
क्या मुंबई स्लम बोर्ड के मुख्य अधिकारी सतीश भारतीय चल रहे भ्रष्टाचार पर लगाम लगा पाएंगे?
मुंबई। मुंबई के पश्चिम उपनगर में सांसद, विधायक और विधान परिषद सदस्यों की विकास निधियों के दुरुपयोग का मामला सामने आ रहा है। म्हाडा के अधीन मुंबई झोपड़पट्टी सुधार मंडल (स्लम बोर्ड) में बैठे कार्यकारी अभियंता, उप अभियंता और शाखा अभियंता ठेकेदारों के साथ मिलकर भ्रष्टाचार का जाल बुन रहे हैं। इसका सीधा असर झोपड़पट्टी इलाकों के विकास कार्यों पर पड़ा रहा है, जो अधूरे और मानकों से कमतर साबित हो रहे हैं। कहने को यह झोपड़पट्टी सुधार मंडल है, लेकिन हकीकत यह है कि वर्षों से करोड़ों रुपये की निधि झोपड़पट्टी इलाकों में खर्च किए जाने के बावजूद वहाँ सुधार नहीं हुआ। इन क्षेत्रों की स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है। सूत्र बताते हैं कि ठेकेदारों और अधिकारियों का गठजोड़ योजनाओं की राशि में भारी कमीशनखोरी कर रहा है, जिससे जनता के विकास का पैसा निजी जेबों में जा रहा है। मिली जानकारी के अनुसार, मुंबई स्लम बोर्ड के पश्चिम उपनगर कार्यालय में तैनात उप अभियंता विक्रम निंबालकर, रितेशकुमार साहू, और आनंद सोनेकर पर ठेकेदारों के साथ मिलकर विकास निधि से होने वाले कार्यों में हेराफेरी करने के गंभीर आरोप लगे हैं। बताया जा रहा है कि इन अधिकारियों ने ठेकेदारों से कमीशन लेकर कामों की गुणवत्ता से समझौता किया और कई काम अधूरे छोड़ दिए जाते है! ज्ञात हो कि बांद्रा पूर्व, बांद्रा पश्चिम, विलेपार्ले, अंधेरी पूर्व, वर्सोवा, गोरेगांव, दिंडोशी, मालाड पश्चिम, कांदिवली पूर्व, चारकोप, बोरीवली, दहिसर विधानसभा सहित उत्तर मध्य और उत्तर मुंबई लोकसभा क्षेत्र मेँ सांसद, विधायक व विधान परिषद सदस्य व अन्य विकास निधि से हुए कामों में बड़े पैमाने पर कमीशनखोरी हुई हैं। जिसके चलते विकास काम अधूरा और तय मापदंडों के अनुसार नहीं हुआ हैं। हालाकि कहने के लिए एमपी, एमएलए, एमएलसी के विकास निधि से होने वाले कार्यो की समीक्षा के लिए कमेटी बनी हैं। लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां कर रही हैं। इस भ्रष्टाचार में जिला नियोजन अधिकारी की संलिप्तता से इनकार नही किया जा सकता।
निगरानी व्यवस्था बेअसर, भ्रष्टाचार पर पर्दा
हालाँकि इन निधियों की निगरानी और समीक्षा के लिए समितियाँ गठित हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही। अधिकारी और ठेकेदारों की मिलीभगत ने पूरे सिस्टम को खोखला बना दिया है। शिकायतें बार-बार उठती हैं, मगर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ “औपचारिक जांच” की जाती है जो समय के साथ ठंडे बस्ते में चली जाती है।
गौरतलब है कि जनप्रतिनिधियों के विकास निधि का दुरुपयोग व भ्रष्टाचार की शिकायतों को देखते हुए 2009 में प्रशासनिक सुधार आयोग ने कहा था कि जिस तरह जनता के पैसे का दुरुपयोग हो रहा है, उसे देखते हुए इन निधियों की व्यवस्था तत्काल बंद कर देनी चाहिये। लेकिन ऐसा नही हुआ।
अब सवाल यह है कि मुंबई झोपड़पट्टी सुधार मंडल के मुख्य अधिकारी (सीओ) सतीश भारतीय इस मामले को कितनी गंभीरता से लेते हैं। क्या वे उप अभियंताओं और ठेकेदारों के खिलाफ सख्त जांच के आदेश देंगे, या फिर यह मामला भी बाकी भ्रष्टाचारों की तरह फाइलों में दबा रहेगा?