
जयपुर:(Jaipur) जयेष्ठ अमावस्या पर शुक्रवार को न्याय के देवता शनिदेव का जन्मोत्सव भक्ति भाव से मनाया गया। तेलाभिषेक करने के लिए सुबह से ही शनि देव के मंदिरों भक्तों का तांता लगा रहा। तेलाभिषेक के बाद शनिदेव को नवीन पोशाक धारण करवाने के बाद शृंगार कर फूल बंगले में विराजमान किया गया।
जनता स्टोर स्थित सिद्धपीठ शनि धाम में महंत नारायण शर्मा के सान्निध्य में शनिदेव का तेलाभिषेक किया गया। इसके बाद गंगाजल से शुद्ध स्नान करवा कर नवीन पोशाक धारण करवा झांकी सजाई गई। गेटोर स्थित शनि-साईं धाम मंदिर में महंत ब्रजमोहन शर्मा के सान्निध्य सुबह 9 से 12 बजे तक शनिदेव का तेलाभिषेक किया गया। इसके बाद पंचामृताभिषेक कर तारा जड़ित पोशाक धारण करवाई गई।
शाम को शनिदेव को फूल बंगले में विराजमान कर खीर कंगन का भोग लगाकर महाआरती की जाएगी। जोरावर सिंह गेट स्थित शनि मंदिर में पंडित ओमप्रकाश शर्मा के सान्निध्य में तेलाभिषेक किया गया। इस मौके पर मंदिर परिसर को भी गुब्बारों से सजाया गया। इसके अलावा एसएमएस स्थित शनि मंदिर, बास बदनपुरा स्थित प्राचीन शनि मंदिर, इंदिरा गांधी नगर स्थित शनि मंदिर में भी भगवान शनि का तेलाभिषेक कर मनमोहक शृंगार किया गया।
वट सावित्रीः सुहागिनों ने वट वृक्ष की पूजा कर की परिवार के सुख-सौभाग्य की कामना
ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को वट सावित्री व्रत, भौमवती अमावस्या और शनि जयंती का पर्व सर्वार्थ सिद्धि योग बड़ी धूमधाम से मनाया गया । शहर के सभी शनि मंदिरों में अभिषेक, शृंगार, छप्पन भोग झांकी सहित अन्य आयोजन हुए। शुक्रवार को अमावस्या होने के कारण शनि जयंती का महत्व और अधिक बढ़ गया है। राजधानी के सभी शनि मन्दिरों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ देखने को मिली। भौमवती अमावस्या पर श्रद्धालु गलताजी में स्नान भी किया।
ज्येष्ठ अमावस्या शुक्रवार को महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखकर परिवार के सुख-सौभाग्य की कामना की गई । वहीं महिलाएं दीर्घायु, अखंड सौभाग्य, सूख-समृद्धि व उन्नति के लिए बड़ के पेड़ की पूजा-अर्चना की गई और परिक्रमा की गई। वहीं बड़ अमावस पर धार्मिक नगरी में अनेक अनुष्ठान आयोजित हुए। महिलाओं ने एकत्रित होकर सती सावित्री की कथा का श्रवण कर सावित्री को जो वरदान यमराज ने दिये उसी वरदान के आधार पर अपने पति की दीर्घायु की कामना ईश्वर से की।
इसके अलावा पर्यावरण से जुड़ी संस्थाएं बड़ का पौधा भी लगाया गया। सुबह से ही वट वृक्ष की पूजा करने का दौर शुरू हुआ तो दोपहर तक चलता रहा। सुबह महिलाएं परिवार की बुजुर्ग महिलाओं के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया । ऋतु फल भेंट कर बायना निकाली गई। व्रत की कथा सुनकर भोजन किया । शास्त्रों में मान्यता है कि यह व्रत करने से पति की अकाल मृत्यु नहीं होती।
मंदिर के महंत राजेश शर्मा ने बताया कि इस दिन महिलाएं वट वृक्ष को धागे से लपेटती है और वट वृक्ष के पतों के गहने बनाकर पहनती है, जिससे ज्ञान प्राप्त होता है। महंत मूलचंद शर्मा ने बताया कि वट वृक्ष पूजा यानि बुजुर्गों की सेवा का ज्ञान जीते जी वृक्ष जीवन देते हैं। वृक्ष सूखने के उपरांत लकड़ी देकर जाते हैं। सत्यवान-सावित्री की कथा अनुसार सावित्री अपने पति के प्राण यमराज से वापस लाई थी, उसका संबंध भी इस वट वृक्ष के साथ ही है। सत्यवान के प्राण वापस इसी वृक्ष के नीचे गए थे। वट वृक्ष की पूजा जलदान, दीपदान और इस दिन पितरों की याद में अन्न दान करके पुण्य अर्जित करना चाहिए।