Friday, June 20, 2025
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संपादकीय:- यह कैसा धार्मिक श्रद्धा का विद्रूप?

हर व्यक्ति अपने अपने हिसाब से धर्म पालन करने को स्वतंत्र है। किसी दूसरे धर्म अथवा सम्रदाय को नीचा दिखाने का कुत्सित प्रयास स्वयं में अत्यंत नीचता का व्यवहार है। सनातन धर्मी राष्ट्र भारत वसुधैव कुटुंबकम् का संदेश देता है।समस्त संसार के लोगों को अपना परिवार मानता है।किसी को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति स्वयं में नीचता ही है। सर्वधर्म समभाव अर्थात दूसरों को स्वीकार करना ही प्रेम है। नफरत करने वाले दुष्टों के भीतर सत्य के अभाव में प्रेम का पुष्प नहीं खिलता। धर्मप्राण देश में धार्मिक आस्था पर चोट करना अक्षम्य और अनैतिक अपराध की श्रेणी में आता है। अभी हाल ही में गुजरात के अहमदाबाद में घटित अमानवीय, अधार्मिक घटना भक्तिभाव और धार्मिक आस्था पर चोट पहुंचाने वाली है। गुजरात राज्य के जिले सालंगपुर मंदिर में कोटि कोटि हिंदुओं के आराध्य, महाविद्वान, महाबली हनुमान जी को एक व्यक्ति द्वारा स्थापित स्वामीनारायण समाज के कथित संत सहजानंद स्वामी के सम्मुख हाथ जोड़कर बैठे दिखाने वाले चित्र के कारण सनातनी संत और स्वामीनारायण के भक्तों के बीच विवाद स्वाभाविक है। आप को अपनी मान्यताओं के पालन की आजादी हो सकती है परंतु सनातनधर्म को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति अनुचित है,अधार्मिक है।स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा हनुमानजी की विशाल मूर्ति स्थापित की गई है जिसकी देख भाल की जिम्मेदारी खुद स्वामीनारायण पंथ की है। वहीं महाबली बजरंग बली को नीचे बैठकर, करवड्ढ हनुमान जी को स्वामी सहजानंद के सम्मुख दीन हीन स्थिति में एक भित्ति चित्र में स्थापित किया गया है। जिस ताकतवर देव को महाप्रतापि त्रैलोक्यजई रावण भी बांध नहीं सका। जिन्होंने दशानन के दर्प को चूर करते हुए स्वर्ण लंका जला डाली, वे श्रद्धा के पात्र किसी मठाधीश तुच्छ व्यक्ति के सामने घुटने टेक दें संभव ही नहीं है। अपने कथित स्वामी का महिमामंदन करने के लिए करोड़ों हिंदुओं की श्रद्धा को चोट पहुंचाने का अधिकार किसने दिया? जगद्गुरू शंकराचार्य एवम अन्य हिंदू संतों ने इसका विरोध किया जो स्वाभाविक है। सनातनधर्म किसी अन्य संप्रदाय का विरोध नहीं करता। हां उसको ठेस पहुंचाने का कुत्सित प्रयास होने पर गलत कार्य के विरोध का कर्तव्य अवश्य बनता है। बता दें कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के व्यक्ति ने स्वामीनारायण पंथ की स्थापना की जिसके करोड़ों भक्त देश विदेश में धनी और संपन्न जन हैं। कभी ओशो के भी ऐसे ही धनी लोग भक्त हुआ करते थे। विशेष बात यह कि हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके परिजनों की श्रद्धा और नजदीकी स्वामीनारायण पंथ के साथ होने के कारण ही पुलिस ने स्वामीनारायण मंदिर के लोगों पर हिंदुओं की आस्था पर कुठाराघात करने के बावजूद एफआईआर दर्ज नहीं की गई और न कोई कानूनी कार्रवाई ही। एक काम प्रशासन ने अवश्य किया कि स्वामीनारायण मंदिर और सनातनी लोगों की सुरक्षा व्यवस्था कर दी है। सरकार द्वारा सनातनधर्म के प्रति न्याय हेतु कदम नहीं उठाने से आहत सनातनधर्म के अखिल भारतीय संत समिति ने क्रिया पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए गुजरात के अध्यक्ष पद से स्वामीनारायण संप्रदाय के नौतम स्वामी को हटा दिया है। उनके स्थान पर जगन्नाथ मंदिर के महंत दिलीप दास महाराज को अध्यक्ष बना दिया है। अध्यक्ष पद से हटाए जाने पर नौतम स्वामी ने कहा कि वे पद के लिए काम नहीं करते। धर्म की सेवा के लिए आए हैं तो इतने समय तक आप कैसे और क्यों अध्यक्ष बने रहे। आपको पद स्वीकार ही नहीं करना था। नौतम स्वामी के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ऋषि भारती बापू ने कहा कि वे हर बार सेवा का दावा करते हैं लेकिन ऐसा वास्तव में नहीं होता। इस प्रकरण पर मौन रहने वाली हिंदुत्व की ठेकेदार बीजेपी तब मुखरित हो जाती है जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के मंत्री पुत्र अपनी पार्टी डी एम के की नीति के अनुसार सनातनधर्म को डेंगू मलेरिया बताते हुए उसे कीटनाशक द्वारा खत्म करने का बयान देते हैं। कोई भी तटस्थ धार्मिक व्यक्ति न मंत्री के बयान का समर्थन करेगा और नहीं हनुमान जी को एक व्यक्ति के सम्मुख घुटनों के बल बैठकर हाथ जोड़े दयनीय दशा का भित्ति चित्र लगाने का ही। किस सनातनधर्म की बात करें जब हिंदूधर्म के ठेकेदार रंगे कपड़े पहने हुए राजनीति की भाषा बोलें। पक्षपात करें। साधु वेश में तो रावण भी था। आज तो सैकड़ों हजारों लाखों लोग चोंगा पहने भक्तों को लूटने में लगे हैं। जिन्हें सनातनधर्म का मर्म नहीं मालूम। पीएम मोदी ने शायद सनातनधर्म पर होते विवाद को शायद राजनीतिक रंग देने से बचने के लिए सभी केंद्रीय मंत्रियों को नहीं बोलने की सलाह दी है।सनातनधर्म पर बोलने का हक उसी को है जो पूर्ण रूप से जानता हो।व्यर्थ की बहस बाजी के स्थान पर सनातनधर्म के प्रचार की जरूरत है। राजनीतिक हिंदू धर्म की नहीं।

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