राम मंदिर बन रहा है। प्राण प्रतिष्ठा होनी है सुनकर अनेकानेक रघुवंशी अयोध्या पहुंच रहे हैं। काल ने राम के पास आकर कहा,हमारी गोपनीय वार्ता में व्यवधान न हो इसकी व्यवस्था करें। राम ने अनुज लक्ष्मण को द्वार पर लगा दिया। राम, लक्ष्मण का स्वभाव जानते थे। प्राण दे देंगे परंतु किसी को भीतर आने नहीं देंगे। काल ने राम को ब्रह्मा का आदेश सुनाते हुए कहा,जिस हेतु आप अवतरित हुए है,वह कार्य पूर्ण हो चुका है। अब आपको क्षीर सागर लौट जाना चाहिए। इसी बीच एक अनुपम घटना घटी। ऋषि दुर्वासा द्वार पर पधारे। उन्होंने तुरंत राम से मिलने की इच्छा व्यक्त की। एक तरफ ज्येष्ठ भ्राता और अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट राम का आदेश कि कोई व्यवधान न हो। दूसरी तरफ अत्यंत क्रोधी दुर्वशा। शाप देने में तनिक भी विलंब नहीं करने वाले। विवेक हीन हो जाते हैं जब क्रोध से भर उठते हैं। लक्ष्मण ने सोचा यदि दुर्वासा का संदेश राम को नहीं देता तो दुर्वाशा श्राप देकर वंश को ही नष्ट कर देंगे। वंश बचाने के लिए राम का कोप भाजन स्वीकार कर भीतर चले गए। काल ने गुस्से में कहा, धृष्ट को तुरंत दंडित करो राम। राम पशोपेश में। लक्ष्मण जानते थे प्रिय होने के नाते भ्राता दंड देना नहीं चाहेंगे। अतः अपमानित और दोषी बनना पड़ेगा। इसलिए लक्ष्मण अपने राजा को अपमानित होने से बचाने हेतु सरयू तट पर जाकर बैठ जाते हैं और हठयोग द्वारा प्राणत्याग करते हैं। इसकी सूचना पाकर राम अपने भाइयों, पुत्रों और भतीजों को बुलवाकर साम्राज्य आठों युवराजों में बांट देते हैं और अंत में भाई भारत और शत्रुघ्न के साथ सरयू नदी में जलसमाधि लेते हैं। कुश भाइयों में सबसे बड़े कुशावती में शासक बने। एक रात जब वे सो रहे थे किसी महिला का रूदन सुनाकर वे वहां आए। पूछा देवी! आप कौन हैं? कहां से आई हैं? हमारे महल में रूदन का कारण क्या है। महिला ने बताया, वह अयोध्या की वैभव लक्ष्मी है। अयोध्या इस समय खंडहर हो कर श्री विहीन हो चुकी है तो मैं कैसे वहां रहकर पीड़ित होती। कुश फिर से अयोध्या को बसाने का आदेश देते हैं। नगर निर्माण होता है। इस तरह अयोध्या न जाने कितनी बार उजड़ती और बसती रही है।जो आज स्वरूप है वह बदलती अयोध्या का स्वरूप है। यह सत्य है कि अयोध्या राम के उपरांत आक्रांत होती रही। कन्नौज के शासक द्वारा अयोध्या पर आक्रमण में तो अयोध्या उजड़ ही गई। सारे रघुवंशी क्षत्रिय अयोध्या छोड़कर काशी भाग आए।काशी नरेश ने उनके मुखिया से अपनी बेटी ब्याह दी और डोभी सहित 27 कोस परिधि वाली भूमि दहेज में दी। तब से रघुवंशियों का समूह डोभी में निवास करता है।डोभी और कटेहर मूल भूभाग है जहां की भाषा अवधि ही है। साहित्य के इतिहास में डोभी को ही अवधि भाषा का केंद्र माना जाता है। राम तो नहीं भारत लक्ष्मण और शत्रुघ्न के पुत्रों के वंशज यत्र यत्र भारत में बिखरे हुए हैं। इसलिए राममंदिर प्राणप्रतिष्ठा के अवसर पर सभी खुद को रघुवंशी कहने वाले जुड़ गए हैं।