
मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने दूसरी शादी से जुड़े एक मामले में व्यवस्था दी है कि पहली शादी के अस्तित्व में रहने के बावजूद दूसरी शादी करना बलात्कार है और आरोपी को उससे जुड़ी धाराओं में सजा हो सकती है।
पहली शादी के वैध रहते दूसरी शादी करने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर को रद्द करने से इनकार करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि यह न केवल द्विविवाह की श्रेणी में आता है, बल्कि आरोपी व्यक्ति का आचरण भी बलात्कार के अपराध के दायरे में आता है। जस्टिस नितिन साम्ब्रे और राजेश पाटिल ने २४ अगस्त को उस व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी, जिस पर पुणे पुलिस ने आईपीसी की धारा ३७६ (बलात्कार) और ४९४ (द्विविवाह) के तहत मामला दर्ज किया था। एफआईआर में कहा गया है कि फरवरी २००६ में पीड़ित महिला के पति की मौत हो जाने के बाद आरोपी व्यक्ति नैतिक समर्थन देने के लिए उसके करीब आया था, और बाद में गलतबयानी कर उससे शादी कर ली। ये दोनों शिक्षाविद हैं। आरोपी ने पीड़िता से कहा था कि उसकी अपनी पत्नी से नहीं बनती है। बाद में उसने पीड़िता को विश्वास दिलाया कि उसने पहली पत्नी को तलाक दे दिया है। इसके बाद जून २०१४ में दोनों शिक्षाविदों ने शादी कर ली और ३१ जनवरी २०१६ तक एकसाथ रहे। फिर आरोपी ने पीड़िता को छोड़ दिया और अपनी पहली पत्नी के पास वापस चला गया। पूछताछ करने पर पीड़िता को एहसास हुआ कि आरोपी शख्स ने गलत तरीके से खुद को तलाकशुदा बताया था और झूठे वादे के तहत उससे शादी की और झूठे वादे के तहत उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। आरोपी पुरुष के वकील ने कहा कि शिकायतकर्ता महिला को पता था कि २०१० में आरोपी की पत्नी के खिलाफ शुरू की गई तलाक की कार्यवाही तुरंत वापस ले ली गई थी। इस पर जजों ने कहा कि एक तरफ, आरोपी दूसरी शादी की बात स्वीकार कर रहा है, जबकि उसकी पहली शादी चल रही थी और दूसरी तरफ, उसने दावा किया कि उनका रिश्ता सहमति से बना था। जज ने कहा, जब शिकायतकर्ता की पहली शादी चल रही थी, तब दूसरी महिला के साथ शादी करना और शारीरिक संबंध स्थापित करना धारा ३७६ (बलात्कार) की श्रेणी में आता है। कोर्ट ने इसके साथ ही आरोपी के खिलाफ दायर एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया। अब उसके खिलाफ बलात्कार का केस चल सकता है।