
अब पता नहीं कौन से लोग हैं, जो महामानव और विश्वगुरू को अपने बनाए अघोषित नियम का हवाला देकर 17 सितंबर 2025 को 75 साल उम्र पूरी होने पर प्रधानमंत्री पद त्याग की बात को हवा दे रहे हैं। अरे भाई, जो सक्षम होता है, वही नियम बनाता है, वही अपना बनाया हुआ निर्णय तोड़ भी सकता है। लोग कहते हैं, मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के लिए नियम बनाया था कि 75 साल की उम्र हो जाने पर बीजेपी का कोई भी बड़ा से बड़ा नेता सक्रिय राजनीति में नहीं रह सकता। इसी नियम के कारण लालकृष्ण आडवाणी का पीएम बनने का सपना चकनाचूर हो गया। मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र जैसे राष्ट्रीय नेताओं को सक्रिय राजनीति से विदा होना पड़ा। चाह तो रही होगी, एक और पांच साल सत्ता का सुख मिल जाता, लेकिन नहीं मिला। लाचारी थी। जो गुजरात मॉडल प्रचारित किया गया, उसका असर पड़ना ही था, तो नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए।
भले ही उन्होंने अपना कोई वादा नहीं निभाया, लेकिन अपनी कांग्रेस और मुस्लिम विरोध की शैली के कारण वे लगातार तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन गए। भले ही बीजेपी की बहुमत वाली सरकार न सही, वैसाखी वाली सरकार तो बन ही गई। सत्तर साल कांग्रेस ने किया ही क्या, सिर्फ घोटालों के अलावा? देश की जनता समझ गई, कांग्रेस में भ्रष्टाचार हुआ करता था। भले ही किसी घोटाले अथवा भ्रष्टाचार का कोई सबूत नहीं दिखाया गया। जनता भोली-भाली नहीं है, वह सोचती है – चलो सरकार कांग्रेस की बदलते हैं। बदल लिखाया। 2014 में बीजेपी की जीत नहीं, कांग्रेस के विरुद्ध भ्रष्टाचार के कथित मामलों के प्रचार के कारण ही सत्ता में आई बीजेपी।
मोदी का करिश्मा नहीं कहा जा सकता। दरअसल, मोदी ने जनता को इतने हसीन ख्वाब दिखाए कि मोहित हो गई जनता। मोदी ने वादों की झाड़ी लगा दी थी- विदेश से कालाधन लाकर लोगों के खाते में पंद्रह लाख रुपए डाल देंगे। यह अलग बात है कि विदेश से एक भी पैसा लाया नहीं गया। बाद में पता चला कि स्विस बैंक में जमा कालाधन दो गुने से अधिक हो गए नोटबंदी के बाद।
बीसियों झूठे वादे मोदी ने जनता से किए, और एक भी पूरा नहीं किया, जिन्हें जुमला कहा जाने लगा। विपक्षी दलों को दबाए रखने, भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का काम भले मोदी ने किया, लेकिन बार-बार जीत की वजह कोविड काल में ताली और थाली बजवाकर उन्होंने देख लिया कि देश के हिंदुओं को सरलता से मूर्ख बनाया जा सकता है। इसलिए “हिंदू और हिंदुत्व खतरे में है” का नारा दिया। हिंदुओं की आस्था भुनाने के लिए राममंदिर निर्माण और मूर्ति प्राणप्रतिष्ठा को बीजेपी का बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा। धर्म का जितना अधिक उपयोग सत्ता में बने रहने के लिए मोदी ने किया, शायद ही दूसरा कोई कर पाता। सत्ता में बने रहने के लिए मोदी ने मेन स्ट्रीम की मीडिया को खरीद या खरीदवा लिया। आईटी, सीबीआई और ईडी को गुलाम बनाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट कर खुद ही चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति ने उन्हें संजीवनी दी। ईवीएम मामले हों या वोटर लिस्ट में बेपनाह नामों की वृद्धि, चुनाव आयोग को श्रेय जाता है। चुनाव आयोग ने ठान लिया कि देश-प्रदेश में बीजेपी को जिताना है, चाहे जैसे हो। मोदी के प्रति वफादारी खूब निभाई आयुक्तों ने।भले ही फाइव ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की डींग हांकी हो, तो उसमें क्या जाता है? कुर्सी पर बने रहने के लिए साम, दाम, दंड और भेद – सब कुछ लगाना एक चतुर नेता की पहचान है। एक भी वादा पूरा नहीं करके भी देश की बहुसंख्यक हिंदू जनता को धर्मभीरु जरूर बनाया। इसी कारण अपनी सत्ता बचाते रहे हैं। अब 17 सितंबर को मोदी 75 वर्ष के हो जाएंगे। लोगों की निगाहें मोदी पर टिकी हैं- क्या वे अपना ही बनाया नियम तोड़ेंगे या पालन कर झोला उठाकर हिमालय प्रस्थान कर जाएंगे? आरएसएस जरूर चाहेगा कि पार्टी का अध्यक्ष उसका हो, चाहे मोदी पीएम की कुर्सी पर चिपके रहें। मोदी से उम्मीद नहीं की जा सकती कि नैतिकता का पालन कर सत्ता से दूर हो जाएंगे। सच तो यह है, मोदी अंदर से बेहद डरे जान पड़ते हैं। यह डर चीन और अमेरिका के मामले में देखा गया। चिंता इस बात की है कि मोदी की कमजोरी चीन और अमेरिका जानते होंगे। इसीलिए चुप्पी साध लेते रहे हैं। मोदी से उम्मीद करना कि वे पीएम की कुर्सी स्वेच्छा से छोड़ देंगे, दिवास्वप्न होगा। बहुमत के दंभ में उन्होंने जितने काम किए हैं, उनको याद कर भीतर से सिहर जाते होंगे। डर सताता होगा कि कुर्सी से हटते ही कहीं कानून का सामना करना तो नहीं होगा?