
मानसून सत्र के तीन हफ्ते बाद संसदीय कार्य मंत्री द्वारा 18 से 22 सितंबर जब महाराष्ट्र का सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाया जा रहा होगा, संसद के दोनों सदनों की अचानक बैठक बुलाना अप्रत्याशित और चौकाने वाला है। तमाम संदेहों से भरा सत्र गोपनीय तरीके से बुलाना सरकार की मंशा बताने के लिए काफी है। मुंबई में इंडिया की महत्त्वपूर्ण बैठक में जहां विपक्षी दलों ने एक जुटता दिखाई वहीं अडानी मामले में नए खुलाशे ने देश की साख मिट्टी में मिलने के मुद्दे पर चर्चा हुई। हिंडेनवर्ग के बाद अब मरिशस की फेक कंपनी द्वारा अडानी समूह को बेनामी धन देने का खुलासा कुछ खोजी पत्रकारों ने किया है जिसकी रिपोर्ट ओसीसीआरपी ने दी है जिससे एक बार फिर अडानी ग्रुप के शेयर धड़ाम से नीचे गिरे हैं। अडानी के मुद्दे पर आई रिपोर्ट को कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने देश की साख गिराने वाला कहा है जिससे घबड़कर सरकार ने पांच दिवसीय गोपनीय विशेष सत्र बुलाकर तमाम अटकलों, संदेहों को जन्म दिया है, जिसे कांग्रेसी प्रवक्ता जयराम रमेश खबरों को दबाने की चाल बताया है क्योंकि सरकार ने बैठक आहूत करने का कोई कारण नहीं बताया है।अटकलें यह भी कि सरकार एक देश, एक चुनाव की बातें बहुत पहले भी किया करती थी लेकिन किसी रेगुलर सत्र में कोई बिल इस पर नहीं लाया गया। संभव है तय समय से पहले ही तीन प्रमुख राज्यों के चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव कराना चाहती है सरकार। वैसे भी सरकार की कार्यशैली में भेद होते हैं। सुप्रीम कोर्ट में सरकार के वकील धारा 370, मामले पर सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि सरकार जम्मू कश्मीर में कभी भी चुनाव कराने को तैयार है। तो क्या चुनाव कराने का निर्णय चुनाव आयोग के स्थान पर खुद सरकार कराने लगी है तो फिर चुनाव आयोग की जरूरत ही क्या है? तुषार मेहता के कथन में भी विसंगतियां हैं। एक तरफ वे कहते हैं वोटर लिस्ट अपडेट करने का काफी काम किया जा चुका है शेष शीघ्र ही हो जाएगा। इसी के साथ कोर्ट में कहना की लद्दाख में स्थानीय चुनाव हो चुके हैं।कारगिल क्षेत्र में कराए जा रहे हैं। इसका अर्थ है कि स्थानीय चुनाव बिना अपडेट कराए वोटरलिस्ट के आधार पर कराए गए हैं जो जनता, लोकतंत्र के साथ धोखा और छल है। आकस्मिक सत्र जैसा कि जयराम रमेश ने खबरें दबाने वाला होगा बिलकुल सत्य है। निश्चित ही सरकार इसरो द्वारा चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग चंद्रमा पर कराने की वैज्ञानिकों के श्रम लगन की चर्चा न कर श्रेय लिया जाएगा जैसा कि पहले ही मोदी ले चुके हैं। उस उपलब्धि का श्रेय जिसका बजट मोदी ने पीएम बनते ही हजारों करोड़ कम कर दिया। इसरो के तमाम कर्मियों को सत्रह महीने का वेतन नहीं देना ही सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है। सरकार की इस बलात लिए गए श्रेय और उपलब्धि का बढ़ा चढ़ा कर वर्णन करने वाली गोदी मीडिया तो है ही जो झूठा प्रचार करने के मामले में कुख्यात हो चुकी है। जिसे वर्ष में इतने धन देती है सरकार जनता के पैसे से जिसमें इसरो हर वर्ष तीन तीन चंद्रयान चंद्रमा पर उतार देता। निश्चित ही संसद का गोपनीय सत्र अडानी की कुख्यात उपलब्धियों से चिंतित है जो संसद में दूसरे मुद्दे उठाकर, कथित उपलब्धियों को अपना बताकर अपनी पीठ खुद थपथपाते हुए जनता का ध्यान अडानी मुद्दे से भटकाने की कोशिश करेगी। सरकार ने पांच हजार करोड़ से अधिक चुनावी फंड जुटा लिए हैं लेकिन विपक्षी गठबंधन इंडिया के पास फंड की भारी कमी के चलते चुनाव प्रचार में कठिनाई ज़रूर आएगी जबकि रोज जनता के करोड़ों रुपए फूंककर पीएम मोदी अपनी पार्टी का प्रचार करते हैं क्यों? जनता के पैसे जो जनता को निशुल्क शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार देने के लिए लिए जाते हैं किसी पार्टी का पीएम जनता के धन से अपनी पार्टी का प्रचार क्यों करे?