Sunday, September 7, 2025
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संपादकीय:- चुनावी चंदा क्यों देते कॉरपोरेट घराने?

यूं तो शुरू से ही सभी राष्ट्रीय दलों को चुनाव और अन्य व्यय के लिए चंदा लिया जाता रहा है लेकिन एक बात विचारनीय अवश्य है कि जो कॉरपोरेट घराने कभी भी राष्ट्रीय हित चाहे वह प्राकृतिक आपदा ही क्यों न हो, कभी भी एक पैसा डोनेशन नहीं देते। किसी गरीब को दस रुपए रोटी खाने को नहीं देते वे आखिर राजनीतिक दलों को भारी भरकम चंदा क्यों देते हैं? यह बात बहुत दिनों से सोशल मीडिया में प्रचारित होती रही है कि एकमात्र टाटा परिवार ने कई खरब रूपए देश के लिए जरूरत पड़ने पर दान कर दिया। अभी दो वर्ष पूर्व कोरोणा के संक्रमण काल में टाटा ने बहुत बड़ी राशि दान कर दिया था। कहते हैं जितनी संपत्ति आज अंबानी के पास है, उससे बहुत अधिक धन टाटा परिवार ने दान कर दिया। बहुत से धनी उद्यमी ऐसे हैं जो नियमित रूप से दान देते रहते हैं। धारा 80 के अंतर्गत शत प्रतिशत टैक्स लाभ मिलता है। लेकिन आज तक कभी यह नहीं सुना गया कि देश के सबसे धनी उद्योगपति अडानी और अंबानी ने देश हित में कभी भी दान दिया हो। दिया भी हो तो प्रकाश में कभी नहीं आई खबर। पहले उद्योग में तीन साल के औसत लाभांश का पांच फिर सात प्रतिशत राजनीतिक दलों को डोनेट करने का कानून था मगर मोदी के सत्ता में आने के बाद कानून बदल दिया गया और अब दान की सीमा खत्म कर दी गई। यहां तक कि विदेश से भी फंड लेने की व्यवस्था कर ली गई। अब इलेक्ट्रोरल बॉन्ड के जरिए एक करोड़ के गुणक में कोई भी कॉरपोरेट घराना बॉन्ड के जरिए किसी भी दल को दान दे सकता है। बॉन्ड एक करोड़ सौ हजार करोड़ दिए गए। बस अपना पहचान पत्र एसबीआई को दिखाना था। सत्ता रूढ़ दल भाजपा को 90 प्रतिशत डोनेशन मिले। शेष 10 प्रतिशत राज्यों में सरकार वाले दलों को मिले। भाजपा को अकेले 5200 करोड़ रुपए तो कांग्रेस को मात्र 950 करोड़ ही मिले। मामला सुप्रीम कोर्ट की संविधान समिति के सामने है जिसकी सुनवाई चल रही। सीजेआई ने कहा है कि इसमें अनुच्छेद 14 अर्थात समानता का पालन हो रहा है या नहीं। अभी कोई फैसला आया नहीं है। केंद्र की बीजेपी सरकार ने एफिडेविट देकर कहा कि जनता को फंड किसने दिया जानने का अधिकार नहीं है। जैसा कि पीएम केयर फंड मामले में कर चुकी है। उसमें भी कोर्ट में हलफनामा देकर कहा गया था कि किसी भी सरकारी संस्थान का पैसा नहीं मिला है जो पूर्णतः असत्य है लेकिन मोदी हैंतो मुमकिन है। यह भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट को इसपर सुनवाई का अधिकार नहीं है। भारी डोनेशन उन संस्थानों ने भी दिया है जिनकी बैलेंस शीट कई वर्षो से घाटे की है। बेदांता ग्रुप ने भी करोड़ों दान दिया है जो घाटे में चल रही है।बॉन्ड लेने वाले की पहचान सिर्फ सत्तारूढ़ दल को मालूम है क्योंकि एस बी आई सरकारी बैंक है। साधु नहीं हैं उद्योगपति जो बिना काम एक भी पैसा दान दें। सरकार उन्हें अनुचित लाभ कई गुना पहुंचाती है जैसा लगभग मुफ्त में प्राइवेट कंपनियों को बेचा गया।बेचने में इतने कम मूल्य मिले जिससे अधिक तो उसकी जमीन की कीमत है। आगे भी सत्ता उन्हें उपकृत करने की योजना पर दिन रात काम कर रही है। इधर जिस तरह सरकार ने विपक्षियों को ईडी और सीबीआई द्वारा परेशान किया गया डर है कि कहीं विपक्ष को डोनेशन देने वाले उद्योगपति के घर आईटी, सीबीआई और ई डी धावा बोलकर जेल में नहीं डाल दे। सुप्रीम कोर्ट में बहस काफी समय से चलने पर भी अभी निर्णय नहीं आया है

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