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जिस देश का मुखिया इतिहास से सबक नहीं सीखता, अपने ही देश को रसातल में पहुंचाने का सबसे बड़ा अपराध करता है। टैरिफ लगाने के मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति सनकी जैसा निर्णय लेकर खुद अमेरिका को बर्बादी के गर्त में धकेल रहे। ट्रंप को बिन मांगी मुफ्त सलाह दुनिया के तमाम बड़े अर्थशास्त्री देते हुए कहते हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति को अपने ही पूर्व शासक द्वारा टैरिफ लगाने के कारण अमेरिका को बर्बाद करने का इतिहास पढ़ें और अमेरिका को बर्बाद होने से बचाएं। जिस तरह भारतीय प्रधानमंत्री के सामने ब्रिक्स इज डेड कहा, उसमें उनकी तुगलकी सोच जाहिर होती है। ट्रंप के लिए अमेरिकनों से वोट मांगते हुए मोदी ने “अब की बार ट्रंप सरकार” का नारा लगाया था। जिसके कारण मोदी को ट्रंप का परम घनिष्ठ मित्र भारतीय मीडिया बताती है, ब्रिक्स में भारत भी शामिल है, लेकिन मोदी के सामने जिस घमंड से ट्रंप ने कहा, “ब्रिक्स इज डेड” और मोदी की चुप्पी ने ट्रंप का दुस्साहस और अधिक बढ़ा दिया है, जिससे ट्रंप भारत की वस्तुओं पर टैरिफ सौ प्रतिशत लगाने की धमकी देने के बावजूद मोदी ने अमेरिकी व्हिस्की पर टैरिफ डेढ़ सौ प्रतिशत से घटाकर सौ प्रतिशत लगाने की घोषणा तुरंत कर दी, उससे मोदी में साहस की कमी नजर आई। कम से कम ब्रिक्स राष्ट्रों से परामर्श लेने के बाद ही कोई घोषणा करनी थी। मोदी की ट्रंप ने शायद दुखती रग पकड़ ली जिससे मोदी सहमे-सहमे से लगे। उलटे चीन ने ट्रंप को चुनौती देते हुए अपने प्रोडक्ट्स अमेरिका को न देने की घोषणा कर करारा जवाब दिया जिससे अमेरिकी उद्योगपतियों में घबराहट फैल गई।
विदेशी वस्तुओं पर सौ प्रतिशत टैरिफ की घोषणा के बाद फॉर्च्यून में छपे समाचार के अनुसार, अमेरिकी पूर्व ट्रेजरी सेक्रेटरी लैरी समर्स के अनुसार, ट्रंप की धमकी वैसी नीति है जैसे “रोको या मैं अपने पैर में गोली मार लूंगा।” वॉल स्ट्रीट जर्नल के एडिटोरियल बोर्ड का मानना है कि ट्रंप की टैरिफ धमकी इतिहास की सबसे मूर्खतापूर्ण ट्रेड वॉर कराएगी। जे पी मॉर्गन भी इस फैसले से चिंतित हैं। अगर सारे अर्थशास्त्रियों की सहमति पर ध्यान दें तो यह टैरिफ अमेरिका के लिए फायदेमंद नहीं होगा। इससे वैश्विक व्यापार युद्ध छिड़ जाएगा, जिसका बुरा असर अमेरिकी नागरिकों पर पड़ेगा। बीबीसी से बातचीत में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की अर्थशास्त्र प्रोफेसर मेरेडिया के अनुसार, अमेरिका के कम आय वालों पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। अर्थशास्त्रियों ने ट्रंप को 1930 की याद दिलाते हुए राष्ट्रपति हरबर्ट हूवर द्वारा विदेशी सामानों पर मोटा टैरिफ लगाने से अमेरिका को महान बनाने की सोच के कारण उनकी सरकार ने हॉले-स्मूट टैरिफ एक्ट 1930 पास किया था। उस समय 2000 से अधिक वस्तुओं पर ज्यादा टैरिफ लगाया गया था जिससे उनकी कीमतें बढ़ गईं और वे अमेरिकी बाजार में कम प्रतिस्पर्धी हो गईं। वह फैसला अमेरिका में तबाही लाने वाला था। अमेरिकी राष्ट्रपति के फैसले के कारण दूसरे देशों ने भी अमेरिकी निर्यात पर भारी टैरिफ लगा दिया जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरावट आई और वैश्विक अर्थव्यवस्था चरमरा गई। अमेरिकी उत्पादों पर ज्यादा टैरिफ लगाने से विदेशों में अमेरिकी उत्पादों की मांग खत्म हो गई और निर्यात में गिरावट आ गई, जिससे अमेरिकी कंपनियों को बहुत बड़ा घाटा होने के साथ बेरोजगारी काफी बढ़ गई। उस कानून के कारण 1929 में शुरू हुई अमेरिकी महामंदी और अधिक गहरा गई, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था घुटनों पर आ गई थी। लगता है, अपनी सनक में ब्रिक्स देशों को सबक सिखाने की धुन में ट्रंप अमेरिकी इतिहास से सबक ही लेना नहीं चाहते, जिस कारण विदेशी वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगाने की जिद पर अड़े हुए हैं। विश्व के तमाम अर्थशास्त्री ट्रंप की इस सनक को “अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने” जैसा मानते हैं। ट्रंप की दादागिरी को दरकिनार कर ब्रिक्स राष्ट्र अपने सदस्यों के साथ व्यापार बढ़ा सकते हैं। यूरोपीय राष्ट्रों की तरह अपनी ब्रिक्स मुद्रा में व्यापार शुरू कर यूरोप से भी व्यापार कर सकेंगे। इस तरह दुनिया एक तरफ और अमेरिका दूसरी ओर होकर अकेला पड़ जाएगा और तब ट्रंप को अपने ही देशवासियों को संकट में डालकर खून के आंसू निकालने का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। अतः अमेरिका को छोड़कर वैश्विक व्यापार बढ़ाकर दुनिया को खुशहाल बनाया जा सकेगा।