
मुंबई। मुंबई की लोकल ट्रेनें, जो इस शहर की जीवनरेखा मानी जाती हैं, अब अपनी भीषण भीड़ के कारण संकट में हैं। हर दिन लाखों यात्रियों की आवाजाही के चलते लोकल ट्रेनों में दम घोंट देने वाली भीड़ देखी जाती है। इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने एक व्यावहारिक और संवेदनशील कदम उठाया है। अब सरकारी कर्मचारियों को अपने ड्यूटी टाइम से आधे घंटे देर से ऑफिस पहुंचने की छूट दी जाएगी। यह जानकारी गुरुवार को विधानसभा सत्र के दौरान राज्य के परिवहन मंत्री प्रताप सरनाईक ने दी। उन्होंने बताया कि इस छूट का उद्देश्य सुबह और शाम के पीक ऑवर्स में ट्रेनों पर दबाव कम करना है ताकि कर्मचारियों को राहत मिले और लोकल ट्रेनों की क्षमता पर से बोझ कुछ घटे।
आधे घंटे की देर— लेकिन काम का समय वही
सरनाईक ने स्पष्ट किया कि यह छूट सिर्फ समय के लचीलेपन तक सीमित है। कर्मचारियों को जितना समय सुबह देर से आने में लगेगा, उतना ही देर तक उन्हें शाम को रुकना होगा। यानी कुल वर्किंग आवर्स में कोई कटौती नहीं की जाएगी। इससे एक ओर कर्मचारियों को भीड़ से बचने में राहत मिलेगी, दूसरी ओर सरकारी कार्यप्रणाली भी प्रभावित नहीं होगी।
प्राइवेट सेक्टर को भी शामिल करने की तैयारी
परिवहन मंत्री ने यह भी बताया कि इस योजना को सिर्फ सरकारी दायरे तक सीमित नहीं रखा जाएगा। राज्य सरकार अब प्राइवेट सेक्टर में भी इसी तरह की लचीली समय नीति लागू करने की संभावनाएं तलाश रही है। इसके लिए एक टास्क फोर्स गठित की जाएगी जो निजी कंपनियों के साथ संवाद कर यह सुनिश्चित करेगी कि वहां भी कर्मचारियों को भीड़भरे समय से अलग शिफ्ट में काम करने की सुविधा मिल सके।
विधानसभा में उठा था लोकल दुर्घटनाओं का मुद्दा
इस पूरे मसले की शुरुआत तब हुई जब विधायक अतुल भातखलकर ने विधानसभा में लोकल ट्रेनों में हर दिन होने वाली दुर्घटनाओं का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि भीड़ के कारण कई जानें जा रही हैं और इसका समाधान सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके जवाब में मंत्री सरनाईक ने माना कि मुंबई की ट्रेनों की भीड़ आज भी सबसे गंभीर समस्या है, और सरकार इस दिशा में लगातार ठोस पहल कर रही है।
मुंबई की सांसें ले सकेंगी?
मुंबई की लोकल ट्रेनों में यात्रा करना पीक ऑवर्स में कठिन और खतरनाक होता जा रहा है। यदि सरकारी कर्मचारियों की शिफ्टिंग नीति सफल होती है और निजी क्षेत्र भी इसमें भागीदारी निभाता है, तो इससे ट्रैफिक की मार से जूझते यात्रियों को कुछ हद तक राहत जरूर मिलेगी। अब निगाहें इस बात पर हैं कि क्या सरकार की यह योजना नीति से क्रियान्वयन तक सही ढंग से पहुंचती है, और क्या निजी कंपनियां भी समझदारी और सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ इस योजना में शामिल होती हैं।