
आज देश शिक्षक दिवस मना रहा होगा। सुप्रसिद्ध पूर्व विद्वान राष्ट्रपति डॉक्टर प्रोफेसर सर्वपल्ली राधा कृष्णन जिनके नाम पर 5 सितंबर को हर वर्ष शिक्षक दिवस मना देना मात्र परंपरा का निर्वाह कर लिया जाएगा।… उनके व्यक्तित्व के कसीदे पढ़े जाएंगे। शिक्षक अर्थात गुरु के संदर्भ में गुरुरब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर कहा जाएगा।गुरू अथवा शिक्षक को समाज राष्ट्र के निर्माण का भार दिया जाएगा। शिक्षक के कंधे पर भारत के निर्माण का बोझ डाला जाएगा आदि आदि। प्रश्न यह है कि मात्र शिक्षक दिवस मना लेने मात्र से ही शिक्षक दिवस की अर्ह्यता स्वीकार हो जाएगी? क्या राष्ट्र का नव निर्माण संभव हो पाएगा? कदापि नहीं। मात्र शिक्षक दिवस मना लेने से शिक्षक का राष्ट्र के प्रति दायित्व पूरा हो पाएगा?जब हमारे नेता खुद नए राष्ट्र निर्माण के दंभ भरते हैं। वे ही नए भारत का निर्माण करने का श्रेय लेने में जुटे हैं जिसकी वास्तविकता ठीक विपरित है। एक और शिक्षक दिवस मनाना दूसरी तरफ शिक्षा का अवमूल्यन, सुलभता नहीं होने देने से राष्ट्र न तो शिक्षित होगा न विकसित और नहीं विश्वगुरू बन पाएगा। थोथी बातों से शिक्षा और राष्ट्र का उत्कर्ष नहीं हुआ करता। शिक्षित होने का अर्थ कदापि नहीं कि वह सत्पात्र ही हो। बहुतेरे प्रधानमंत्री बहुत बड़ी डिग्रियां हासिल कर पद पर विराजमान हो चुके हैं परंतु किसी ने भी शिक्षा का महत्व नहीं समझा और नहीं शिक्षा को सर्वसुलभ कराने का अपना दायित्व ही निभाया।यह कटोक्ति कहने में तनिक भी संकोच नहीं होना चाहिए। सारे नेता क्या देश को बताएंगे कि इतनी ढेर सारी यूनिवर्सिटी और कॉलेज खुलने के बावजूद हमारे देश का कोई भी शिक्षा संस्थान विश्व में दो सौ उच्चशीक्षा संस्थानों में क्यों नहीं है? हपते में एक विश्वविद्यालय और दूसरे दिन एक एक आईआईटी, आईआईएम बनने का दावा करने वाले विश्वगुरू प्रधानमंत्री मोदी क्या बताएंगे देश को कि उनके कथन में कितनी सच्चाई है? देश का एक भी शैक्षणिक संस्थान अभी तक क्यों नहीं विश्वस्तरीय बनाया जा सका।कारण है इसका कि शिक्षा के व्यापार की खुली छूट देकर, शिक्षा को निरंतर महंगी बना देने के कारण ही देश के 95% छात्र आज उच्च शिक्षा ले पाने की स्थिति में नहीं हैं। यहां तक कि शिक्षा लोन का ब्याज अति ऊंचा दर रखा गया है बारह प्रतिशत। पुस्तकों कापियों पेन पेंसिल पर भारी जी एस टी लगा दी गई है। जबकि सबको ज्ञात है जिस राष्ट्र में उच्च शिक्षितों की जिस मात्रा में उपस्थिति रहती है वह राष्ट्र शीघ्र ही विकसित होता है अर्थात राष्ट्र के विकास का सीधा संबंध उच्च शिक्षा से होता है। बहुत ही गहरा संबंध लेकिन अपने देश में सरकारें शिक्षा का बजट निरंतर हर वर्ष घटाती जा रही फिर कैसे होगा शिक्षा का विकास? अमेरिका में शिक्षा निशुल्क है।सरकार का दायित्व होता है कि वह निशुल्क शिक्षा के जी से लेकर पी जी और डॉक्टर इंजिनियर व्यवस्थापन की निशुल्क सामान व्यवस्था सर्वसुलभ बनाए परंतु हमारी सरकारें शिक्षा का व्यापार करने की छूट प्राइवेट संस्थानों को दे चुकी हैं जो दोनो हाथों लूट रही हैं। हमारी सरकारें नहीं चाहती कि जनता पूर्ण शिक्षित होकर स्वावलंबी बनें क्योंकि शिक्षित व्यक्ति संविधान पढ़ेगा।अपने अधिकारों की मांग करेगा।सरकारें बस जनता को अशिक्षित गुलाम बनाए रखना चाहती हैं। शिक्षा से आम छात्र को वंचित रखने की हर चंद कोशिश करती हैं। हरियाणा बीजेपी सरकार का तुगलकी फरमान कि यदि कोई छात्र सरकारी स्कूल में पढ़ेगा तो उसे पांच सौ रुपए फीस देनी होगी लेकिन यदि वही छात्र प्राइवेट संस्था में पढ़ेगा तो सरकार इस छात्र को ग्रारह सौ फीस देगी। मकसद साफ है शिक्षा से जनता को वंचित रखना क्योंकि ऐसा करने से चार पांच वर्षों में सरकारी स्कूलों में एक भी एडमिशन नहीं होने से बिल्डिंग खाली हो जाएगी जिसे धनवानों को बेचकर शिक्षा का व्यापार कर लूट की छूट प्राप्त होगी। सरकारें शिक्षित लोगों को पसंद नहीं करती क्योंकि वे सवाल बहुत पूछते हैं जिनके सवाल सरकार को असहज कर देते हैं। इसीलिए शिक्षा बजट में कमी की जाती है। आज भी शिक्षित युवा कई करोड़ बेरोजगार हैं। सरकार उन्हें रोजगार देना नहीं चाहती क्योंकि रोजगार युक्त युवा आत्मनिर्भर हो जाएगा तब वह सरकार से पांच किलो अनाज और चंद सिक्के भीख में लेने से मना कर गुलाम बनने से इंकार कर देगा। आज देश के सरकारी विश्वविद्यालयों में 50 प्रतिशत प्रोफेसरों के पद खाली हैं। कॉलेजों का भी यही हाल है। प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक स्कूल भी इसी दुर्दशा के शिकार हैं।ऐसी स्थिति में जब सरकार निशुल्क शिक्षा सुलभ नहीं करना चाहती। दायित्व नहीं निभाना चाहती, बजट में बेहद कमी करती जा रही। शिक्षकों की नियुक्ति नहीं कर रही तो देश के उद्धार की कल्पना भी व्यर्थ है।




