
राजनीतिक बयानबाजी से तल्खियां बढ़ती ही जाती हैं। बयानबाजी इगो के कारण मूंछ का बाल बनने की ही परिणति है।राजनीति और राजनेताओं में नैतिकता का जितना पतन पिछले बारह चौदह सालों में हुआ है वैसा कभी नहीं हुआ। पहले सत्ता और विपक्ष के बीच सदन में ही तार्किक गर्मा गर्मी होती थी। स्मरण है जब चीन ने भारत पर 1962 में हमला कर के हमारी लगभग पौने लाख वर्ग मील पर कब्जा कर लिया था तब प्रश्न के उत्तर में नेहरू ने कहा कि वे सारी जमीनें जो पठारी हैं अनुपजाऊ हैं। वहां घास तक नहीं उगती। इस पर महान चिंतक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने उन्हें आड़े हाथों लिया था। खूब खरी खोटी सुनाई थी। तब नेहरू शांत बैठे रहे। यद्यपि नेहरू ने उस जमीन को बेकार बंजर ज़रूर कहा लेकिन इस युद्ध में चीन द्वारा मित्रता की आड़ में पीठ में छूरा घोपने से मर्माहत हुए थे नेहरू। नेहरू चूंकि शांतिप्रिय भावुक व्यक्ति थे क्योंकि वे हिंदी चीनी भाई भाई का नारा दे चुके थे। इसलिए चीन की दगाबाजी ने उनके भावुक हृदय पर गहरी चोट पहुंचाई थी जिस कारण वे पक्षा घात के शिकार हो उठे थे जो एक बार गिरे तो फिर कभी भी उठ नहीं सके। एक बात समीचीन लगती है कहनी कि यदि नेहरू भारत के पीएम नहीं भी बनते तो भी उन्हें सारी दुनिया जानती क्योंकि वे भावपूर्ण लेखन करते थे। अ लेटर टू हिज डॉटर ही अकेले उन्हे विश्वविख्यात करने के लिए अधिक थी।स्वप्नदर्शी नेहरू ने सोचा था कि देश की उन्नति के लिए विशाल बांध और सरकारी बड़े उद्योगों के साथ वैज्ञानिक शोध बेहद ज़रूरी है ।भाखड़ा नागल, हीराकुंड जैसे बड़े बांध का निर्माण कराया। चौदह वैज्ञानिक शोध केंद्र बनाए। इसरो, एचएमटी, आयुध कारखाने उन्हीं की देन हैं। आज भले पीएम मोदी यह कहते हों कि 70, वर्षों में कांग्रेस ने विकास के लिए कुछ भी नहीं किया। केवल भ्रष्टाचार ही किया। एम्स कांग्रेस की ही देन है। पोर्ट एयरपोर्ट भी कांग्रेस की देन है। आज मोदी फूटी कौड़ी के भाव जितने संयंत्र अपने मित्रों को बेच रहे उनमें से कितने खुद बनवाए हैं यह तथ्य उन्हें देश के सामने रखना चाहिए। बाजपेई उस समय युवा सांसद थे। संस्कृत निष्ठ हिंदी का धाराप्रवाह बोलना उनकी वकृत्व प्रतिभा का प्रमाण है। उन्होंने संसद में गहन बात नेहरू को लेकर कही थी आपका व्यक्तित्व दोहरा है। उसमें चर्चिल और चेंबरलेन्न की झलक मिलती है। उनकी वकृत्वा से नेहरू ने उनसे कहा था, बहुत उम्दा भाषण करते हो और उनकी पीठ थपथपाई थी। एक बार तो नेहरू ने मानों भविष्यवाणी ही करते हुए कह दिया, एक दिन तुम देश के प्रधानमंत्री बनोगे। बाजपेई की प्रतिभा विलक्षण थी। प्रतिभा का सम्मान नेहरू से सीखने की जरूरत है। डॉक्टर राम मनोहर लोहिया जो बहुत बड़े अर्थशास्त्री, वक्ता थे उन्होंने कई बार कहा था कि वैसे नेहरू मेरे सवालों का जवाब नहीं दे पाता लेकिन है बड़ा योग्य आदमी। सोचिए, संसद में कटु तथ्य बोलने वाले को विरोधी भी कितना सम्मान दिया करते थे। संसद में तगड़ी बहस के उपरांत किसी के मन में कहीं मेल नहीं रहती थी। सब एक दूसरे से प्रेमपूर्वक गले मिलते बधाई देते रहते थे। लेकिन आज राहुल गांधी को संसद में बोलने नहीं दिया जाता। सदन में सत्ताधारी पार्टी नारे लगाती है, राहुल गांधी माफी मांगो,माफी मांगो।यह देश के संसदीय इतिहास में बदनुमा धब्बा सा है जब सत्तारूढ़ पार्टी ने सदन नहीं चलने दिया और सारा दोष र्विपक्षी दलों पर पढ़ दिया। इतना ही नहीं सदन में जब विपक्षी बोलने लगते, अडानी का नाम आते आते संसद की मायिकेँ म्यूट कर दी जाती। सरकार को असहज करने वाले भाषण के अंश काट दिए जाने लगे। सांसदों, सुप्रीमकोर्ट के माननीय जस्तीसों के फोन टेप किए जाने लगे। पेनसासस रिपोर्ट यह प्रमाणित करती है। कांग्रेस ससद में बहुमत होने के बावजूद सत्ता मद में चूर होकर कभी भी सदन में बिना बहस के कोई भी बिल पास नहीं कराती थी।सदन में हर बिल पर गंभीर और तर्कापूर्ण बहस कराई जाने के बाद ही बिल पास किए जाते थे लेकिन आज तमाम बिल भाजपा सरकार बिना सदन में बहस कराए पास करने लगी है। नोटबंदी की घोषणा हो या और कोई बिल। पहले कांग्रेस विपक्षियों की बातें बड़े ध्यान से सुनती और प्रतिक्रिया देती थी लेकिन आज विपक्षियों के अस्तित्व खत्म कर एकदलीय शासन करने की योजना पर सरकार काम कर रही है। सदन गंभी बहस करने का मंच है। कांग्रेस ने सदैव विपक्ष का सम्मान किया। विपक्षी सांसदों को एक ही नजर से देखा। बाजपेई के घुटने के आपरेशन की जरूरत थी। उनके घुटने के आपरेशन केवल विदेश में ही संभव था। राजीव गांधी को जब सूचना मिली तो वे खुद बाजपेई से मिलने गए और संयुक्त राष्ट्र संघ में जाने वाले सरकारी दल का उन्हें मुखिया बनाकर भेजा और विदेश में सरकारी पैसों से बाजपेई के घुटने का आपरेशन कराया। आज सत्ता में वह सोच कहां? कांग्रेसी शासन में प्रेस स्वातंत्र्य को सम्मान दिया जाता रहा है। प्रेस में कोई खबर छपते ही शासन और प्रशासन के हाथ पैर फूलने लगाने थे और दोनों समस्या के समाधान के लिए दिन रात एक कर देते थे। इंदिरा गांधी का प्रेस सेंसरशिप अपवाद रही इमरजेंसी में जिसका खामियाजा उन्हें खुद, संजय गांधी सहित कांग्रेस की करारी हार के रूप में भुगतना पड़ा। प्रेस सेंसर करना उन्हें भारी पड़ा। प्रेस को हमारे देश में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है लेकिन आज अघोषित इमरजेंसी में तानाशाही तरीके से कब्जा कर गुलाम बना दिया गया है जिस कारण इलेक्ट्रोनिक मीडिया के एंकर्स और प्रेस मीडिया सरकारों से जनता की समस्याओं पर सवाल पूछते थे लेकिन आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया के एंकर्स सरकार की वकालत करने लगे हैं और प्रेस सरकार का गुणगान करने वाला राजदरबारी चारण बन गया है। अब प्रेस जनता की नहीं सरकारी आवाज बनकर रह गया है।चाटुकारिता में अस्त व्यस्त। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ध्वस्त कर दिया गया है। जिससे जनता की आवाज सरकार के कानों तक पहुंचती ही नहीं है लेकिन चंद अखबारों के पत्रकार सच का आईना दिखाने में आज भी लगे हैं जिनके पास सीमित पाठक हैं। संसाधनों की बेहद कमी है। कुछ अच्छे और सच्चे पत्रकार आज भी हैं जिन्होंने गुलाम मीडिया की चाटुकारिता नापसंद है अब यू ट्यूब पर अपना जौहर दिखाने में कामयाब हो चुके हैं। देश की सत्तर प्रतिशत जनता जिसे आज फिर से प्रजा बनाया जा रहा कभी भी न तो अखबार पढ़ती है न न्यूज चैनल्स ही देखती है क्योंकि वह समझ चुकी है कि सारी मीडिया झूठ परोस रही है। पहले कांग्रेस विपक्ष की राज्यसरकारों को कानून और संवैधानिक तरीके से सस्पेंड करती रही है जब कि आज विपक्षियों को करोड़ों रुपए घूस देकर तोड़ा और भाजपा की सरकार बना दी जा रही। राजीव गांधी ने हरियाणा में कराए गए दलबद्ल को देखकर दलबदल कानून बनवाए जिसके अनुसार एक तिहाई सदस्य यदि दल बदल करें तो उनकी सदस्यता खत्म नहीं होगी। आज तो पूरी की पूरी राज्यसरकारो का दलबदल कराकर सरकार बनाने का काम किया जा रहा है। सबसे शर्मनाक बात यह कि जो भाजपा आतंकवाद के समूल नाश का दंभ भरती है वही आतंकवादियों के वोट से जीतकर आने वाली महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनवाती है। महबूबा मुफ्ती वही नेत्री हैं जिन्होंने कहा था कि धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर घाटी में तिरंगा थामने वाला कोई हाथ नहीं मिलेगा।यही नहीं भाजपा के सर्वेसर्वा जिस असम, मनीपुर, कर्नाटक सरकार को सबसे भ्रष्ट होने का सर्टिफिकेट देती रही है उसे अपने पाले में लाकर या सत्ता तोड़कर अपनी गठबंधन का सरकार बना लेने में तनिक भी शर्म नहीं आ रही।
संविधान निर्माताओं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि देश में कभी हत्यारे बलातकारी, माफिया डॉन भी राजनीतिक दलों द्वारा सत्तासुख भोग लिप्सा के चलते माननीय बनेंगे।अन्यथा अवश्य व्यवस्था करते कि जिस किसी के खिलाफ भ्रष्टाचार, हत्या, लूट के मामले होंगे और जो हिस्ट्री सीटर होंगे उन्हें चुनाव लडना तो दूर वोट देने पर भी पाबंदी होगी।आज भाजपा के लगभग आधे सांसद विधायक दागी हैं। बाहुबली सांसद और कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों ने यौन शोषण के आरोप लगाकर न्याय के लिए जंतर मंतर पर दोबारा धरना देने को मजबूर की जाती है। दिल्ली पुलिस जो भाजपा केंद्र के अधीन है एफआईआर दर्ज बन करती। तीन महीने बाद भी जांच कमेटी रिपोर्ट नहीं करती, सरकार बाहुबली सांसद को बचाने के लिए चुप है। महिला पहलवानों को सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए बाध्य किया जाता हो उस सरकार से आम जनता कौन सी उम्मीद करे ?