
आजकल बीजेपी और इंडिया में इंडिया बनाम भारत को लेकर जुबानी तकरार बहुत बढ़ चुकी है। जैसे ही विपक्षी दलों द्वारा अपने नए संगठन का नाम इंडिया रखा बीजेपी में कुढ़न पैदा होने लगी जिसके कारण बीजेपी इंडिया पर तंज कसने लगी। उसका तंज निश्चित ही उसकी शासकीय असफलता का द्योतक है। इसके बाद बीजेपी पैतरेबाजी पर उतर आई और आकस्मिक संसद की बैठक आहूत कर चाल चली। बैठक के आमंत्रण में प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया। इस पर विवाद स्वाभाविक ही था। तब बीजेपी इंडिया शब्द को अंग्रेजी गुलामी से जोड़ने की नफरत तक उतर गई। कहा जाने लगा बीजेपी हर गुलामी के प्रतीक को मिटाने के लिए कृतासंकलप है। अगर यही हथावादिता है तो अंग्रेजों द्वारा बनाया संसद भवन सहित सारी इमारतें, रेलवे स्टेशन, रेल की पटरियां, हावड़ा सहित सारे पुल, मुगलों द्वारा बनवाए गए लालकिले, ताजमहल जैसी इमारतें भी तोड़नी होगी क्योंकि मुगल, तुर्क, यवन के सारे निर्माण जिनमें कुतुब मीनार है, नेस्त नामुद करना होगा। अंग्रेजी, उर्दू भाषा को खत्म कर देना पड़ेगा। क्योंकि ये भाषाएं भी तो विदेशी आक्रांताओं की हैं। देश के सभी शहरों और सड़कों के नाम बदलने होंगे। कुछ बदल भी चुकी है बीजेपी। भारतीय संविधान से भी इंडिया शब्द मिटाना पड़ेगा। संसद में आंग्लाभाषा और उर्दू में बहस खत्म करनी पड़ेगी। कचहरियों में कागजात तैयार करने, लिखने में भी उर्दू और अंग्रेजी खत्म करनी होगी। आरबीआई, एसबीआई, यूबीआई, खेलो इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसे नाम मिटाने होंगे। तात्पर्य यह कि गुलामी के प्रतीक सारे के सारे खत्म करने होंगे।
इंडिया शब्द को अंग्रेजों की देन मानने वाले क्या यह बताएंगे कि मेगास्थनीज कौन था? वह ब्रिटिश इंडिया के पहले था या बाद में है? जानकारी के लिए बता दें कि अंग्रेजों के हमारे आने ही नहीं, ईसा मसीह के भी पूर्व मगध साम्राज्य के सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनानी राजदूत था मेगास्थनीज और चंद्रगुप्त मौर्य का शासनकाल इसामसीह के दो से तीन शताब्दी पूर्व रहा जिसमें मेगास्थनीज राजदूत था। उसने भारत की सांस्कृतिक आर्थिक सामाजिक और धार्मिक स्थितियों का अध्ययन कर एक पुस्तक लिखी, इंडिका। यह इंदिका ही तो इंडिया शब्द से बना होगा यानी बहुत काल पूर्व ही भारत को इंडिया नाम से जाना गया था जो अंग्रेजों की देन नहीं है। यह प्रमाणित होने पर भी कि इंडिया शब्द भारत के लिए अंग्रेजों की देन नहीं है बल्कि अंग्रेजों ने इंदिका के आधार पर ही इंडिया रखा। ऐसी हालत में इंडिया को गुलामी का प्रतीक मानकर आलोचना और व्यंग्य मूर्खता के अलावा कुछ भी नहीं है। संसद की आकस्मिक बैठक की चर्चा भी बेहद ज़रूरी है। बीजेपी और आर एस एस को बीजेपी की लोकसभा चुनाव में हार सुनिश्चित लग रही है। देश की पांच विधानसभाओं मणिपुर, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में होने वाले चुनाव में बीजेपी और आरएसएस की हार प्रत्यक्ष दिख रही है जिसकी शुरुआत हिमाचल प्रदेश से शुरू होकर कर्नाटक में भी दिखी जहां तीन महीने तक मोदी-शाह और नड्डा डेरा जमाकर पूरे प्रदेश को मथने और कांग्रेस को भ्रष्ट बताने की कवायद के बावजूद बीजेपी की करारी हार हुई से भयभीत होकर बीजेपी सरकार एक देश एक चुनाव का शिगूफा लेकर आई है। उसे डर है कि पांच विधानसभाओं में हार के कारण लोकसभा चुनाव में हार निश्चित होगी। सरकार प्रदेशों में विधायकों के उपचुनाव करा चुकी है लेकिन पांच लोकसभा की खाली सीटों पर चुनाव कराने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही कारण एम पी के मध्यावधि चुनाव की हार लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल बन जाएगा जबकि पांचों सीटें एक साल से भी अधिक समय से खाली है।इसी हार के भय से बीजेपी सरकार लोकसभा चुनाव समय से बहुत पहले विधानसभा के आम चुनाओं के साथ कराना चाहती है। बीजेपी द्वारा मनमाने तरीके से मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की थी ताकि उसके द्वारा नियुक्त चुनाव आयुक्त उसके हिसाब से चले और विपक्षी गठबंधन को चुनावी तैयारी करने का समय न मिले। मुख्य चुनाव आयुक्त का कथन कि वे कभी भी चुनाव कराने के लिए तैयार हैं, बीजेपी सरकार की मंशा के अनुरूप ही है। बसपा प्रमुख मायावती कह रही हैं वे किसी गठबंधन के साथ नहीं हैं। बसपा अकेले चुनाव लडेगी। बीजेपी को मायावती पर भरोसा बिलकुल नहीं है। मायावती के ना कहने का अर्थ होता है हां। सीबीआई और ईडी के भय से अकेले चुनाव लडने वाली मायावती एक तीर से दो शिकार करना चाहती हैं। बीजेपी को अंधेरे में रखकर इंडिया गठबंधन के साथ प्रधानमंत्री पद या सोलह राज्यों में बसपा के लिए एक दो सीटें मांग सकती हैं। जैसा कि बसपा के पुराने नेता के अनुसार मायावती को यदि सम्मान मिले तो वे इंडिया के साथ जाएंगी। बीजेपी मायावती की इस योजना को जान चुकी है। इसलिए वह मायावती के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए मायावती के गुरू के भाषणों नारों के साथ दलित बस्तियों में जाने लगी है। बीजेपी जानती है कि जनवरी महीने में जब आचार संहिता लागू होगी तब मायावती अपने पत्ते खोलकर इंडिया के साथ चली जाएंगी इसीलिए बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाना शुरू कर दिया है। साफ है कि मायावती अपना 12 प्रतिशत वोट बैंक बचाना चाहेंगी इसलिए इंडिया गठबंधन में जाना लाजिमी है। राहुल गांधी फिर से जनवरी महीने में कच्छ गुजरात से फिर भारत जोड़ों यात्रा शुरू करेंगे। समय कम रहेगा तो बाइक के सहारे होंगे पिछली भारत जोड़ों यात्रा में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक लोगों के दिलों में बसते रहे। लद्दाख यात्रा में भी। मणिपुर में जाकर पीड़ितों से मिलना, खेतों में किसानों के साथ धान रोपना,टैक्टर चलाना, फल सब्जी मंडी में जाकर, छोटे व्यापारियों से मिलना,उन गरीबों को अपने घर आमंत्रित करना,सहायता करना, छोटे छोटे कारीगरों से मिलकर उनका कार्य सीखना कुछ ऐसा है कि लोगों को राहुल में अपनत्व दिखाई देने लगा। अब पश्चिम से लेकर पूर्व तक की भारत जोड़ों यात्रा उन्हें आम व्यक्तियों से जोड़ते हुए उनकी ख्याति बढ़ाने वाला है। रावण रथी विरथ रघुवीरा। रामाचारित मानस की चौपाई मोदी और राहुल पर बिल्कुल फिट बैठती है। राहुल आम आदमी को गले लगाकर उसे अपना बना लेते हैं तो दूसरी तरफ मोदी मंहगी कारों के काफ़िले और डेढ़ करोड़ रोज खर्च वाली सात सतही सुरक्षा घेरे में आम जनों से दूर हो जाते हैं। राजा भोज और गंगू तेली का सटीक उदाहरण है। बीजेपी अपने मोदी अंधभक्तों, आईटी सेल के झूठ परोसने के बूते ही नहीं ईवीएम हैकिंग कर चुनाव जीतने पर आमादा हैं लेकिन सच तो यह है कि संगठन में जिस तरह बाहरी लोगों को पदाधिकारी बनाया गया है जिनकी आस्था भीतर से पुराने दल के साथ है जबकि बीजेपी के पुराने कार्यकर्ता खुद को अपमानित और वहिष्कृत मानने लगे हैं मोदी बीजेपी की जीत की राह में रोड़ा बन जाएगी।अगर मायावती मोल तोल करके भी इंडिया गठबंधन से जुड़ती हैं और इंडिया एक के सामने एक प्रत्याशी खड़ा कर लेता है तब लड़ाई 63 बनाम 37 की होगी जिससे इंडिया की जीत पक्की हो जाएगी बशर्ते ईवीएम हैक नहीं हो लेकिन बीजेपी ने बड़ी चालाकी से एक डमी गैंग बनाकर ईवीएम हैक करके विपक्षी बड़े नेताओं से करोड़ों ऐठ चुकने के बाद भी सफलता नहीं दिला पाने पर विरोधी बड़े नेता अब ईवीएम हैक की बात नहीं कर रहे। इससे बीजेपी का ईवीएम हैक कर चुनाव जीतने का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। यद्यपि ईवीएम हैकिंग के अनेकों सबूत हैं जिन्हें विपक्षी दल इंडिया सुप्रीम कोर्ट में ले जाकर बैलेट पेपर से चुनाव कराने का आदेश प्राप्त कर ले तो बीजेपी का चुनाव जीत पाना असम्भव हो जाएगा। इसी बीच राजनीतिक दलों द्वारा वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त के तोहफे देने की घोषणा पर सुप्रीमकोर्ट सख्त हो चुका है। ऐसे वादे जो लोकलुभावन होने के कारण बीजेपी को चुनाव जितवा चुके हैं जिन्हें कभी पूरा ही नहीं किया गया जैसे मोदी के सौ दिनों में विदेश से कालाधन लाकर हर निवासी के खाते में 15 लाख डालना, सौ दिनों में मंहगाई घटाने का वादा कर चार गुना मंहगाई बढ़ाना, सौ स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा करके एक भी नहीं बनाना, किसानों की आय दोगुनी करने के वादे पूरे न करके अडानी जैसे पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाले तीन बिल पास कराने लेकिन किसान आंदोलन के चलते वापस लेने जैसे वादे पूरे नहीं किए जाने पर चुनाव आयोग को इनपर की गई कार्यवाही एस सी में जमा करने का नोटिस जारी किया है यहां यह बताना लाजिमी है कि अपने वादे पूरे करने पर गुजरात लॉबी ने आर बी आई पर दबाव डालकर तीन लाख करोड़ की मांग की थी लेकिन आरबीआई द्वारा नहीं दिए जाने पर सरकार और आर बी आई में मनमुटाव पैदा हुआ जो बीजेपी सरकार ने 2018 में मांगे थे जिसका खुलासा आरबीआई के डिप्टी गवर्नर रहे विरल आचार्य ने अपनी पुस्तक क्वेस्ट फॉर रिस्टोरिंग फाइनेंशियल स्टेबिलिटी इन इंडिया में किया है ने सबसे पहले 26 अक्तूबर 2018 को एक व्याख्यान में भी उठाया था। अपनी पुस्तक 2020 में नए संस्करण की भूमिका में कहा था कि नौकरशाही और सरकार में बैठे कुछ लोगों ने पिछली सरकारों के कार्यकाल में आर बी आई के पास जमा हुई बड़ी रकम को वर्तमान बीजेपी सरकार के खाते में स्थांतरित करने की योजना बनाई थी। दरअसल आरबीआई हर वर्ष अपना लाभ पूरी तरह सरकार को पूरी तरह देने के बजाय एक हिस्सा अलग रख लेता है। यह हिस्सा कई वर्षों में एक बड़ी राशि के रूप में हो जाती है। आचार्य ने मौद्रिक नीति, वित्तीय बाजार, वित्तीय स्थिरता और अनुसंधान के प्रभारी डिप्टी गवर्नर रहे जिन्होंने मानामुताव के चलते तीन साल का कार्यकाल पूरा होने के छः महीने पूर्व ही जून 2019 में छोड़ दिया था।आचार्य ने यह भी कहा कि 2016 में नोट बंदी के पहले तीन वर्षो में बीजेपी सरकार को रिकार्ड लाभ हस्तांतरित किया था।हालांकि नोटों की छपाई महंगी होने के कारण केंद्र को सरप्लस हस्तांतरण कम हो गया था। ऐसी हालत में बीजेपी सरकार ने 2019 के चुनाव पूर्व अपनी मांगों को बढ़ा दिया था। यहां यह बताना कि आरबीआई का रेपो रेट बेवजह है।रेपो रेट के कारण आर बी आई से दूसरे बैंकों को दिए जाने वाली धन पर पहले ही ब्याज लेने से बैंकों को अपने ग्राहकों से अधिक ब्याज वसूलने पड़ते हैं जिससे महंगाई बढ़ती है। लोगों का जीवन दुभर हो जाता है। बेशक सारे अंग्रेजी नाम, उर्दू नाम जैसे इंडिया हटाकर भारत कर देने से जनता शिक्षित हो जाएगी? क्या गरीबी खत्म हो जाएगी?कुपोषण,अन्याय,अत्याचार, शोषण, लूट, डकैती, भ्रष्टाचार, दुराचार, अपहरण, बलात्कार, हत्याएं बंद हो जाएंगे? महंगाई बेरोजगारी खत्म हो जाएगी। ईमानदारी आएगी? झूठ बोलना, झूठे वादे कराना बंद होगा? समस्याएं खत्म होगी? जनता संपन्न हो जाएगी?तमाम समस्याएं देश के सम्मुख प्रमुखता से हैं जिनका समाधान करना चाहिए। जनता का ध्यान असली मुद्दों से हटाने की साजिश है नामों पर किचकिच।- जितेंद्र पांडेय