अतिथि संपादक यतींद्र कुमार
सत्तामद में मोदी सरकार के आदेश पर चलने वाला चुनाव आयोग खुद ही भारतीय संविधान और लोकतंत्र का मखौल उड़ा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है, हमें ऐसा चुनाव आयोग चाहिए जो पीएम की गलती पर भी कार्यवाही करे न कि सत्ता के अनुसार चले। मतदान पूर्व जनता का मिजाज बहुत साफ था, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार को पुनः सत्ता में वापस लाना और मध्यप्रदेश की भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी बीजेपी सरकार को उखाड़ फेकना लेकिन चुनाव आयोग तो सत्ता की जीहुजूरी करते हुए इतने ब्लंडर्स किए जो भारतीय चुनाव इतिहास में काला अध्याय बनकर रह जाएगा। तनिक सोचिए। इतनी पुरानी पार्टी मध्यप्रदेश में अपार जनसमर्थन के बावजूद कांग्रेस अठारह जिले की पचहत्तर सीटों से एकदम गायब हो जाए? जी हां 18 जिलों की 75 सीटों पर कांग्रेस का नाम मिटा दिया गया। क्या आम तौर पर यह संभव है? जबकि गोदी मीडिया तक अपने सर्वे में एक तरफ से कांग्रेस की सरकार बहुमत से बनने के अपने सर्वे में जता रहे थे। अब सर्वे बिलकुल ही पलट जाए संभव ही नहीं है। इतना ही नहीं कांग्रेस विधायक अपने ही गांव में पच्चास वोट तक नहीं पाए क्या यह कभी संभव है? कुछ न कुछ गड़बड़ है दया की तर्ज पर यहां तो सब कुछ गड़बड़ ही गड़बड़ है। अमूमन माना जाता है कि बीजेपी ईवीएम हैक कराकर बीस से पच्चीस प्रतिशत वोट अपने पक्ष में कर लिया करती है लेकिन इस बार तो तीनों बड़े राज्यों में बीजेपी ने शत प्रतिशत मत अपने पक्ष में कर लिया था जिससे तीनों बड़े राज्यों में चुनाव मतदान परिणाम बदल गए। ताजा मामला छत्तीसगढ़ का है। जहां के विधायक ने चुनाव आयोग से शिकायत की है कि उसने और उसके परिवार ने छः मत अपने पक्ष में डाले थे लेकिन उसके मत बीजेपी की ओर ट्रांसफर कर दिए गए। उसे अपना और परिजनों के वोट से भी वंचित कर दिया गया। अब देखना है चुनाव आयोग क्या कार्रवाई करता है? इतना निश्चित है कि चुनाव आयोग की हिम्मत ही नहीं है कि वह सत्ता के खिलाफ किसी तरह का एक्शन ले सके क्योंकि जब मोदी ने कृपा करके मुख्य चुनाव आयुक्त की मनमानी नियुक्ति कर बहुमत की तानाशाही का परिचय दिया था। खुद मोदी ईवीएम का विरोध करते रहे थे लेकिन आज उनका ईवीएम प्रेम, पेंगासस और इजरायल ?
यही कारण है कि उद्धव ठाकरे ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है, बैलेट पेपर से चुनाव कराकर जीत कर दिखाएं मोदी तो वे राजनीति छोड़ देंगे। बात में दम है। हजारों शिकायतों पर चुनाव आयोग का चुप्पी साधना उसकी मजबूरी क्यों है? सुप्रीम कोर्ट के माननीय जस्टिस ने भी मौखिक रूप से आयोग के कान खींचे हैं। कानून अंधा होता है परंतु जस्टिस अंधे नहीं। चुनाव आयोग भ्रम में है कि वह सत्ता की जो दलाली कर रहा है, उसकी जानकारी सुप्रीम कोर्ट को नहीं है। सुप्रीम कोर्ट सब कुछ देख समझ और बोल रहा है। अगर चुनाव आयोग नहीं सुधरा और सत्ता के साथ मिलकर भारतीय संविधान और लोकतंत्र खत्म करता रहा तो सुप्रीम कोर्ट मूक दर्शक बना नहीं रह सकता क्योंकि संविधान की रक्षा करना उसका दायित्व है। निश्चित ही वह कठोर निर्णय जनहित देशहित लोकतंत्र हित के लेगा संविधान बचाने के लिए और तब सत्ता और चुनाव आयोग बेजार हो जाएगा।