
सबसे पहले लव जिहाद की चर्चा। मुस्लिम लड़के कलावा बांधे या फिर जनेऊ, यह उनकी फितरत हो सकती है, लेकिन सवाल यह है कि हर बार हिंदू लड़कियां ही लव जिहाद की शिकार क्यों बनती हैं? क्या उनकी पारिवारिक परवरिश में कमी है? घर में स्नेह नहीं मिलता? या फिर उनका कहना- जातियों और धर्मों में क्या रखा है, मैं किसी जाति धर्म को नहीं मानती, या फिर सभी इंसान हैं, उनके लहू का रंग लाल है—सबसे बड़ी बात स्वयंवरा की प्रवृत्ति, जिसमें अपने जीवन साथी खोजने के अधिकार की जिद ही उन्हें लव जिहाद का आसान शिकार बना देती है। क्योंकि लड़कियों को उनके स्वयंवर होने का ख्याल दिल से निकाला जाना चाहिए। अपनी मां-पिता को हितैषी नहीं मानने का ही दुष्परिणाम सामने आता है और अपना सब कुछ लुटाकर होश में आने तक सूटकेस में टुकड़ों में मिलती हैं। दरअसल उन्हें अपने सनातन धर्म का ज्ञान ही नहीं रहता। संस्कार की कमी भी प्रमुख कारण संभव है।
कानपुर में “I love Muhammad” का एक बोर्ड टांगे जाने और उसका विरोध यह कहकर करने कि नई परंपरा नहीं डाली जा सकती। जुम्मे की नमाज़ में बड़ी संख्या में मुसलमान इकट्ठे होते हैं। जुम्मे की नमाज़ अदा करना उनकी धार्मिक मान्यता है, जो किसी मस्जिद में अदा की जाती है। सामान्य दिनों में अपने घर या जहां भी समय से रहते हैं, नमाज़ पढ़ना चालू कर देते हैं। मस्जिद छोटी होने पर सड़क पर नमाज़ पढ़ने बैठ जाते हैं, जिसमें बमुश्किल पंद्रह से बीस मिनट लगते हैं, जिसे आवागमन में परेशानी कहकर विरोध किया जाता है। बरेली में जुम्मे की नमाज़ के बाद वे किसी पार्क में जाना चाहते थे। संभव है कोई मीटिंग रही हो, लेकिन पुलिस द्वारा रोके जाने पर उत्तेजित होना स्वाभाविक है। बस, पुलिस ने उन्हें जबरदस्ती पार्क में जाने से रोका, जिस पर झगड़ा बढ़ा। पुलिस द्वारा लाठी प्रयोग के कारण घायल होकर वे भागने को मजबूर हो गए। जबकि देश और दुनिया ने देखा कि हरिद्वार से कांवड़ उठाने के कारण हाइवे का एक तरफ का हिस्सा बंद कर दिया जाता है, तो तब वाहनों को परेशानी नहीं होती? उन पर सरकार जनता के पैसे से खरीदकर फूल बरसाती है। क्या यह सरकार का पक्षपात नहीं? फिर भी मुसलमानों ने कांवड़ियों के पैर में जलती सड़क का असर कम करने के लिए सड़क पर पानी का छिड़काव किया। कांवड़ियों को बोतल में पीने का पानी दिया। फूल बरसते देखे गए। मुसलमानों को कांवड़ियों के प्रति सम्मान भाव की प्रशंसा करनी चाहिए। मुसलमानों द्वारा कहीं-कहीं फल भी दिए जाते देखे गए। कभी किसी मुसलमान को मंदिर के सामने हुड़दंग करते नहीं देखा गया, जबकि हिंदुओं को जुलूस लेकर मस्जिद के सामने नारे लगाते, गालियां देते देखा-सुना जाता है। ऐसी बातें और व्यवहार सौहार्द बढ़ाते हैं। कांवड़ियों को कारों पर लाठियां बरसाकर ड्राइवर को पीटते और गरीब का ऑटो रिक्शा पलटते देखा गया है। दुर्गा पूजा हो या गणेश विसर्जन, पूरी सड़क घेरकर डीजे पर फिल्मी गाने बजाते-नाचते कहीं भी देखा जाता है। राम, लक्ष्मण, सीता पर पत्थर फेंके गए, कई सदस्य घायल हो गए। बरेली में हिंसा पुलिस के बल प्रयोग के बाद हुई। प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक होने पर दोबारा परीक्षा कराने की मांग हो या एसएससी परीक्षा में अव्यवस्था- छात्रों और शिक्षकों को पीटना, लाठियों से मारना क्या उचित कदम है? क्या मांग करना, रैली निकालना असंवैधानिक है? क्या दोबारा परीक्षा की मांग गैरकानूनी है? फिर उन पर लाठियां क्यों बरसाई जाएं? दौड़ा-दौड़ा कर क्यों पीटा जाता है? सबसे गलत वक्तव्य सबसे बड़ी आबादी के मुखिया योगी की असंसदीय, अमर्यादित भाषा पर सवाल उठाना है। एक संत और सूबे के मुखिया को दंभ में कहना—”जानते नहीं किसका राज्य है? ऐसा सबक सिखाएंगे कि पीढ़ियां याद रखेंगी।”एक योगी मुख्यमंत्री के मुख से ऐसी शब्दावली शोभा नहीं देती। लेकिन विधानसभा हो या कोई रैली, योगी के भाषण में तल्खी और कठोर शब्दों की भरमार रहती है। संविधान ऐसी भाषा की इजाजत किसी जनता के सेवक को कहने की अनुमति नहीं देता। ऐसे शब्द तो गली के गुंडे कहते हैं। राज्य के मुखिया हों या केंद्र सरकार के मुखिया- किसी को ऐसे शब्द शोभा नहीं देते। सत्ता के दंभ में ही अपशब्द कहे जाते हैं। भारतीय लोकतंत्र इजाजत नहीं देता। इस देश पर जितना अधिकार हिंदुओं का है, उतना ही अधिकार मुसलमानों को भी है, क्योंकि आज़ादी की जंग में हिंदू-मुस्लिम मिलकर आंदोलन किए थे। दोनों के खून और शहादत से देश आज़ाद हुआ। यह तथ्य वे कभी स्वीकार नहीं करेंगे, जिनके पूर्वज आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों की चाटुकारिता करते रहे हैं। 1942 में गांधी ने जन भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। उस समय आरएसएस, आंबेडकर, सावरकर और यहां तक कि वामपंथी कम्युनिस्टों ने भी विरोध किया था। लेकिन गांधी की महानता थी कि उनका नैतिक पतन नहीं हुआ। यदि उस समय गांधी जी ने विरोधियों को देशद्रोही और गद्दार कहा होता तो आज देशवासियों के सामने सफाई देने की बाध्यता होती। नेतृत्व ऐसा होता है। सरकार किसी की भी हो, एक तथ्य हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि गोली-बारूद किसी समस्या का हल नहीं है।