
मुंबई। महाराष्ट्र के नांदेड़ ज़िले में प्राथमिक शिक्षकों के ऑनलाइन स्थानांतरण अभियान के दौरान एक बड़ा घोटाला सामने आया है। आरोप हैं कि अनेक शिक्षकों ने अनुकूल स्थानांतरण पाने के लिए फर्जी विकलांगता प्रमाणपत्र और झूठे चिकित्सीय दस्तावेज जमा किए हैं। इस कथित रैकेट ने राज्य सरकार की पारदर्शी ऑनलाइन तबादला प्रणाली की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं। मामले का खुलासा उस वक्त हुआ जब सामाजिक कार्यकर्ता एस.वी. क्षीरसागर ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को एक औपचारिक शिकायत सौंपते हुए आरोप लगाया कि कई शिक्षक, और संभवतः कुछ अधिकारी, स्थानांतरण के दौरान विशेष सुविधा प्राप्त करने के लिए विकलांगता या एंजियोप्लास्टी जैसे चिकित्सीय आधारों का फर्जी प्रमाण प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने बिना उचित सत्यापन के ऐसे फर्जी दस्तावेज स्वीकार कर तबादलों में मदद की। सूत्रों के अनुसार, यह घोटाला केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि एक संगठित नेटवर्क के रूप में संचालित हो रहा है, जो शिक्षकों को विशेष श्रेणियों के तहत तबादला पाने के लिए गाइड करता है। इस नेटवर्क में कथित तौर पर कुछ बिचौलिए, एनजीओ या निजी एजेंसियां भी शामिल हो सकती हैं, जो शल्य चिकित्सा अथवा विकलांगता जैसी श्रेणियों का दुरुपयोग कराकर वांछित स्थानांतरण सुनिश्चित करवाते हैं। इन शिक्षकों को लाभकारी, शहरी या सुगम इलाकों में नियुक्ति मिल जाती है, जबकि वास्तव में जरूरतमंद व पात्र शिक्षक पीछे रह जाते हैं। इस घोटाले से न केवल तबादला प्रक्रिया में भारी अनियमितताएं पैदा हुई हैं, बल्कि शिक्षकों के बीच आक्रोश और अविश्वास का माहौल भी बना है। ज़िला परिषद द्वारा संचालित इस राज्यव्यापी ऑनलाइन फेरबदल पहल की पारदर्शिता अब सवालों के घेरे में है। मुख्यमंत्री ने शिकायत को गंभीरता से लिया है और एक विस्तृत जांच का आश्वासन दिया है। यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो यह मामला केवल व्यक्तिगत फर्जीवाड़े का नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार की बड़ी मिसाल साबित हो सकता है। शिक्षा विभाग और सरकार पर अब दबाव है कि वह इस पूरे मामले में पारदर्शी और समयबद्ध जांच कर दोषियों को सज़ा दिलाए, ताकि भविष्य में कोई शिक्षक या अधिकारी इस प्रकार की धोखाधड़ी करने की हिम्मत न करे।