Thursday, November 6, 2025
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स्वयं को गढ़ने की प्रक्रिया है मंडला आर्ट

विवेक रंजन श्रीवास्तव
मंडला चित्र बनाना स्वयं को गढ़ने की प्रक्रिया है। जब कलाकार वृत्त बनाता है, तो वह ब्रह्मांड नहीं, अपने भीतर के अंधेरे में एक चित्र दीप जलाता है ,जिसकी वर्तिका में वह अनंत की कलात्मक अभिव्यक्ति करता है। और शायद यही कला का, जीवन का, और आत्मा का परमात्मा से सम्मिलन है, जिसे फर्श पर , दीवार तथा छत पर सजाया जा सकता है। दरअसल मनुष्य जब अपने भीतर उतरता है तो सबसे पहले उसे एक बिंदु दिखाई देता है। यह बिंदु ही चेतना का केंद्र है, वहीं से उसकी कला, उसकी संवेदना, उसका ज्ञान और उसका संसार फैलता है। यही केंद्र जब वृत्ताकार आकार लेता है तो उसे हम मंडला कहते हैं। यह वृत्ताकार रचना किसी चित्रकला का मात्र रूपांकन नहीं, बल्कि आत्मा का ज्यामितीय विस्तार है। मंडला चित्रों का इतिहास मानव सभ्यता जितना पुराना है। भारत के बौद्ध और हिंदू दर्शन में यह ब्रह्मांड की रचना का प्रतीक रहा है। ‘मंडल’ का अर्थ ही होता है ‘वृत्त’, जिसमें केंद्र बिंदु ब्रह्म है और उससे प्रसारित होती ऊर्जा संसार की समग्रता का बोध कराती है। नेपाल, तिब्बत, चीन और जापान तक इसकी आध्यात्मिक ध्वनि सुनाई देती है। जब तिब्बती भिक्षु रंगीन रेत से मंडला चित्र बनाते हैं और फिर उसे हवा में बिखेर देते हैं, तो वह कला नहीं, जीवन का दर्शन बन जाता है , सृजन भी, और पुनः ब्रम्हांड में बिखर कर मिलन भी।
आज की भाषा में कहें तो मंडला आर्ट ध्यान की एक दृष्टिगत तकनीक है। जहां शब्द नहीं, रेखाएं बोलती हैं। रंगों के माध्यम से मन अपने भीतर के संतुलन को खोजता है। एक-एक वृत्त अपने आप में आत्मसंवाद का प्रतीक है। जिस समय कलाकार इसे बनाता है, वह स्वयं अपने ‘सेंटर’ में होता है। इसीलिए यह कला मनोचिकित्सा और तनाव मुक्ति में भी प्रयोग की जा रही है। यूरोप और अमेरिका में इसे ‘आर्ट थेरेपी’ के रूप में अपनाया गया है। परंतु इस कला का वास्तविक सौंदर्य केवल उसकी ज्यामिति में नहीं, बल्कि उसकी अध्यात्मिकता में छिपा है। यदि आप किसी भी मंडला चित्र को ध्यान से देखें, तो पाएंगे कि हर आकृति भीतर से बाहर की यात्रा करती है। जैसे आत्मा शरीर में प्रवेश करती है, और फिर अनुभवों से गुजरते हुए अपने मूल स्रोत की ओर लौटती है। यह कला ‘बाह्य’ से ‘आंतरिक’ और ‘आंतरिक’ से ‘परम’ तक की यात्रा का प्रतीक बन जाती है। मंडला आर्ट का एक और रूप लोक में भी मिलता है। हमारी अल्पज्ञात ग्रामीण स्त्रियां जब आँगन में अल्पना या रंगोली बनाती हैं, तो अनजाने में वे भी ब्रह्मांड की इस ज्यामिति को जीती हैं। केंद्र में रखा दीपक, उसके चारों ओर फैलते रंग और सममिति, सब जीवन चक्र की याद दिलाते हैं। इसे शास्त्र न कहें तो भी यह सहज भारतीय संवेदना का प्रकट रूप है। आज जब डिजिटल युग में मनुष्य का ध्यान भंग हो रहा है, मंडला आर्ट मन को केंद्रित करने का माध्यम बनकर उभरा है। मोबाइल पर उंगलियों से रंग भरना भी किसी साधना से कम नहीं। अनेक ऐप्स पर लोग इसे बनाते हैं और अपने भीतर शांति खोजते हैं। कहीं यह कला ध्यान बन जाती है, तो कहीं सजावट। परंतु हर रूप में यह हमें भीतर झाँकने की प्रेरणा देती है। मंडला आर्ट केवल आध्यात्मिक नहीं, वैज्ञानिक भी है। इसकी रचनाओं में गणित का अनुपात, भौतिकी की समरूपता और मनोविज्ञान की गहराई एक साथ मिलती है। शायद इसी वजह से यह कला विश्व के कलाकारों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी है। जो कभी बौद्ध ग्रंथों के पृष्ठों पर सीमित थी, आज वही गैलरियों, डिज़ाइन स्टूडियो और स्कूलों की कक्षाओं में चर्चित हो चुकी है, एवं शोध का बिंदु है। यहां एक प्रश्न भी उठता है, क्या मंडला आर्ट की आधुनिक व्यावसायिकता उसके मूल भाव को कमजोर नहीं कर रही? जब यह कला ध्यान की साधना से हटकर महज ‘डिज़ाइन’ बन जाती है, तो कहीं न कहीं उसका आध्यात्मिक अर्थ छूट जाता है। मंडला आर्ट का उद्देश्य सौंदर्य प्रदर्शन नहीं, आत्मानुभूति है। यदि हम इसे केवल दीवार सजाने का उपकरण बना दें, तो वह उसी तरह निरर्थक हो जाएगी जैसे मंदिर के दीपक में तेल न हो। मंडला कला हमें यह भी सिखाती है कि हर चीज का एक केंद्र होता है , हमारे विचारों का, भावनाओं का, समाज का, देश का। यदि वह केंद्र खो जाए, तो सारी संरचना बिखर जाती है। जिस प्रकार मंडला की एक रेखा गलत हो जाए तो कला चित्र का पूरा संतुलन बिगड़ जाता है, वैसे ही जब मानव अपने मूल मूल्यों से हट जाता है तो उसका जीवन असंतुलित हो जाता है।कला का यह रूप आधुनिक मनुष्य के लिए चेतावनी भी है और औषधि भी। जब सब दिशाएँ उलझ जाएँ, तो भीतर लौटकर अपने केंद्र को पहचानना ही मुक्ति का मार्ग है। मंडला यही कहता है, जहां से चले थे, वहीं लौटो। बिंदु से वृत्त और वृत्त से पुनः बिंदु की यात्रा में ही सृजन का रहस्य छिपा है। मंडला आर्ट इसलिए केवल एक चित्र नहीं, बल्कि जीवन का सूत्र है। यह सिखाता है कि बाहरी जटिलताओं में खो जाने से बेहतर है कि हम अपने भीतर की सरलता खोजें। क्योंकि हर रंग, हर रेखा, हर आकार अंततः उसी केंद्र की ओर संकेत करता है जहां शांति है, मौन है, और पूर्णता है। एक महत्वपूर्ण बात मध्यप्रदेश में मंडला फोर्ट नाम का एक प्राचीन आदिवासी बाहुल्य आबादी का एक वन्य जिला भी है, जहां मां नर्मदा का मंडला नगर की मंडलाकार (लगभग अंग्रेजी के यू आकार में) परिक्रमा करता प्रवाह है।

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