
मुंबई। महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी भाषा विवाद ने हाल के दिनों में राजनीतिक और सामाजिक हलकों में खासा तनाव पैदा किया है। सड़कों पर हिंसक घटनाएं, सार्वजनिक मंचों पर आरोप-प्रत्यारोप और भाषाई असहिष्णुता की खबरों के बीच राज्यपाल सी.पी.राधाकृष्णन ने इस मसले पर अपनी पहली सार्वजनिक टिप्पणी करते हुए एक संतुलित लेकिन गंभीर चेतावनी दी है। राज्यपाल ने कहा कि भाषाओं के आधार पर भेदभाव और हिंसा न केवल सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ती है, बल्कि इससे महाराष्ट्र की आर्थिक और सांस्कृतिक छवि को भी भारी नुकसान हो सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि “अगर हम इस तरह की नफरत फैलाएंगे, तो कौन निवेश करने आएगा?”—यह सवाल केवल एक चिंता नहीं, बल्कि राज्य की आर्थिक संभावनाओं के प्रति एक चेतावनी है।
व्यक्तिगत अनुभव से चेतावनी
सी.पी.राधाकृष्णन ने तमिलनाडु में अपने संसदीय कार्यकाल का अनुभव साझा करते हुए बताया कि एक बार उन्होंने देखा कि कुछ लोगों को पीटा जा रहा था, सिर्फ इसलिए क्योंकि वे तमिल भाषा नहीं जानते थे। उन्होंने कहा कि भाषा की असहमति को अगर हिंसा में बदला जाए, तो वह पूरे समाज के लिए घातक साबित हो सकती है।
“हमें और भाषाएं सीखनी चाहिए”
राज्यपाल ने स्वीकार किया कि उन्हें स्वयं हिंदी पूरी तरह समझ नहीं आती, लेकिन उन्होंने इसे अपनी कमजोरी मानते हुए यह सुझाव दिया कि “हमें अधिक से अधिक भाषाएं सीखनी चाहिए और साथ ही अपनी मातृभाषा पर गर्व भी करना चाहिए।” यह बयान ऐसे समय आया है जब राज्य में मराठी प्राधान्यता को लेकर आवाज़ें तेज़ हैं और हिंदी भाषियों के साथ मारपीट की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं।
संदेश: भाषा नहीं, संवाद ज़रूरी
राज्यपाल का संदेश स्पष्ट है: भाषा के नाम पर हिंसा, बहिष्कार या नफरत, महाराष्ट्र जैसे बहुसांस्कृतिक राज्य को कमजोर करेगी। एक ओर जहाँ मराठी भाषा के संरक्षण की भावना को समझा जा सकता है, वहीं दूसरी ओर हिंदी या अन्य भाषाओं को बोलने वालों के साथ भेदभाव करना, संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। महाराष्ट्र के राज्यपाल की यह टिप्पणी एक सामाजिक और राजनीतिक चेतावनी है, जो केवल प्रशासनिक अपील नहीं बल्कि सांस्कृतिक विवेक की माँग करती है। ऐसे समय में जब भाषा को राजनीति का औज़ार बनाया जा रहा है, राज्यपाल की यह आवाज़ संवाद, सहिष्णुता और बहुभाषिक गर्व की राह दिखाती है—जिसे महाराष्ट्र की मिट्टी और उसकी विविधता हमेशा से संजोती रही है।