
मुंबई। 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में मुंबई की एनआईए विशेष अदालत द्वारा सभी सात आरोपियों को बरी किए जाने के बाद ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द को लेकर बहस फिर से तेज हो गई है। इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने स्पष्ट रूप से कहा कि “आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता”, और जो लोग आतंकवाद को धर्म या रंग से जोड़ते हैं, वे वास्तव में आतंकवाद के समर्थक हैं। शंकराचार्य ने कहा, “आतंकवादी तो आतंकवादी होता है… आतंकवाद शब्द में रंग का क्या मतलब है? इसके खिलाफ पूरी तरह असहिष्णु नीति अपनाई जानी चाहिए। मालेगांव विस्फोट हुआ, लेकिन आप उसके दोषियों को नहीं पकड़ पाए। जो लोग आतंकवाद में रंग ढूंढते हैं, वे खुद आतंकवाद के समर्थक हैं। गौरतलब है कि ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द का राजनीतिक इस्तेमाल सबसे पहले 2002 के गुजरात दंगों के बाद सुनाई दिया, लेकिन यह विशेष रूप से 2008 के मालेगांव धमाकों के बाद उभरा, जब कुछ राजनीतिक दलों ने इस शब्द का खुलकर प्रयोग किया। तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी इस शब्द का उल्लेख किया था, जिससे यह पूरे देश में एक विवादास्पद मुद्दा बन गया था।|
अदालत का फैसला और प्रतिक्रिया
31 जुलाई 2025 को, एनआईए की विशेष अदालत ने मालेगांव विस्फोट के सभी सात आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे सिद्ध करने में विफल रहा। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि महाराष्ट्र सरकार पीड़ितों के परिवारों को 2-2 लाख रुपये और घायलों को 50,000 रुपये का मुआवज़ा दे। बरी किए गए आरोपियों में प्रमुख नाम पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय राहिरकर, सुधांकर धर द्विवेदी (उर्फ शंकराचार्य) और समीर कुलकर्णी शामिल हैं। कोर्ट ने उनके जमानत बांड रद्द करते हुए जमानतदारों को भी मुक्त कर दिया। फैसले से पहले 323 अभियोजन गवाहों और 8 बचाव पक्ष के गवाहों से जिरह की गई थी।
क्या हुआ था मालेगांव में?
29 सितंबर 2008 को मालेगांव के भिक्कू चौक पर एक मस्जिद के पास खड़ी मोटरसाइकिल में लगे विस्फोटक में धमाका हुआ था, जिसमें 6 लोग मारे गए और 95 अन्य घायल हुए थे। शुरू में इस मामले में 11 लोग आरोपी थे, लेकिन अंततः 7 पर आरोप तय किए गए। पीड़ितों की ओर से केस लड़ने वाले वकील ने कहा है कि वे उच्च न्यायालय में इस फैसले को चुनौती देंगे। यह देखना बाकी है कि उच्च न्यायालय इस पर क्या रुख अपनाता है, लेकिन एनआईए अदालत के इस फैसले ने ‘भगवा आतंकवाद’ की अवधारणा पर फिर से विचार और विमर्श की ज़मीन तैयार कर दी है।