
मोदीजी हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं। वे स्वदेशी का प्रचार करते हुए विदेशी सामान न खरीदने की देशवासियों को सलाह देते हैं, लेकिन वे खुद पेन, जूते, चश्मे, सूट आदि विदेशी पहनते हैं। उन्हें देशवासियों को पहले आदर्श स्थापित करने की जरूरत है। आप हर सामान विदेशी उपयोग में लाएं और देशवासियों से स्वदेशी सामान खरीदने के लिए प्रेरित करें तो यह सरासर अन्याय होगा। आप जिस हवाई जहाज में जाते हैं, जो कार आप उपयोग में लाते हैं, दोनों विदेशी हैं। किसी ने भी आपको स्वदेशी वस्तुओं का उपभोग करते नहीं देखा या सुना होगा। आप देश के शीर्ष नेता हैं, करोड़ों भक्तों के लिए सब कुछ हैं। आपका नाम आते ही भक्त गलियों से नवाज़ते हुए अपशब्दों की बौछार शुरू कर देते हैं, तो आप से ही प्रेरित होते हैं। आप सार्वजनिक तौर पर चाहे पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड कहें या कांग्रेस की वह कौन सी विधवा कहकर किसी की मां का अपमान करते हैं, तो आपके भक्त आपको आदर्श मानते हुए वैसे ही अपशब्द कहते-लिखते रहते हैं। भाषाई गरिमा तार-तार कर दिए जाने के कारण भक्त भी उसी भाषा का उपयोग करते हैं। जहां तक स्वदेशी की बात है, लोग प्रायः खरीदते हैं। मार्केट ने अनेकों मैकडोनाल्ड आदि विदेशी ब्रांड खरीदना अपनी शान समझते हैं। आपको सर्वप्रथम विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए, तब करोड़ों भक्त भी स्वदेशी की तरफ आकर्षित होंगे। अपने अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हुए अमेरिका में नारा लगाया था, “अबकी बार ट्रंप सरकार,” लेकिन ट्रंप ने आपकी दोस्ती का क्या सिला दिया? टैरिफ और रूस से तेल खरीदकर यूक्रेन की बर्बादी का आरोप ट्रंप आप पर लगा रहा, जबकि चीन सबसे अधिक रूस से तेल खरीदता है। उस पर कम टैरिफ लगा दिया। यही नहीं, यूरोपीय राष्ट्र रूस के बड़े आयातक हैं तेल और गैस के, उन पर भी थोड़ा सा टैरिफ लगाया। अब तो विदेशी छात्रों, सांस्कृतिक कार्यक्रम से अमेरिका जाने वालों की वीजा अवधि मात्र चार साल कर दी। पर्यटकों का वीजा भी कम अवधि का करने का कानून बना रहा अमेरिका। छात्र, पत्रकार की परेशानियां बढ़ जाएंगी। अमेरिका भारत का सामरिक आर्थिक पार्टनर जरूर है, लेकिन व्यापारी अपना फायदा पहले देखता है। वैसे आप भी हमेशा कहते रहते हैं, “गुजराती हैं, नसों में व्यापार दौड़ता है,” फिर गच्चा कैसे खा गए? पहले भी अंग्रेजों द्वारा “फूट डालो, शासन करो” की नीति चलकर भारतीय इतिहास में गलत तथ्य भरे अंग्रेजों ने। उसी राह पर ट्रंप के ट्रेड सलाहकार ने कहा है, भारतीयों को हो क्या गया है? समझना होगा कि ब्राह्मण रस से तेल खरीदकर दूसरे देशों में महंगा बेचकर अरबों रुपए कमाए। भुगतना जनता को पड़ेगा। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि अंग्रेजी बोलने वाले देश पूंजीपतियों, व्यापारियों को ब्राह्मण कहा करते हैं, क्योंकि भारत में चार वर्णों के ब्राह्मण सर्वोपरि कहा जाता है। अंग्रेज ही नहीं, मुगल बादशाह अकबर और सिकंदर जानता था कि जब तक ब्राह्मण रहेंगे, भारत को कभी पराजित नहीं किया जा सकता। इसी लिए ब्राह्मणों के खिलाफ भारत के शेष लोगों में रोष पैदा करने के लिए ब्राह्मणों को दोषी ठहराया। आरएसएस प्रमुख कहते हैं, ब्राह्मणों ने जातियां बनाई। अज्ञानता को क्या कहा जाए? कुशल कारीगरों के काम के आधार पर वे खुद को जाति समझने कहने लगे थे, इसलिए जाति बनी। अब पीटर नवारो पर आते हैं, उन्होंने रूस से तेल खरीदकर महंगे दामों में बेचने वालों को ब्राह्मण संज्ञा दी। यह भारत में सामाजिक बंटवारे और नफरत के लिए जानबूझकर ब्राह्मण शब्द का प्रयोग किया गया है। अब अन्य जातियों के लोग ब्राह्मण को दोषी कहने लगेंगे। जबकि सच तो यह है कि रूस से सस्ता तेल खरीदने वाले व्यापारी ब्राह्मण नहीं हैं। सत्ता के केंद्र राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ब्राह्मण नहीं हैं। मंत्रिपरिषद में भी ब्राह्मण बहुत कम हैं। अभी-अभी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एससीओ समिट 2025 में भाग लेने पहुंचे। वहां उन्होंने पाकिस्तान के मित्र और द्रोह देने वाले तुर्की के नेता से हाथ मिलाकर जता दिया कि उनका खून ठंडा हो गया है। वे चीनी राष्ट्रपति की ओर हाथ बढ़ाते हैं मिलाने के लिए, मगर जिनपिंग हाथ से इशारा करते हैं आगे बढ़ने के लिए। हाथ नहीं मिलाते। गलवान घाटी के फौजी संघर्ष की याद अभी भी है जिनपिंग को। कितनी लाचारी है भारत की? स्मरण है, नेहरू, राजीव गांधी जब अमेरिका गए थे, राष्ट्रपतियों ने उनका खूब स्वागत किया था। यहां तक कि छाता लेकर राष्ट्रपति राजीव गांधी को साथ लेकर आगे बढ़े दिखे। डॉ. कलाम अमेरिका गए तो उनकी अगवानी बड़े जोश-ओ-खरोश के साथ की गई थी और वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति और मोदीजी का बेस्ट फ्रेंड ट्रंप सामने बिठाकर बेइज्जत करते दिखा। वास्तविकता यह है कि किसी व्यक्ति का सम्मान उसके द्वारा अपने देश के लिए किए सत्कार्यों और व्यक्तित्व से सम्मान मिलता है। सम्मानित पद होता है, लेकिन मोदी जी ने देश का खुद ही अनेक राष्ट्रों में अपमान किया और कराया है। करोड़ों डॉलर फूंककर विदेश यात्राएं करने का क्या फायदा, जब भारत के पक्ष में एक भी राष्ट्र खड़ा नहीं हुआ? पाकिस्तान के साथ युद्ध में अमेरिका, चीन, तुर्की, अज़रबैजान जैसे राष्ट्र खड़े ही नहीं हुए, बल्कि हथियार और धन भी दिए थे। अभी-अभी यूरोपीय संघ के बाद ब्रिटेन ने भी भारत को धमकाते हुए कहा है, भारत को रूस और अमेरिका में किसी एक को चुनना होगा। क्या भारत इतना कमजोर हो गया है कि विदेशी धमकी देने पर उतर आएं? हालांकि यह सच है कि एससीओ समिट में भारत के शामिल होने और रूस से नजदीकियां बढ़ाने को लेकर अमेरिका में भय व्याप्त है और इसीलिए सन्निपात के रोगी की तरह धूर्त ट्रंप भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाता है। धमकियां देता और दिलाता है। उसे भय है, रूस, चीन, भारत, जापान, ब्राजील, मिस्र जैसे देश जब एक मंच साझा कर कोई निर्णय ले लेंगे तो दुनिया में उसकी बादशाहत खत्म हो जाएगी। इसीलिए ट्रंप को डर लग रहा कि ब्रिक्स राष्ट्र मिलकर यूरोप द्वारा कोई साझा मुद्रा के व्यापार करने लगेंगे तो उसका डॉलर बिना मूल्य का हो जाएगा। लेकिन भारत को कूटनीतिक रूप से रूस, चीन, तुर्की, ब्राजील जैसे राष्ट्रों के साथ देश हित में निर्णय लेने होंगे।