
बारबाडोस। भारत में डिजिटल परिवर्तन अब संसदीय लोकतंत्र के लिए गौरव का विषय बन गया है। इस दिशा में हुई तकनीकी प्रगति ने लोकतांत्रिक प्रणाली को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और सहभागी बनाया है। यह बात महाराष्ट्र विधान परिषद के अध्यक्ष प्रो. राम शिंदे ने बारबाडोस में आयोजित 68वें राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान कही। प्रो. शिंदे ने सम्मेलन के दौरान “डिजिटल परिवर्तन के माध्यम से लोकतंत्र को बढ़ावा देने वाली तकनीक का लाभ उठाना और डिजिटल विभाजन को दूर करना” विषय पर आयोजित कार्यशाला में भारत के अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में तकनीक ने शासन व्यवस्था को नागरिकों के और करीब ला दिया है। उन्होंने अपने वक्तव्य में बताया कि ई-गवर्नेंस, डिजिटल पोर्टल्स और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) योजनाओं के माध्यम से अब नागरिक सीधे सरकार से जुड़े हुए हैं। यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान की परिणति है। उन्होंने ‘माईगव’ पोर्टल, ‘आरटीआई ऑनलाइन’, ‘डिजिलॉकर’, ‘उमंग ऐप’ और ‘प्रत्यक्ष लाभ अंतरण प्रणाली’ जैसी पहलों का उल्लेख करते हुए बताया कि इन योजनाओं से 80 करोड़ नागरिकों को सीधे लाभ मिल रहा है। प्रो. शिंदे ने आगे कहा कि भारत की जैम त्रिसूत्री’ जन धन खाता, आधार और मोबाइल ने वित्तीय समावेशन को नया आयाम दिया है। इसके साथ ही यूपीआई प्रणाली ने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल भुगतान नेटवर्क बना दिया है। शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में भी भारत ने डिजिटल तकनीक का प्रभावी उपयोग कर व्यापक परिवर्तन लाया है। उन्होंने बताया कि भारत के चुनाव आयोग ने भी तकनीकी नवाचारों के माध्यम से मतदान प्रणाली को पारदर्शी और सुलभ बनाया है, जिससे भारत ने विश्व में लोकतांत्रिक पारदर्शिता का एक नया मानदंड स्थापित किया है। हालाँकि, प्रो. शिंदे ने डिजिटल असमानता, गलत सूचना (मिसइन्फॉर्मेशन) और साइबर सुरक्षा की चुनौतियों को लेकर भी आगाह किया। उन्होंने कहा कि डिजिटल भारत की यह यात्रा केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के नवाचार की कहानी है। अंत में उन्होंने कहा- भारत की डिजिटल यात्रा प्रत्येक नागरिक की भागीदारी और उसकी आवाज़ पर आधारित है। यही भागीदारी एक समावेशी और सशक्त डिजिटल लोकतंत्र का निर्माण करती है।