यह भारत नया बना हुआ है। जब भारत को आज़ादी ही 2014 के बाद मिली हो, तो उसके पहले के भारत की चर्चा का महत्व ही खत्म हो जाता है। कुछ लोग कहते हैं, राम मंदिर बनने के बाद ही भारत आज़ाद हुआ। किस राम का मंदिर? जिन्हें बच्चा बताते हुए विश्वगुरु मोदी के द्वारा उंगली पकड़कर ले जाते हुए पोस्टर के राम? वे तो बच्चे ही होंगे। फिर उनसे मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की आशा फिलहाल नहीं करनी चाहिए। बालक राम से उम्मीद ज्यादती होगी। हाँ, दशरथ नंदन राम, जो पत्नी वियोग में वन-वन घूमते पूछते- हे खग, मृग, हे मधुकर सेनी! देखी कहीं सीता मृगनयनी? क्या प्रभु राम को नहीं पता था कि सीता का हरण पंचवटी से भगवा वेशधारी रावण ने कर लिया है? प्रभु श्रीराम चाहते तो किसी भी समय रावण को मार सकते थे। फिर वानर-भालू की सेना की ज़रूरत ही क्या थी? गर्भिणी सीता का धोबी द्वारा अपनी पत्नी को ताना मारने पर गर्भवती सीता का परित्याग क्यों किया, जबकि लंका में ही अग्नि परीक्षा ली जा चुकी थी? लेकिन नहीं। यदि राम वन प्रांतर में सीता को ढूंढने का उपक्रम नहीं करते, तो मनुष्य कैसे कहलाते? वानर-भालू की सेना बनाकर लंका पर चढ़ाई, मानव होने का प्रमाण दिया था। देवताओं के राजा, कुटिल कामवासना में रत इंद्र ने छल द्वारा परिभक्ता अहिल्या का उद्धार कैसे किया? राम राजपुरुष थे। राम द्वारा किसी महिला का सम्मान करने के बाद, आदरणीया होना स्वाभाविक ही था। सच तो यह है कि अहिल्या पाषाण नहीं, पाषाणवत हो गई थीं। जब किसी स्त्री का सतीत्व नष्ट कर दिया जाए, तो उसका हँसना-बोलना, मुस्कुराना खत्म हो जाता है।
शबरी आदिवासी महिला थी। राम ने उसके झूठे बेर खाकर बता दिया कि सारे मानव एक हैं। कोई ऊँच-नीच और अछूत हो ही नहीं सकता। यह तो संकीर्ण मानसिकता है, जो द्वेष करते हैं। सच तो यह है। सभी प्राणी-जीव में आत्म के रूप में परमात्मा ही स्थापित रहता है। तू-मैं का भेद उचित नहीं। द्वैत है, अज्ञानता है, भेद करना। चुनाव जीतने के लिए नफरत फैलाकर भारत माता को रौंदा जा रहा है। फिर कांवड़ यात्रा शुरू होने के पहले नाम फलक लगाने के लिए मजबूर कर देश की एकता, अखंडता को तोड़ा जा रहा है। दूसरों से नफरत नहीं, प्यार करना ही सारे धर्म बताते हैं। वे कौन से सनातनधर्मी हैं, जो हिंदुत्व की फटी ढोल पीटकर गुंडे बन सड़क किनारे बने शर्मा के ढाबे पर काम करने वाले हिंदू की पैंट जबरन उतरवाकर उसका धर्म देख रहे हैं? उन गुंडों को किसने अधिकार दिया है? जो लोग आज खुद को सनातनी कहते हैं, क्या वे जानते हैं। सनातनधर्म का ककहरा? नहीं। सारे के सारे ढोंगी हैं, धूर्त हैं। मानवता ही नहीं, भारत माता के भी दुश्मन हैं। यह मर्यादा पुरुषोत्तम राम, योगिराज कृष्ण, गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी का देश है। जहाँ “सत्य” ही परम धर्म का उद्घोष किया जाता रहा है। अहिंसा को परमो धर्म माना गया है। धर्म पर चलने की अनुशंसा की गई है। जो नेता देश में नफरत का ज़हर बो रहे हैं, वे बताएं। क्या सनातनधर्म में हिंसा के लिए कोई स्थान है? गौमांस के नाम पर निर्दोष मुस्लिम को भीड़ मार देती है, और बड़े-बड़े कत्ल कारखाने चलाने वाले हिंदुओं के यहाँ ताला क्यों नहीं लगवाते? प्रधानमंत्री मोदी से सवाल क्यों नहीं पूछते कि गौ हमारी माता है, तो बीफ निर्यातकों से चुनावी चंदा क्यों लेते हैं? क्या यही हिंदुत्व है? क्या यही सनातनधर्म है? सनातनधर्म तो सत्य, प्रेम, न्याय और पुण्य के चार स्तंभों पर खड़ा रह सकता है। उनमें से कौन से स्तंभ का समादर करते हो तुम? सत्ता की भूख देश को रसातल में ले जा रही है। देश को भीतर ही भीतर खोखला कर रही है। कहाँ गया “वसुधैव कुटुंबकम्” और “सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्” का गूढ़ वाक्य? हत्या, बलात्कार, भ्रष्टाचार का समर्थन कर, क्या तुम सनातनी तो दूर, हिंदू होने योग्य भी नहीं हो? नफरत के बदले नफरत ही मिलेगी। प्रेम करो तो हिंसक, जंगली जानवर भी पालतू बन जाता है। और नफरत, हिंसा करके। क्या तुम भारत माता को मजबूत बना पाओगे? महात्मा बुद्ध की मृत्यु के बाद, सम्राट अशोक जब कलिंग में एक लाख निर्दोष हिंदुओं का कत्लेआम करता है, तो वह व्यथित होता है। मानसिक शांति नहीं मिलती। वह संत के सम्मुख जाता है। निराकरण रूप में बौद्ध धर्म का भारत ही नहीं, विश्व में अहिंसक होकर प्रचार करने के लिए अपने बेटे और बेटी को भेज देता है। क्या अशोक ने बुद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए तलवार उठाई थी? बाबा साहब आंबेडकर ने संविधान लिखकर महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिलाया। देश के लोगों को समानता के लिए मौलिक अधिकार दिया। संविधान ही भारत की आत्मा है। उसे छलनी तो मत करिए। सरकार का काम नहीं है कि वह मंदिर और कॉरिडोर बनवाकर राजनीतिक फायदा उठाने का कुत्सित प्रयास करे। जनता के सेवक हो तो जनहित के काम करो। पीड़ित मत बनाओ। शर्म की बात है कि आज भी देश की अस्सी करोड़ जनता पाँच किलो अनाज पर ज़िंदा नहीं, मुर्दा बन चुकी है। उनका जीवन स्तर ऊँचा उठाने के लिए काम करे सरकार। शिक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर, रोज़गार और अच्छी चिकित्सा की व्यवस्था करे सरकार। मानसिक गुलाम मत बनाए देशवासियों को, ताकि अपने भ्रष्टाचार छुपा सके। कहावत है- पाप का घड़ा एक दिन फूटता ही है। आज नहीं तो कल तुम्हारे भी पापों का घड़ा फूटेगा, तो कहीं भी छुपाने की जगह नहीं मिलेगी।