Sunday, September 8, 2024
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संपादकीय:- दिखने लगी बदलाव की बयार!

बदलाव की बात के पूर्व संसद में पूछा गया एक वाक्य, पागल के हाथ में माचिस किसने दी? मोदी का दो टर्म बीत गया।तीसरे टर्म की चाहत में उनका ईक्यू स्तर गिर चुका है। हिंदू मुस्लिम पाकिस्तान कांग्रेस नेहरू करते करते भावुकता के निम्न स्तर पर जा चुके हैं। ऐसे व्यक्ति को तीसरी बार एटोमिक पावर की चाभी देना खतरे से खाली नहीं। हर चीज में अमेरिका का उदाहरण देने वाले भारत में केवल दो टर्म का कानून क्यों नहीं बना? कर्मचारी 60/62 साल में रिटायर होते हैं तो नेताओं के लिए क्यों नहीं नियम बने? मंत्री हो या प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री किसी के हाथों में बार बार शक्ति देने से दुरुपयोग होता है जैसा देश ने भुगता है। कहा जाता है देश का जीडीपी बढ़ी है तो रोजगार क्यों नहीं बढ़ा? जीडीपी और रोजगार का अटूट संबंध है। अत्यंत भावुक होकर रोने वाले के हाथ परमाणु बम की बटन देना उचित नहीं। वैसे भी अपनी चलाबाजियों के बावजूद एनडीए 180 सीटों पर सिमटने जा रही। चार सत्र के चुनाव के बाद एनडीए को बहुमत मिलने की बात बेमानी हो चुकी है। इंडिया गठबंधन को 300 के आसपास कांग्रेस को 125 के लगभग सीटें मिलने की संभावना है।ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन की सरकार को बाहर से सपोर्ट देने को कहा, शामिल होने को नहीं। अगर बीजेपी 300 सीटें पाती तो नितिन गडकरी की राजनीति खत्म होगी। 180 या 230 तक होने पर गडकरी यदि चुनाव जीते तो योगी आदित्यनाथ, वसुंधरा राजे, रमन सिंह, चौहान जैसे भाजपा के दिग्गज सहित बीजेपी के तमाम सांसद नितिन गडकरी से जुड़ेंगे। मोदी ने बीजेपी को इको सिस्टम बना लिया था।असहमति और विरोध की अग्नि संसद और पार्टी में सुषुप्त रूप से है। भाजपा को बहुमत नहीं मिलने के कारण चुनाव जीतने पर नितिन गडकरी केंद्र में होंगे जिनका सम्मान पार्टी के भीतर और बाहर होता है। नितिन का साथ उद्धव ठाकरे और शरद पवार महाराष्ट्रीयन होने के नाते दे सकते हैं। केजरीवाल और ममता बनर्जी भी। लेकिन संभव है इसके बावजूद भाजपा को बहुमत मिलना मुश्किल है। रही बात इंडिया गठबंधन की सरकार बनने की। ममता जब तक बाहर से समर्थन देती रहेंगी स्थायित्व नहीं आएगा। राजनीति का तकाजा है ममता बनर्जी को केंद्र की सरकार में भीतर से शामिल करने की। उन्हें केजरीवाल और शरद पवार का समर्थन मिल जाएगा। कांग्रेस को तब त्याग करना पड़ेगा सरकार के स्थायित्व के लिए। ममता बनर्जी को यदि पी एम पोस्ट ऑफर की जायेगी तो वे सरकार में शामिल हो जाएंगी। परिवर्तन की बयार बहने लगी है। अमित शाह को मोदी ने बागडोर सोपी तो विप्लव अवश्यंभावी है। फिर तो बीजेपी के सारे घड़े उभर कर सामने आएंगे। राजनाथ सिंह को पश्चाताप होता होगा कि यदि वे प्रस्तावित न करते तो मोदी पी एम कभी भी नहीं बन पाते। तीन घड़े तो प्रत्यक्ष हैं। शाह द्वारा बार बार अपमान किए जाने से रोष तो राजनाथ सिंह में होगा ही।तब राजनाथ सिंह नितिन गडकरी को आगे खड़ा कर देगे। मामला दोनों तरफ संगीन है। इधर पहाड़ उधर खाइ। आसार ममता बनर्जी या राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के हैं। केजरीवाल भी पी एम की रेस में होंगे। जो कहना नहीं चाहेंगे लेकिन पंजाब और दिल्ली मिलाकर सांसदों की संख्या ठीक ठाक हो जाएगी मगर क्लेश कोई नहीं चाहेगा। इसलिए समझौता करना ही होगा। इंडिया सरकार का भविष्य उसके मंत्री और विभागों के बंटवारे में दिखेगा दूसरी तरफ वाराणसी में पूरा प्रशासन लगा रहा कि मोदी के अलावा और कोई फॉर्म न भरने पाए। दिन भर पुलिस छावनी बनी रही कचहरी। किसी का नामांकन नहीं होने देने का शायद शासन का आदेश रहा हो। दिन भर पुलिस रोके रही सभी को। किसी को भीतर नहीं जाने दिया गया। पुलिस ने लाठियां भी भांजी। हां यहां का मामला सुप्रीम कोर्ट ले जाया जा सकता है और चुनाव आयोग द्वारा ऐसी व्यवस्था की गई कि कोई दूसरा पर्चा दाखिल न कर सके। जिसने पहले परचा दाखिल किया था उनके पर्चे में खामी निकलकर परचा वापस दिए गए। यानी मोदी को निर्विरोध विजेता घोषित किए जाने की कानूनन गलती करने पर उतारू चुनाव आयोग जबकि नोटा का विकल्प रहते किसी को विजेता घोषित नहीं किया जा सकता। शासनादेश से चुनाव आयोग कितना नीचे गिर सकता है इसके उदाहरण सूरत, अहमदाबाद वाराणसी इंदौर जैसे तमाम क्षेत्र हैं।

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