
मुंबई। मुंबई से एक अहम कानूनी निर्णय सामने आया है, जहाँ बंबई उच्च न्यायालय ने एक भारतीय दंपति को उनके अमेरिकी रिश्तेदार के बच्चे को गोद लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने इस याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट कहा कि किसी भारतीय नागरिक को अमेरिकी नागरिकता प्राप्त बच्चे को गोद लेने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, भले ही बच्चा पारिवारिक संबंधों के दायरे में ही क्यों न आता हो। यह मामला तब सामने आया जब मुंबई के एक भारतीय दंपति ने अपने अमेरिकी रिश्तेदार के बेटे को गोद लेने की अनुमति के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। दंपति की मंशा बच्चे को भारत लाकर उसे कानूनी रूप से अपना बनाने की थी, लेकिन कोर्ट ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 और इससे संबंधित दत्तक ग्रहण विनियमों का हवाला देते हुए याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह बच्चा न तो ‘देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे’ की श्रेणी में आता है, न ही ‘कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे’ की। ऐसे में भारतीय दत्तक ग्रहण कानून के अंतर्गत उसे गोद लेने की कोई वैधानिक अनुमति नहीं दी जा सकती। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि किशोर न्याय अधिनियम या दत्तक ग्रहण नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो किसी विदेशी नागरिकता प्राप्त बच्चे को, सिर्फ रिश्तेदारी के आधार पर, भारत में गोद लेने की अनुमति देता हो- जब तक कि वह बच्चा संकटग्रस्त स्थिति में न हो।
इस फैसले ने यह रेखांकित किया है कि गोद लेने जैसे संवेदनशील मामलों में केवल भावनात्मक संबंध या पारिवारिक निकटता पर्याप्त नहीं है, बल्कि भारतीय कानूनों और अंतरराष्ट्रीय नागरिकता नियमों की कठोर व्याख्या और अनुपालन आवश्यक है। कोर्ट की टिप्पणी भारत में दत्तक ग्रहण कानूनों को लेकर एक अहम दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है और भविष्य के ऐसे मामलों के लिए दिशा-निर्देश भी तय करती है।