
हमारे देश में यदा कदा एक देश, एक चुनाव का जुमला उछाला जाता है। अच्छी बात है। लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव कराए जा सकते हैं परंतु इन दोनो चुनाव के अलावा आदि भी पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत आते हैं जिनके चुनाव भी होते हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने से वोटर भ्रमित हो जाता है। एक उदाहरण है दोनों चुनाव एक साथ हो रहे थे।तब बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाते थे। वोटर अधिकतर अशिक्षित आज भी हैं। उस समय बताया गया था कि फलां रंग की पर्ची पर कांग्रेस को और फलां रंग की पर्ची पर जनसंघ को वोट देना है। कुछ लोगों ने प्रचार किया कि पहले जो पर्ची मिलेगी उसमें दीपक पर और बाद वाली पर्ची पर गाय बछड़े पर ठप्पा लगाना है।बूथ पर मिलने वाली पर्ची बदल गई।परिणाम हुआ आचार्य बीरबल जी हार गए। इसी तरह एक साथ चुनाव कराने में गड़बड़ होना स्वाभाविक है। हम जानते हैं कि अपने देश में लोकसभा का चुनाव अमेरिका जैसे धनी देश से अधिक खर्च किया जाता है जो छः अरब रुपए है।गरीब देश में एक चुनाव पर छः अरब खर्च अनुचित है क्योंकि बूथ बनाने,उसकी सुरक्षा में पुलिस लगाने,पीठासीन अधिकारी को वेतन देने में खर्च अधिक होता है। इसके अलावा सारे प्रत्याशी निर्धारित राशि से कई गुना व्यय करते हैं।वोटरों में शराब और नकद खर्च करने होते हैं। लोकसभा प्रत्याशी पचास करोड़ से कम खर्च नहीं करता।यही कारण है जनता की सेवा की जगह अपना किया गया खर्च वसूलने में भ्रष्टाचार अपनाया जाता है। यानी एक बार लोकसभा चुनाव होने में बूथ के अलावा ट्रेनिंग वोटिंग और काउंटिंग हेतु पंडाल बनाने,फर्नीचर आदि के साथ गणना पूर्व ईवीएम की सुरक्षा में भी खर्च होता है। चुनाव बाद महंगाई बढ़ने का सिलसिला चल पड़ता है। न्यायधर्मसभा के संस्थापक श्री अरविंद अंकुर जी ने डिजिटल वोटिंग और डिजिटल काउंटिंग का शून्य बजट प्रस्ताव सारी सरकारों को दे चुके हैं। जिसके अनुसार शून्य लागत वाला ईमानदार,पारदर्शी चुनाव संभव है। इसके लिए वोटर लिस्ट को वोटर के आधारकार्ड और मोबाइल की जरूरत पड़ेगी। वोटर लिस्ट में आधार और मोबाइल नंबर चुनाव आयोग जोड़ने का कार्य कर रहा है। जिसे दो चार वर्षों में लागू किए जाने की उम्मीद है। हम सभी जानते हैं कि देश में औसतन 60 या 50 प्रतिशत ही वोट पड़ते हैं जिसमें झोपड़पट्टी और देहात क्षेत्र के अनपढ़ वोटर्स 80 प्रतिशत तक वोट देते हीन जबकि पॉश एरिया में यह औसत 20 प्रतिशत से अधिक नहीं पड़ता।इसलिए औसत वोटिंग साठ प्रतिशत ही हो पाती है। वोट नहीं देने वालों को दंडित करने की भी योजना पर शोध चल रहा है। पॉश एरिया में बीस प्रतिशत वोट भी नहीं डालें जाते हैं। कारण है किसी भी नेता को वे उपयुक्त प्रत्याशी नहीं मानते। योग्य यानी पात्र उम्मीदवारों की कमी के कारण वोट नहीं डाले जाते। इसलिए जहां नेतृत्व हेतु न्यायधर्मसभा के अनुसार पात्रता एसक्यू यानी चेतनात्मक क्षमता वान होना है क्योंकि एसक्यू वाले ईमानदार सच्चे और अनुशासित होते हैं। अतः पात्रतानुसार पद नियोजन लागू करने की जरूरत है। डिजिटल वोटिंग और डिजिटल काउंटिंग होने से बूथ निर्माण, कर्मचारियों, सुरक्षा कर्मियों और काउंटिंग में लगने वाला व्यय जीरो हो जाएगा। जिससे गरीब जनता का पांच अरब रुपया बचेगा जो निशुल्क शिक्षा, सुविधा, रोजगार और संरक्षण पर खर्च कर उन्नति की जा सकती है। ईवीएम निश्चित ही हैक की जा सकती है। इसे हैक कर कई बार कई लोगों ने बताया भी है। बीजेपी सरकार राज्यों के चुनाव में जनाबुझकर हैक नहीं कराती। केंद्र की सत्ता उसके लिए प्रमुख है। बैलेट पेपर में दबंगई की गुंजाइश रहती है। डिजिटल वोटिंग पूरी तरह पारदर्शी ईमानदार होगी।विधानसभा क्षेत्र हो ता लोकसभा चुनाव क्षेत्र के हरेक वोटर की मोबाइल पर आसानी से प्रत्याशियों की सूची क्रम भेजी जाएगी और देश विदेश कहीं भी रोज़ी रोटी के लिए गया वोटर मोबाइल पर अपनी पसंद के प्रत्याशी के नंबर की बटन दबा सकता है जो जिले और केंद्र के मास्टर कंप्यूटर पर अंकित होगा। इससे कम वोटिंग की भी शिकायत नहीं होगी। 51 प्रतिशत से अधिक वोटिंग ही बहुमत मानी जाएगी। खर्च सरकारी जीरो के साथ वोटरों को प्रभावित नहीं किया जा सकेगा। जहां तक प्रचार की बात है स्थानीय रेडियो और टेलीविजन पर टाइम एलोट किया जाएगा। इससे पीएम, मंत्री, मुख्यमंत्री और स्टार प्रचारक पर होने वाले निरर्थक कई करोड़ प्रति दिन बचाए जा सकते हैं