
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए कहा कि सड़क पर गड्ढों या खुले मैनहोल के कारण होने वाली मौतों के लिए अब नगर निगमों और राज्य की अन्य जिम्मेदार एजेंसियों को मृतक के परिजनों को 6 लाख रुपये का मुआवजा देना अनिवार्य होगा। वहीं, घायल व्यक्तियों को 50 हजार से लेकर 2.5 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता दी जाएगी। यह आदेश न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति संदीश पाटिल की खंडपीठ ने दिया। अदालत ने टिप्पणी की कि “मुआवजा देने से इनकार करना नागरिकों के सुरक्षित सड़कों के मौलिक अधिकार का मज़ाक उड़ाने जैसा है। यह अधिकार बार-बार प्रशासनिक लापरवाही के कारण कुचला जा रहा है।” कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मुआवजा किसी अन्य कानूनी दावे से अलग और अतिरिक्त होगा।
क्षेत्रीय समितियाँ करेंगी जांच और तय करेंगी मुआवजा
हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि सड़क दुर्घटनाओं या गड्ढों के कारण हुई मौतों की जांच के लिए हर जिले में एक विशेष समिति गठित की जाएगी। इस समिति में संबंधित नगर निगम या स्थानीय प्रशासन के आयुक्त/मुख्य अधिकारी और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DSLA) के सचिव शामिल होंगे। यदि हादसा एमएमआरडीए, एमएसआरडीसी, पीडब्ल्यूडी, बीपीटी या एनएचएआई जैसी एजेंसियों से जुड़ा होगा, तो समिति में संबंधित एजेंसी का वरिष्ठतम अधिकारी भी सदस्य होगा। समिति को किसी भी हादसे की सूचना मिलते ही 7 दिनों के भीतर बैठक बुलानी होगी और हर 15 दिन में प्रगति रिपोर्ट तैयार करनी होगी। संबंधित पुलिस स्टेशन को 48 घंटे के भीतर हादसे की विस्तृत जानकारी समिति को देनी होगी।
पहले पीड़ित को मुआवजा, बाद में दोषियों से वसूली
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मुआवजे की राशि पहले पीड़ित या उसके परिजनों को दी जाएगी, उसके बाद यह राशि जिम्मेदार अफसरों, इंजीनियरों या ठेकेदारों से वसूल की जाएगी। यदि भुगतान में देरी होती है, तो संबंधित एजेंसी प्रमुख को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा और उन्हें 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित मुआवजा देना होगा। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि दोषपूर्ण या घटिया निर्माण कार्य के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदारों पर अनुशासनात्मक एवं आपराधिक कार्रवाई की जाए। किसी भी गड्ढे या खुले मैनहोल की शिकायत मिलने पर उसे 48 घंटे के भीतर भरना अनिवार्य होगा।
‘हर साल की बरसात में दोहराई जाती है लापरवाही’
अदालत ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि “हर वर्ष मानसून के दौरान गड्ढों और खुले मैनहोल से होने वाली मौतें अब सामान्य बात बन चुकी हैं। यह प्रशासनिक उदासीनता का चरम उदाहरण है, जहाँ नागरिकों की जान की कोई कद्र नहीं। कोर्ट ने कहा- अब समय आ गया है कि पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा देकर एजेंसियों को जिम्मेदारी का एहसास कराया जाए। यह कदम उनके लिए चेतावनी साबित होगा। हाईकोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 21 नवंबर 2025 को निर्धारित की है। तब तक सभी स्थानीय निकायों और एजेंसियों को यह बताना होगा कि अब तक कितनी शिकायतें प्राप्त हुईं, कितने मामलों में मुआवजा दिया गया, और किन अधिकारियों या ठेकेदारों पर कार्रवाई की गई। इस फैसले को नागरिक अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो सरकारी एजेंसियों की जवाबदेही तय करने में मील का पत्थर साबित हो सकता है।