Monday, June 9, 2025
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प्राकृतिक जल निकायों में पीओपी मूर्तियों के विसर्जन की अनुमति नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट किया कि वह प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी मूर्तियों को किसी भी प्राकृतिक जल निकाय—जैसे समुद्र, झील या नदी—में विसर्जित करने की अनुमति नहीं देगा। हालांकि, अदालत ने अपने जनवरी 2024 के आदेश को आंशिक रूप से संशोधित करते हुए पीओपी मूर्तियों के निर्माण और बिक्री पर लगाया गया पूर्ण प्रतिबंध हटा दिया है। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की खंडपीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के वर्ष 2020 के उन दिशानिर्देशों को लागू करने की मांग की गई थी, जो पीओपी मूर्तियों के प्राकृतिक जल स्रोतों में विसर्जन को रोकते हैं। पीठ ने स्पष्ट किया, हम आश्वस्त हैं कि किसी भी पीओपी मूर्ति को प्राकृतिक जल निकाय में विसर्जित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। कृत्रिम जलाशयों का निर्माण किया जा सकता है, जहां इन मूर्तियों का विसर्जन किया जाए। सीपीसीबी द्वारा दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि उसके दिशानिर्देश “प्रकृति में सलाहात्मक” हैं और कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। इस पर न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा, यह अपने ही अधिकार को कमजोर करने का एक क्लासिक उदाहरण है। अदालत कह रही है कि आपके पास शक्ति है, आप कह रहे हैं कि नहीं। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पीओपी मूर्तियों के निर्माण पर प्रतिबंध नहीं है और कारीगर इन्हें बना सकते हैं, परंतु उनका विसर्जन प्राकृतिक जल निकायों में नहीं किया जा सकता।
कारीगरों और मंडलों की आपत्तियाँ
मूर्तिकारों और मूर्ति विक्रेताओं की ओर से प्रतिबंध हटाने की मांग की गई थी, यह तर्क देते हुए कि यह उनके “मौलिक अधिकारों का उल्लंघन” है। उन्होंने यह भी कहा कि गणेशोत्सव जैसे त्योहारों से पहले ही महीनों पहले मूर्ति निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, इसलिए इस समय प्रतिबंध असमय और कठिन है। राज्य के महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने अदालत को बताया कि अधिकांश छोटी मूर्तियाँ कृत्रिम टैंकों में विसर्जित की जा रही हैं। हालांकि, उन्होंने बड़ी मूर्तियों (जो 20 फीट तक ऊँची होती हैं) के लिए “विशेष छूट” की मांग की और कहा कि “ये मूर्तियाँ अब हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा बन चुकी हैं। सराफ ने यह भी कहा कि यदि मंडल एक ही मूर्ति का स्थायी रूप से उपयोग करना चाहें, तो राज्य सरकार उसमें कोई बाधा नहीं डालेगी। न्यायमूर्ति संदीप मार्ने ने इस पर सवाल किया कि क्या सरकार बड़े मूर्तियों के समुद्र जैसे प्राकृतिक जल निकायों में विसर्जन के संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी कर रही है।
राज्य सरकार को अंतिम निर्णय लेने का निर्देश
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आलोक में अंतिम नीति निर्णय ले। अदालत ने अपने आदेश में उल्लेख किया, हम राज्य को निर्देशित करते हैं कि वह सीपीसीबी विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के अनुसार पीओपी मूर्तियों के विसर्जन पर नीति निर्धारित करे। मामले की अगली सुनवाई 30 जून को निर्धारित की गई है।

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