Tuesday, July 1, 2025
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बॉम्बे हाई कोर्ट का अहम फैसला: ‘आई लव यू’ कहना अपने आप में यौन इरादे का प्रमाण नहीं

मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने 25 वर्षीय युवक को 2015 में एक किशोरी से छेड़छाड़ के आरोप में मिली सजा को रद्द करते हुए कहा है कि सिर्फ ‘आई लव यू’ कहना अपने आप में यौन इरादे का संकेत नहीं माना जा सकता। यह फैसला न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के ने सोमवार को सुनाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति द्वारा सिर्फ प्यार का इज़हार करना—जैसे कि “आई लव यू” कहना—अगर इससे यह साबित नहीं होता कि उसका इरादा यौन उत्पीड़न या शारीरिक संबंध बनाने का था, तो उसे यौन अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। वर्ष 2015 में एक 17 वर्षीय किशोरी ने आरोप लगाया था कि जब वह स्कूल से घर लौट रही थी, तब आरोपी युवक ने उसका हाथ पकड़कर उसका नाम पूछा और ‘आई लव यू’ कहा। लड़की ने घटना की जानकारी अपने पिता को दी और फिर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। इस आधार पर आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता और पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत मामला दर्ज हुआ। 2017 में एक विशेष अदालत ने युवक को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी, जिसे उसने हाई कोर्ट में चुनौती दी।
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
न्यायालय ने कहा कि अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि आरोपी के शब्दों और व्यवहार के पीछे यौन उद्देश्य था। “आई लव यू” कहने मात्र से यह नहीं माना जा सकता कि आरोपी किशोरी के साथ यौन संबंध स्थापित करना चाहता था। अदालत ने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति की भावनाओं की अभिव्यक्ति तब तक यौन अपराध नहीं मानी जा सकती, जब तक कि उसमें यौन संकेत, अनुचित स्पर्श, जबरदस्ती कपड़े हटाना या किसी महिला की विनम्रता को अपमानित करने का इरादा न हो। न्यायमूर्ति जोशी-फाल्के ने यह भी जोड़ा कि यौन उत्पीड़न के लिए आवश्यक है कि आरोपी का व्यवहार “स्पष्ट यौन इरादे” को दर्शाए, जो इस मामले में साबित नहीं हो पाया। यह फैसला उन मामलों में कानूनी स्पष्टता लाता है जहां केवल भावनात्मक या रोमांटिक इज़हार को ही यौन अपराध का आधार बनाया जाता है। कोर्ट ने संकेत दिया कि कानून का उद्देश्य महिलाओं की गरिमा की रक्षा करना है, लेकिन इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना है कि हर प्रकार की सामाजिक या भावनात्मक बातचीत को आपराधिक दर्जा न दिया जाए।

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