Monday, July 21, 2025
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संपादकीय:- हिंदू मंदिरों में वीआईपी कल्चर क्यों?

आप किसी गुरूद्वारे में चले जाएं। ऊंचे पद पर विराजमान व्यक्ति हो या धनवान कोई न कोई जूता पॉलिस करता मिलेगा। सिख लंगर लगाते हैं। सेवाभाव से वहां हर कोई कार्य करता है। लंगर में किसी भी जाति धर्म मज़हब या पंथ का व्यक्ति जाकर भरपेट भोजन कर सकता है। गुरूद्वारे में अरदास के समय कोई नहीं बता सकता है कि कौन धनी, कौन वीवीआईपी या कौन साधारण सा या गरीब व्यक्ति है। सभी एक साथ जमीन पर बैठे मिलेंगे। कोई भी किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होता। इसी तरह आप किसी भी मस्ज़िद में चले जाइए। दौलतमंद हो या मज़दूरी करने वाला सभी एक साथ नमाज़ पढ़ते मिलेंगे। इलाह की नमाज़ सभी एक तरह अदा कराते हैं। कोई जगह वीआईपी और धनवान के लिए सुरक्षित नहीं होती। वहां भी आप अंतर नहीं देख सकेंगे परंतु पता नहीं क्यों हिंदू मंदिरों खासकर बड़े मंदिरों में वीआईपी कल्चर देखने को मिलेगा। हजार, पांच सौ, पांच, दस हजार, पंडों को देकर कोई भी मूर्ति के दर्शन बिना लाइन में लगे कर सकता है। समझ में नहीं आता कि बड़े मंदिरों में क्या दो तरह के देवाता रहते हैं जो अलग-अलग दर्शन की व्यवस्था की गई है? इसके लिए हमें हिंदुओं के बीच जाति पांत, ऊंच नीच, स्त्री पुरुष, अमीर गरीब के बीच के अंतर को समझना होगा। वास्तविकता यह है कि कथित रूप से नीची जाति के लोग मंदिर में जा ही नहीं सकते। पंडे-पुजारी धन के लालच में आकर और व्यवस्थापन समिति धन अर्जित करने के लिए वीआईपी कल्चर थोपे हुए हैं। अछूत हिंदू हो सकता है यह बेहद डरावनी और शर्म की बात है लेकिन धन के लोभियों के लिए भेदभाव करना ज़रूरी लगता है।उदाहरण के लिए राहुल गांधी बनारस के किसी मंदिर में पूजा अर्चना करने गए थे। उनके जाने के बाद मंदिर को गंगाजल से धोने की जरूरत क्यों आन पड़ी? रूढ़िवादी परंपरा गैर हिंदुओं को म्लेक्ष बताने की गिरी हुई संकीर्ण सोच को क्या कहा जा सकता है? हिंदू पता नहीं कब मानव बनेगा? यह मंदिर को गंगाजल से धोकर शुद्ध करने की सोच अलगाव वादी सोच है। हिंदू ही क्यों कभी मुसलमान बनता है तो कभी ईसाई। आज कल ईसाई बनाने का काम बड़े जोरों से चलता है। थोक के थोक लोग ईसाई बनते जा रहे हैं। क्या गैर मुस्लिम कहकर या अछूत समझकर मंदिर में घुसने न देना क्या है? एक ओर भारत चांद तक का पहुंचा तो दूसरी तरफ भेदभाव वाला हिंदू समाज। हिंदू मंदिरों में लूट करने वाले। वीआईपी कल्चर चलाकर हम क्या बताना चाहते हैं?

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