
वरिष्ठ लेखक- जीतेंद्र पांडेय
किसी भी क्षेत्र में भारत सरकार के दावे के बावजूद फिसड्डी ही है। भारत जो भ्रष्टाचार के मामले में 2022 में 85 प्रतिशत रहा था 2023 में बढ़कर 93 प्रतिशत हो गया है। इसमें सबसे अधिक भ्रष्टाचार शासन में उच्च स्तर पर है। इसके बाद प्रशासन का नंबर आता है। कहा जाता है कि भारत में कोई भी कार्य किसी भी सरकारी कार्यालय में बिना घूस दिए होना संभव ही नहीं है। यही कारण है कि भारत वैश्विक स्तर पर बेहद पिछड़ा हुआ है। यहां एक लाख रूपए मासिक वेतन पाने वाला सरकारी अधिकारी तीन हजार आय करने वाले सामान्य जन से भी घूस मांगता है बड़ी बेशर्मी के साथ। आइए, विभिन्न क्षेत्रों में भारत की शेष दुनिया के सामने आंकड़े और स्थिति देखते हैं। सरकार कुल जीडीपी का मुश्किल से 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करती है जबकि सबको शिक्षित करने के लिए भारत को अपनी जीडीपी का 25 प्रतिशत व्यय करने की जरूरत है। सच तो यह है कि सरकार शिक्षा सर्वसुलभ कराने के अपने दायित्व से भागकर सरकारी शिक्षा संस्थान बंद कर रही है। प्राइवेट संस्थान शिक्षा का बाजारीकरण कर रहे। विडंबना हरियाणा की बीजेपी सरकार के नियम में देखिए।यदि सरकारी स्कूल में पढ़ना है तो सरकार 500 रूपये फीस लेगी जबकि प्राइवेट स्कूल में पढ़ने पर सरकार 1000 रूपये महीना देगी। शिक्षा के प्रति उपेक्षा भाव के कारण ही भारत दुनिया में 35 वे स्थान पर है।ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार भरपूर अन्न उत्पादन के बावजूद भारत विश्व के 125 देशों में 111 वे स्थान पर है। गरीबी में भारत ग्लोबल एमपीआई के अनुसार 107 देशों में 62 वे स्थान पर है। गरीबी के मूल में है बेरोजगारी। भारत में बेरोजगारी 37 प्रतिशत है। इसमें असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की गणना नहीं है जो देश के 60 प्रतिशत लोग प्राइवेट संस्थानों में जो नौ हजार वेतन में बारह घंटे काम करने को अभिशप्त हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत की स्थिति बहुत ही खराब है। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर नहीं मिलते। आवश्यक दवाएं भी सरकारी अस्पतालों में डुप्लीकेट मिलती हैं। लापरवाही मामले में भारत टॉप पर है। वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक के अनुसार विश्व के भारत 195 देशों में 57 वे स्थान पर है। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने ग्राम्य क्षेत्रों को बेहद करीब से देखा है। गांव की परेशानियों का साक्षात्कार किया है। तभी तो गांव की सच्चाई बयां करते हुए कहते हैं, गांव में अच्छी सड़कें नहीं हैं। पीने का शुद्ध जल तक नहीं है।गरीबी अभाव में जी रहे लोग।देश के कई क्षेत्रों में प्रदूषित जल पीने को बाध्य हैं लोग। घेंघा रोग से पीड़ित हैं।जहां अभी पानी उपलब्ध है भी तो सिंचाई के समय भूजल का बेजा दुरुपयोग होता है। टॉप ड्रेसिंग या फव्वारे विधि का उपयोग 90 प्रतिशत स्थानों तक नहीं पहुंचा है।खासकर उत्तर प्रदेश बिहार बंगाल पंजाब जैसे प्रदेशों में।दुनिया की आबादी में 16 प्रतिशत योगदान करने वाले भारत में पेयजल की उपस्थिति मात्र 4 प्रतिशत है। सन 2030 तक भारत की 75 प्रतिशत आबादी के सामने पीने के पानी का गंभीर संकट उपस्थित होने वाला है। जल संकट का सामना करने वाले देशों में भारत का 13 बा स्थान है जबकि जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में भारत का स्थान 120 पर है।बिजली उत्पादन में भारत यद्यपि दूसरे स्थान पर है लेकिन वितरण में सरकारी भेदभाव है। महानगरों, राजधानियों और नगरों में 24 घंटे, नगर पंचायतों में 20 घण्टे लेकिन गांव क्षेत्र में 16 घंटे बिजली वितरण का आदेश दिया है जबकि सच्चाई तो यह है कि दिन के समय लगातार दो घण्टे भी बिजली नहीं रहती और रात में कटौती या अनियमितता से किसान परेशान होते हैं।सन 2021 में 74 प्रतिशत भारतीय स्वस्थ आहार का खर्च वहन करने की स्थिति में नहीं है।खर्च करने की क्षमता में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है।चाइल्ड वेस्टिंग रेट यानी बाल कुपोषण में भारत का स्थान विश्व के 125 राष्ट्रों में 111 वे स्थान पर है। बाल मृत्यु दर भी भारत में उच्च स्तर पर। लड़कियों और गर्भिणी महिलाओं के कुपोषण मामले में भारत टॉप पर है। यद्यपि पुष्टाहार की व्यवस्था देश में की गई है लेकिन सच्चाई तो यह है कि सारे के सारे पुष्टाहार भैंस और गाय पालने वालों को बेच दिया जाता है।शिकायतों पर भी कोई कार्यवाही नहीं की जाती। प्रति व्यक्ति आय के मामले में सरकारी दावे झूठे हैं।सच तो यह है प्रति व्यक्ति तो दूर प्रति परिवार आय तीन हजार से लेकर चार हजार है महीने। व्यक्तिगत आय का डाटा सरकार पूंजीपतियों की हर सेकंड लाखों के आधार पर बताती है। आय के मामले में विश्व के 197 देशों में भारत 142 वे स्थान पर है क्योंकि यहां बेरोजगारी बहुत अधिक है। बेरोजगारी भारत में 37 प्रतिशत से बहुत ऊपर है।विश्व में भारत का स्थान 7 वा है। आवास की बात करें तो आधे से ज्यादा आबादी अब भी झोपड़ी में रहती है।विश्व में भारत का स्थान 55 देशों में 54 वा है जबकि सरकार झूठे दावे करती है कि उसने करोड़ों पक्के घर मुहैया कराए हैं।प्रधानमंत्री आवास योजना का आलम है कि 1 लाख 20 हजार में 20 से 30 हजार ग्रामप्रधान और कर्मचारी खा जाते हैं।भारतमें रहना, खाना बहुत महंगा हो गया है कारण सरकार का पूंजीपतियों के पक्ष में खड़ा होना। महंगाई दस गुना बढ़ी है। सरकारी आंकड़े झूठ के नमूने होते हैं। 2014 में 37 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे थी। ये आंकड़े बताते हैं। वर्तमान सरकार का झूठ कि तीस करोड़ को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया बेनकाब हो जाता है उसके द्वारा 80 करोड़ लोगों को 5 किलो मुफ्त राशन की घोषणा से। जबकि सरकार ने अगले पांच वर्ष तक 80 करोड़ लोगों को पांच किलो मुफ्त अनाज देने की घोषणा से प्रमाणित कर दिया है कि वह अगले पांच वर्षों तक 80 करोड़ जनता को गरीब बनाए रखना चाहती है। विश्व में भारत की हर क्षेत्र में दयनीय हालत है। आंकड़े हमारी सरकारों की नीति, कार्यपद्धति और मंशा पर सवाल उठाते हैं। ऐसा नहीं है कि देश में संसाधनों की कोई कमी है।संसाधन पर्याप्त हैं। फसलें भरपूर होती हैं। शाक भाजी फलों का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में होता है लेकिन देश के नब्बे प्रतिशत लोगों की सामर्थ्य के बाहर है पहुंच। इसके लिए हमारे देश के कर्णधारों की नियति भ्रष्टाचार और निकम्मापन जिम्मेदार है। टेक्सेस इतने अधिक हैं कि आग लग गई है मूल्यों में और क्रय शक्ति में ह्रास बेरोजगारी और प्राइवेट संस्थानों द्वारा कर्मचारियों के शोषण का है। कर्मियों को लाभ का 33 प्रतिशत वेतन देना चाहिए लेकिन शोषण करने वाला प्राइवेट सेक्टर देता है 4 प्रतिशत से लेकर 13 प्रतिशत तक ही। शेष कालाधन के रूप में लूट कर जमा करता है जिसपर सरकार अंकुश लगाना नहीं चाहती क्योंकि उनसे चुनावी चंदा लेती है। डोनेशन देने वालों को गलत तरीके से फायदा पहुंचाती है जैसा कि खदान मामले में नियमों में संशोधन कर सरकार ने कॉरपोरेट क्षेत्र को मुफ्त में सरकारी संस्थान बेच दिए। निश्चित है जनता के लिए सरकार कुछ नहीं करेगी। जनता को ही जागरूक होकर सोचना पड़ेगा। जनता को सजग होकर प्रत्याशियों से लिखित लेना पड़ेगा कि जनता को निशुल्क शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार देने के लिए काम करना पड़ेगा।यही ऐसा नहीं किया तो उनका इस्तीफा माना जाएगा।जागो जनता जागो।अपने अधिकार के लिए लड़ना सीखो।