राजनीतिक दलों को मिलने वाले चुनावी चंदा कालाधन होता है। यह बात छुपी नहीं है। चंदा देकर उद्योगपति सरकार से सौ से लाख गुना फायदा उठाते हैं। इसके लिए सरकार को गलत तरीके से लाभ पहुंचाना होता है क्योंकि लीगल तरीके से किसी पूंजीपति को उपकृत किया ही नहीं जा सकता। सरकार जिस तरह रेल तेल भेल कोयला बिजली खदाने बेच चुकी है वह उपकृत करने का ही सबूत है। नौ वर्षों में सरकार ने ग्यारह लाख करोड़ उन्हीं पूंजीपतियों के कर्ज माफ किए होंगे जिन्होंने सरकार के दल को भारी भरकम चंदा दिया होगा। संभव है स्विस बैंकों में जमा कालाधन को वित्त मंत्री द्वारा कालाधन नहीं है कहा गया उसके पीछे भी वही कहानी हो सकती है यानी सौदेबाजी लेकिन यदि सरकार बदली तो स्विस बैंक द्वारा देश के चोरों के द्वारा स्विस बैंक में जमा लाखों करोड़ रूपए किनके हैं की चार चार सूचियां सरकार को उपलब्ध कराई गईं लेकिन किसानों के कर्ज माफ नहीं करने वाली सरकार सूची को सार्वजनिक नहीं किया। जिसका अर्थ है परदे के पीछे कोई गुल खिला होगा। बीजेपी की मोदी सरकार ने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का नियम ही बदल कर इलेक्ट्रोरल बॉन्ड जारी किया जिसमें कोई भी डोनर बिना पहचान उजागर किए चाहे जितने पैसे किसी भी दल को दे सकता है। सूचनानुसार 12000 करोड़ कालाधन के रूप में बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को मिले जिसमें 80 प्रतिशत केवल सत्ता रूढ़ दल को ही मिल गए जिसका दुरुपयोग लोकसभा चुनाव में किए जाने की आशंका है। ऐसी अपील सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ वकील ने सुप्रीमकोर्ट (एससी) में की और कोर्ट से कहा है कि लोकसभा चुनाव पूर्व निष्पक्ष तरीके से जांच और निर्णय होने जरूरी हैं अन्यथा चुनाव में धन का दुरुपयोग किया जा सकता है जिसपर तीन जजों की बेंच ने पांच जजों की संवैधानिक पीठ को भेजते हुए कहा, इतना बड़ा मामला सचमुच दुखद है जो हमारे सामने आया ही नहीं। प्रशांत भूषण की अपील पर सीजेआई चंद्रचूड़ सहित पारदीवाला और मिश्र भी थे। साथ ही तीस अक्तूबर को सुनवाई की तारीख भी तय कर दी। आगामी तीस अक्तूबर को पांच जजों की पीठ सुनवाई करेगी। मामले पर बहस भी होगी और जज संभव है किसी न्यायपूर्ण फैसले पर पहुंच जाए। लोकसभा चुनाव हो या कोई अन्य। निचले स्तर ग्रामपंचायत से लेकर लोकसभा तक के चुनाव में कालेधन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे की ओर से शुरू होकर प्रशासनिक स्तर तक पहुंचता और जनता की परेशानी बढ़ाता है। राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा जब इलेट्रोरल बॉन्ड के द्वारा बेनामी लेन देन होगा तो कापाधन ही होगा। आशा है सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच किसी न्यायशील निर्णय क्रांतिकारी परिवर्तन हासिल कर सकेगा। चुनाव आयोग विधायक और सांसद के चुनाव के लिए जितनी राशि का व्यय सुनिश्चित किया है उससे अधिक तो ब्लॉक प्रमुख और जिला परिषद अध्यक्ष चुनाव में व्यय हो जाते हैं। चुनाव लडना आज बेहद खर्चीला हो गया है। हमारे देश की लोकसभा का चुनाव अमेरिकी राष्ट्रपति से डेढ़ गुना महंगा बना दिया गया है ताकि कोई भी सज्जन ईमानदार व्यक्ति चुनाव ही नहीं लड़ सके। इसीलिए धनवान भ्रष्ट लुटेरे बाहुबली चुनाव लड़ते हैं। क्रिमिनल बेस व्यक्ति को पार्टियां टिकट पकड़ा देती हैं जो विधायक पद के लिए दस से बीस करोड़ और सांसदी चुनाव के लिए पचास करोड़ तक व्यय करते हैं। अब जब इतना धन लगाकर कोई चुनाव जीतेगा तो भ्रष्टाचार करेगा। चुनाव आयोग लगाम लगाने में पूरी तरह असफल होता है। इसलिए बेहतर होगा सत्पात्र व्यक्ति जो ईमानदार हों उन्हें टिकट देने की बाध्यता हो और चुनाव में वोटिंग और काउंटिंग डिजिटल हो जिससे सरकार के अरबों खरबों जो जनता का टैक्स है बचत होगी जिससे जनता की बहाबुदी पर व्यय किया जाए। प्रत्याशी रेडियो टीवी से प्रचार करें। इस तरह चुनाव में धनातंत्र रोककर परादर्शी चुनाव जीरो बजट पूर्ण होंगे। इसपर भी सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेना चाहिए।