
शून्य से शुरू कर राज्यपाल जैसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन होना, वह भी बिना किसी गॉड फादर के, सरल नहीं है। बरेली यूनिवर्सिटी में छात्र संघ का प्रेसिडेंट चुनाव लड़कर अध्यक्ष चुने जाने से राजनीति की शुरुआत की थी। स्वभाव से अक्खड़, मेधावी, स्पष्ट वक्ता और ईमानदारी उनके आभूषण रहे। शुरू में जनता दल से चुनाव लड़कर उत्तर प्रदेश विधानसभा में विधायक बने। एक बार एमएलसी भी चुने गए। उन्होंने बीएससी और लॉ की डिग्री ली थी। सपा के टिकट पर हार मिली, फिर लोकसभा में पहुंचे। बीजेपी में शामिल होकर उन्होंने अपने व्यक्तित्व का सिक्का जमा लिया। बीजेपी के पुराने नेताओं में शुमार हुए। उनकी संगठन क्षमता देखकर पहले उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद राज्यपाल की भूमिका बिहार राज्य से शुरू की। अगले साल उन्हें उड़ीसा का अतिरिक्त कार्यभार मिला, जिसका बखूबी पालन किया। वहां से उन्हें जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बना कर भेजा गया। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहते धारा 370 खत्म की गई, जिससे कश्मीरी लोगों में बड़ा गुस्सा था, लेकिन वाकपटुता और मिलनसार गुणों के चलते उन्होंने कश्मीर के प्रायः सभी दल के नेताओं से सहमति बनकर कश्मीर घाटी में शांति बनाने में सफलता प्राप्त की।
जब धारा 370 हटाई गई तो आरएसएस के एक बड़े पदाधिकारी सुबह उनके पास आकर तीन सौ करोड़ रुपए घूस का प्रस्ताव दिया। ये प्रस्ताव दो कंपनियों को कश्मीर में स्टेब्लिशमेंट के लिए दिया जा रहा था, लेकिन ईमानदार मलिक ने दोनों ही प्रस्ताव को मंजूरी नहीं देकर प्रमाणित किया कि उन्हें दौलत से खरीदा नहीं जा सकता। जिसकी सूचना उन्होंने मोदी जी को दी, लेकिन घुस देने की जांच तक नहीं कराई गई। उनके ही कार्यकाल में पुलवामा आतंकी घटना हुई, जिसमें चालीस सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए। जिसके बाद उन्होंने पीएम मोदी को फोन किया। फोन नहीं उठा तो रात में बात हुई। उस समय पीएम डिस्कवरी चैनल के लिए शूटिंग में व्यस्त थे। बाद में बात होने पर, जैसा कि मलिक ने अपने इंटरव्यू में खुलासा किया, प्रधानमंत्री ने उन्हें इस मामले में चुप रहने को कहा था। मलिक ने इंटरव्यू में बताया कि बाद में पीएम के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का फोन आया, जिसमें कहा गया, “आप चुप रहें, क्योंकि सारा आरोप पाकिस्तान पर जमा है। यहां सतपाल मलिक ने इंटरव्यू में प्रक्रिया की बात बताते हुए कहा कि जब भारी संख्या में सैनिक को अन्यत्र भेजा जाता है तो उन्हें एयरलिफ्ट कराया जाता है। सीआरपीएफ ने केंद्रीय गृहमंत्री से विमान मांगे थे, लेकिन पांच महीने तक लटकाकर रखा गया। अगर विमान मिले होते तो एयरलिफ्ट कराकर शिफ्ट किया जाता। मजबूरी में सीआरपीएफ को सड़क मार्ग से जाना पड़ा। सड़क मार्ग से सेना के जाने के लिए मार्ग से मिलने वाली सारी सड़कों को सौ मीटर दूर तक सारा आवागमन बंद रखा जाता है, यही नियम कहता है। मलिक ने सीधे-सीधे कहा कि पंद्रह दिनों तक आरडीएक्स लदा ट्रक कश्मीर की सड़कों पर घूमता रहा, किसी ने चेकिंग की जरूरत ही नहीं समझी। नतीजा सामने आया, सरकार की गलती से चालीस जवान शहीद हो गए। यहां प्रश्न उठता है कि ट्रक वाले को कैसे ज्ञात हुआ कि फलां नंबर बस बम विस्फोट से सुरक्षित नहीं है? निश्चित ही अत्यंत गोपनीय ढंग से आतंकी को लोकेशन और सिचुएशन लीक किया गया होगा। निश्चित ही यह साजिश का हिस्सा था। शायद मलिक के शब्द कि “यह घटना हमारी ग़लती से हुआ है। जिसके कारण बीजेपी के शीर्ष नेता उनसे नाराज हो गए थे। जिस कारण उन्हें कश्मीर से हटाकर गोवा का, फिर मेघालय का राज्यपाल बना दिया गया। इसके बाद वे सक्रिय राजनीति से बाहर हो गए। शायद उन्हें बीजेपी ने खुलासा करने के कारण ही देश के सबसे संवेदनशील राज्य का राज्यपाल रहने के बावजूद सुरक्षा व्यवस्था हटा दी गई और आवास के नाम पर दो कमरों में रहने को मजबूर कर दिए गए। अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए जाने गए मलिक में वह नैतिक साहस था कि वे बेरहम सत्ता की आंखों में आंखें डालकर गलतियां बता सकें। अपनी ईमानदार छवि को खूब निखारा। किसानों के लिए हमेशा आवाज उठाने वाले मलिक सत्ता की आंखों की किरकिरी बन चुके थे। दो कमरों के दिल्ली वाले घर में किसानों का आना-जाना लगा रहता था। एक बार जब उन्हें थाने में बुलाया गया तो हजारों किसान आ गए और मलिक को साथ लेकर ही निकले। बीमारी में भी सरकार उन्हें फंसाने के लिए कभी ईडी, कभी सीबीआई भेजती रही थी। किसानों के हक की आवाज उठाना मानो सरकार से दुश्मनी लेना हो गया है। जो भी किसानों की समस्याएं उठाता है, वह देशद्रोही मान लिया जाता है। फिर भी मलिक साहब के दिल में किसान बसे हुए हैं। उनकी गांव में पुश्तैनी हवेली भी है, लेकिन किसानों की सुविधा के लिए वे दो कमरे के मकान में दिल्ली में ही रहते थे। जब कभी किसान बड़ी संख्या में आ जाते थे तब पास के पार्क में ही व्यवस्था करते थे। उनका पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के जाटों पर गहरा प्रभाव रहा है। तमाम जांच एजेंसियां उनके पीछे लगाए जाने के बावजूद सच्चाई और ईमानदारी का साथ नहीं छोड़ा कभी। लंबी बीमारी के बाद संयोग देखिए कि धारा 370 हटाए जाने के दिन ही डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उन्होंने आंखें मूंद लीं। उनके देहावसान के उपरांत पश्चिमी यूपी जैसे जाट बहुल इलाके में क्षति की पूर्ति होना लगभग असंभव है।