लिखा और अमिताभ बच्चन का गाया हुआ एक गाना याद आ रहा है-
एक रहिन ईर, एक रहिन बीर, एक रहिन फत्ते, एक रहिन हम…
ईर कहें चलो गुलेल बनाई
बीर कहें चलो गुलेल बनाई
पत्ते कहें चलो गुलेल बनाई
हमउ कहा चलो हमउ गुलेल बनाई…
सब एक दूसरे की नीति देखकर अपनी नीति बदलते हैं, सबकी एक लिपि है, एक गति है…सब एक रीति से चलते हैं.