जो व्यक्ति केवल खरीदना जानता हो उसे अगर बेचने को मजबूर होना पड़ जाए तो ऐसी हालत को क्या कहेंगे? अडानी पर लगभग ढाई लाख करोड़ का कर्ज है। उन्हें कर्ज से निजात पाने के लिए और अधिक कर्ज की जरूरत है अगर बिजनेस टुडे की रिपोर्ट देखें तो अब अडानी को कर्ज देने से बैंकों ने मना कर दिया है। दुनिया के जितने भी बड़े बैंक उद्योगपतियों को कर्ज या उधारी देते हैं। खबर के अनुसार अब अडानी को कर्ज देने के मूड में नहीं हैं। पिछली बार जब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई थी तब दुनिया के खरबपतियों में अडानी दूसरे नंबर पर थे लेकिन जैसे ही हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई। अडानी की कंपनियों के शेयर गिरते चले गए। यहां तक गिरे की अडानी दूसरे नंबर के धनी से उतरकर तीसवें नंबर पर आ गिरे। निवेशकों के चार लाख करोड़ डूब गए। उस समय एलआईसी और एसबीआई जैसे बैंकों ने अडानी के गिरते शेयर खरीदे जिसकी राजनीतिक गलियारे में काफ़ी आलोचना की गई कि मोदी के दबाव में एलआईसी और एसबीआई ने अडानी को सम्हाला सरकारी दबाव में आकर। लेकिन अब अडानी की हालत ऐसी हो गई है कि अडानी विल्मर के चालीस परसेंट शेयर बेचने पड़ गए हैं। कहावत है मुसीबत जब आती है तो अकेले नहीं आती। अपने साथ तमाम मुसीबतें लेकर आती है। यही हाल देश के सबसे धनी उद्योगपति गौतम अडानी का है। न्यूयार्क में अडानी के खिलाफ दो मामले दीवानी के और एक मामला फौजदारी के चल रहे हैं। दो लाख करोड़ धोखाधड़ी के पुख्ता सबूत मिले हैं कोर्ट को। समस्या यह है कि यदि अडानी अपना जुर्म कुबूल करते हैं तो कोर्ट धोखाधड़ी और घूसखोरी की राशि दो मिलियन डॉलर्स का दो तीन गुने जुर्माना लगा देगी जैसा अमेरिकी कानून कहता है।लेकिन अगर अडानी कोर्ट में पेश होकर अपना बचाव करना चाहेंगे और खुद को बेकसूर सिद्ध करने की पहल करते हैं तो फिर जेल की सजा भुगतनी पड़ेगी। अब दो मिलियन डॉलर का तीन गुना जुर्माना लगाया जाता है तो अडानी को छः मिलियन डॉलर्स उधारी या फिर बैंकों से कर्ज लेना पड़ेगा और अगर बैंकों ने कर्ज देने से मना कर दिया तो फिर अडानी को अपनी कंपनियों के शेयर बेचने पड़ेंगे और तब जैसा आरोप हिंडनबर्ग ने लगाया था कि शेयर बेचने के लिए अडानी ने बढ़ा चढ़ा कर संपत्तियां बताई यानि धोखाधड़ी की थी। अडानी को अपनी कंपनी बिल्मर की 44प्रतिशत शेयर बेचने पर मात्र दो मिलियन डॉलर मिले जिसपर उन्हें छः मिलियन डॉलर्स कर्ज मिल सकेंगे। लेकिन इतना बड़ा एम्पायर चलाने के लिए बहुत ही कम होंगे। ऐसे में क्या मोदी ट्रंफ को फोन कर अडानी को बचा पाएंगे। अडानी अगर फंसते चले गए तो गुजरात लॉबी का भी फंसाना तय है। अगर अडानी अपनी गलती मान लेते हैं तो देश में विपक्षी घेर लेंगे।कहेंगे कि हमने तो पहले ही कहा था। विपक्ष अडानी पर पहले से ही हमलावर है। अडानी फंसते चले गए तो गुजरात लॉबी पर भी असर पड़ेगा। दीवानी और फौजदारी मामले में क्या निर्णय आता है। आरोप 265 मिलियन डॉलर का है जिसका दो तीन गुना जुर्माना देना पड़ेगा। गलती मान लेते तो भारत में उनने ठेकों पर बुरा असर होगा। संभव है कई धाराओं की सजा जुड़ते जुड़ते बीस साल की भी सजा हो सकती है। अडानी देश में इंडिया गठबंधन को तोड़ना चाहते थे लेकिन उलटे मुसीबत में फंस गए।
अमेरिका भारत नहीं है। भारत की जांच एजेंसियां जिस तरह पिजड़े का तोता कही जाती हैं जो सरकार के कहने पर छापे डालती, डराती धमकाती और बेकसूरों को जेल में ठूंस देती हैं मनमाने तरीके से जैसा अरविंद केजरीवाल सहित उनके सहयोगियों को। यहां तक कि राज्यसभा सांसद संजय सिंह को भी क्योंकि उन्होंने अडानी पर सवाल पूछने का दुस्साहस किया था। झाड़खंड के मुख्यमंत्री को बिना सबूत जेल में ठूंस देती हैं। सरकार को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा दिलाती हैं। अर्थात गुलामी करती हैं। वैसा अमेरिका में नहीं है। वहां की एफबीआई जैसी जांच एजेंसियां आजाद हैं। बेहिचक बेखौफ सबूत जुटाती हैं। यहां तक कि एक वाटरगेट कांड पर सरकार गिर जाती है। उसने गौतम अडानी के भतीजे के मोबाइल लैपटॉप से फॉरेंसिक सबूत इकट्ठा कर कोर्ट को दिए हैं जो बेहद पुख्ता हैं उनसे अडानी का बच पाना नामुमकिन है। अमेरिका में भारत की तरह जजेज नहीं हैं जो बिक जाएं। राज्यसभा से सांसद बनने और किसी प्रदेश का राज्यपाल बनने के। लिए सरकार की गोदी में बैठ जाएं। वहां जांच एजेंसियां और कोर्ट के जजेज लोगों का नैतिक पतन नहीं हुआ है। जमीर बेचा नहीं है। बाइडन की पत्नी को भले मोदी ने लाखों का हार भेंट दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में वोट फॉर ट्रंफ के नारे लगाए लेकिन न तो बाइडन और न ट्रंफ ही कोर्ट को प्रभावित कर सकते हैं। भारत में भक्त भले कहें कि मोदी अडानी को बचा ले जाएंगे क्योंकि ट्रंफ के कंधे पर हाथ रखना, गले मिलना मोदी ही कर सकते हैं तो भयंकर भ्रम में जी रहे हैं। राष्ट्रपति चुने जाने के बावजूद जो ट्रंफ अपने खिलाफ चल रहे मुकदमे को खत्म नहीं करा पा रहे हैं तो अडानी को भला कैसे बचा ले जाएंगे। याद होगा ट्रंफ ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में भी मोदी को नहीं बुलाया जबकि विदेशमंत्री जयशंकर वहां लॉबिंग कर रहे थे। भारत होता तो अडानी का बाल भी बांका नहीं होता क्योंकि यहां तो किसी अपराधी के कहने पर भी बेकसूर को दंडित कर दिया जाता है और अपराधी दो मिनट में जमानत पाकर रिहा हो जाता है। जजेज को खरीद लिया जाता है। ऐसा होने अमेरिका में असंभव है।
अमेरिकी जज केवल अमेरिकी संविधान का शपथ लेते और पालन करते हैं। भारत के सीजेआई की तरह आस्था पर निर्णय नहीं देते जबकि शपथ भारत के संविधान की लेते हैं। इसलिए अडानी को अमेरिकी अदालतों में चल रहे दीवानी और फौजदारी मामले में ट्रंफ या कोई और बचा नहीं सकता। मान लें अमेरिकी अदालत ने अडानी को दंडित किया या जुर्माना लगाया। दोनो स्थितियों में गुजरात लॉबी का ही अहित होगा और तब बांग्लादेश, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका जैसे देशों में जहां मोदी की पहल पर धंधे मिले हैं। सर्वत्र सवाल उठ खड़े होंगे और तब अडानी को विदेश में धंधा कर पाना मुश्किल होगा। ऐसी स्थिति में अडानी के उस साम्राज्य का पतन होने लगेगा जिसे अपने पद का बेजा फायदा उठाते हुए मोदी ने सरकार की सारी कंपनिया, रेल तेलभेल पोर्ट एयरपोर्ट मुफ्त में रेवड़ियों की तरह से बांट दिया। अगर ऐसा हुआ तो फिर चंद्रबाबू नायडू को सौ बार सोचना पड़ेगा डूबते मोदी सरकार के जहाज को वैसाखी का सहारा दे पाना। तब देश की राजनीति में भयंकर उथल पुथल मचेगी और भारत की राजनीति अलग विचारधारा पर चलनी शुरू हो जाएगी। अमेरिकी कोर्ट ने अडानी के खिलाफ दोनों दीवानी और एक फौजदारी मामला एक साथ अटैच कर लिया है ताकि तीनों अलग अलग मामलों में भेद न हो। अब एक ही जज कार्रवाई करेगा। ट्रंफ भी कुछ नहीं कर सकेंगे। नके खिलाफ मामला चल रहा है। अमेरिकी कोर्ट में सरकार दखल नहीं देती। अब तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि अडानी का क्या होगा?